अघोरियों के बारे में कुछ ऐसी बातें जिन्हें सुनकर आप रह जाएंगे दंग, जानें क्या है इनका रहस्य…
अपने शायद कुंभ मेले में या शमशान में अघोरियों को तपस्या करते हुए देखा होगा। लोग अक्सर अघोरियों के लंबे बाल या पहनावे की वजह से डर जाते हैं। अघोरी का नाम सुनते ही कुछ लोग डर जाते हैं। लेकिन वास्तव में, वे बहुत सरल होते हैं। किसी को भी कष्ट नहीं पहुंचाते। उनके बारे में कई ऐसे तथ्य हैं जिनसे ज्यादातर लोग अनजान हैं।
क्या है अघोरपंथ?
अघोरपंथ शिव और शक्ति के उपासकों का एक सम्प्रदाय है जो सनातक धर्म की मुख्य प्रणालियों में से एक का पालन करता है। उन्हें अघोरी कहा जाता है। अघोर का अर्थ होता है “अंधकार से प्रकाश की ओर” और यह पूजा दुनिया को बुराई के अंधेरे से मुक्त करती है। मानवता को प्रकाश देती है। अघोरपंथ की उत्पत्ति के बारे में कोई प्रमाण नहीं है, लेकिन उन्हें कपालिक संप्रदाय के समक्ष माना जाता है जो अघोर से ही उत्पन्न हुआ था। हिन्दू शास्त्रों में अघोरपंथ की उत्पत्ति भगवन शिव से मानी गई है। क्योंकि भगवन शिव को अघोर का सबसे बड़ा रूप माना जाता है। अघोर भारत के सबसे पुराने ‘शिव संप्रदाय’ और ‘शाक्त संप्रदाय’ के मिलान से सम्बोधित है। तारा पीठ, काली घाट,और असम के कामाख्या मंदिर गुवाहाटी प्रमुख अघोर तंत्र केंद्र रहे हैं।
क्यों है शमशान अघोरियों का पसंदीदा स्थल?
शमशान अघोरियों का परमपूज्य साधना स्थल माना जाता है। शमशान भगवान शिव का स्वरुप माना जाता है। शमशान का अर्थ है, शम+शान मतलब जहां सबकी शान बराबर हो जाती है। शमशान एक ऐसा स्थल है,जहां अच्छा बुरा सब बराबर हो जाता है। चाहे राजा हो या रंक, चोर हो या साहूकार सभी एक समान और एक ही अग्नि के बीच आत्मा को शरीर से अलग करते हैं। ये स्थान सनातन धर्म में सर्वोच्च तटस्थ स्थानों में गिना जाता है। अघोरियों का मानना है की शमशान में साधना करने से उन्हें मृत्यु और त्याग को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिल सकती है। उनका मानना है की शमशान में साधना करना एक मूल्यवान साधना है क्योंकि अधिकतर लोग शमशान में जाने से कतराते हैं। जिससे उनकी साधना में कोई विघ्न भी नहीं पड़ता।
आपको अघोरियों के बारे में कुछ ऐसी बाते बताते हैं जिन्हें जानकर आपके पैरों तले ज़मीन खिसक जाएगी। अघोरियों के बारे में जानने के बाद आपको एहसास होगा कि अघोरपंथ कितना कठिन अभ्यास करता है और यह मानवता को कैसे लाभ पहुँचाता है।
कौन हैं अघोरी?
कुछ लोग अघोरी को अघोड़ भी कहते हैं। अघोरी वे लोग रहते हैं जो उग्र नहीं होते,जो सीधे या सरल होते हैं। इनमे भेदभाव की कोई भावना नहीं होती। कहा जाता है की अघोरी बनना या सरल बनना बहुत कठिन होता है। सरल बनने के लिए कुछ अघोरी बहुत कठिन रास्ता अपनाते हैं। अपनी साधना पूरी करने के बाद अघोरी हमेशा के लिए हिमालय चले जाते हैं।
अघोरियों का पहनावा क्या होता है?
कफ़न के काले वस्त्र में लिपटे अघोरी बाबा के गले में धातु की बानी नरमुंड की माला लटकी होती है। नरमुंड न हो तो वे रुद्राक्ष की माला धारण करते है। हाथ में चिमटा, कमण्डल, कान में कान में कुंडल, कमरबंध और पूरे शरीर पर राख मलकर रहते हैं। वे अपने गले में काली ऊन का एक जनेऊ रखते हैं।
अघोरी शमशान, मृत के मांस और भस्म को क्यों अपनाते है?
अघोरी ऐसे व्यक्तियों को स्वीकार करते हैं जो समाज द्वारा तिरस्कृत होते हैं। कई लोग शमशान, शव, मांस और कफ़न आदि का तिरस्कार करते हैं, लेकिन अघोरी उन्हें गले लगाते हैं। वे सभी के साथ समान व्यव्हार करते हैं। अघोर विद्या एक प्रकार की साधना है जो बहुत कठिन है। अघोर विद्या करने वाले लोगों को पहले माया का त्याग करना होता है। इसका अर्थ है कि उन्हें अच्छे और बुरे, सुंदर और कुरूप, सही और गलत के बारे में सोचना बंद कर देना चाहिए। अघोर विद्या के अभ्यास के दौरान इस प्रकार के सभी विचार और भावनाएं गायब हो जाएंगी। अघोरी बनना बहुत कठिन है क्योंकि ये खाने की ज्यादा परवाह नहीं करते हैं। रोटी मिलेगी तो रोटी खायेंगे। खीर मिलेगी तो खीर खायेंगे। बकरी मिलेगी तो बकरी खाएंगे। और अगर उन्हें इंसानी लाश मिल भी जाए तो वे इससे परहेज नहीं करेंगे। परन्तु गाय माता का मांस कभी नहीं खाते हैं, क्योंकि वह अपवित्र माना जाएगा।
क्यों लगते हैं अघोरी जिद्दी और गुस्सेल?
कुछ लोग कहते हैं कि जब अधोरी कुछ मांगते हैं, तो वे आमतौर पर इसे प्राप्त करते हैं। यदि वे क्रोधित हो जाते हैं तो उनकी आंखें लाल हो जाती हैं और वे अपशब्द कहने लगते हैं। इनकी आंखों में जितना गुस्सा दिखाई देता है, ये उतने ही शांत और शांत नजर आते हैं।
कैसे करते हैं भूत-प्रेत पर काबू..
भूत-पिशाच को दूर रखने के लिए अघोरी विशेष मंत्रों का प्रयोग करते हैं। साधना करने के बाद दीपक जलाते हैं और विशेष मंत्र का जाप करते हैं। फिर वे चिता के चारों ओर रेखाएँ खींचते हैं। इससे साधना प्रारंभ होती है। ऐसा करने से अघोरी अन्य भूतों और पिशाचों को अंतिम संस्कार की चिता की आत्मा या खुद को उनकी साधना में परेशान करने से रोकते हैं।
भारत के प्रमुख अघोर स्थान
वाराणसी को भारत का सबसे महत्वपूर्ण अघोर स्थल के रूप में देखा जाता है। भगवान शिव का गृह नगर होने के कारण यहाँ कई अघोर साधकों ने तपस्या की है। यहाँ बाबा कीनाराम का स्थल भी है। जिसे एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल माना जाता है। काशी के अलावा भी गुजरात के जूनागढ़ में गिरनार पर्वत अघोर साधकों के लिए एक लोकप्रिय स्थल है। वहीं मणिकर्णिका घाट भी अघोरियों के तप का एक मुख्य केंद्र माना जाता है।