अंदरखाने की रिपोर्ट से सहमे सिंधिया…क्या यदुवंशियों से पाएंगे पार…क्या समाज करेगा यादवेन्द्र का उद्धार

Lok Sabha Election Guna Lok Sabha Seat Yadav Voters Jyotiraditya Scindia Rao Yadvendra Singh2

लोकसभा चुनाव की सरगर्मी अब धीरे धीरे बढ़ती जा रही है। 19 अप्रैल को पहले चरण का मतदान होना है। मध्यप्रदेश की 29 लोकसभा सीटों पर भी चार चरणों में मतदान होगा। इन सीटों में सबसे अधिक सुर्खी में गुना लोकसभा सीट है। जहां बीजेपी के टिकट पर इस बार ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव मैदान में उतरे हैं। कांग्रेस ने उनको चुनौती देने के लिए यादव समाज से ताल्लुक रखने वाले राव यादवेंद्र सिंह को मैदान में उतारा है। मजेदार बात यह है ​कि पिछले 2019 के चुनाव में सिं​धिया कांग्रेस की ओर से मैदान में थे जिन्हें बीजेपी के केपी यादव ने पराजित किया था। ऐसे में कांग्रेस गुना सीट पर यादव वोटर्स की संख्या को देखते हुए राव यादवेन्द्र को टिकट दिया है। वैसे यहां से पहले अरुण यादव का नाम चर्चा में था, लेकिन यादव समाज के स्थानीय व्यक्ति को ही यादवों का साथ मिलने की संभावना के चलते अरुण का टिकट कट गया।

सिंधिया कांग्रेस से बीजेपी में आए…तो यादवेन्द्र बीजेपी से कांग्रेस में गये

ज्योतिरादित्य सिंधिया साल 2019 के लोकसभा चुनाव गुना क्षेत्र से कांग्रेस की ओर से चुनाव लड़े थे। उस समय उनके सामने कांग्रेस से ही बीजेपी आने वाले KP यादव ने बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़कर जीत हासिल की थी। गुना लोकसभा क्षेत्र में विधानसभा सीटें यादव बहुल क्षेत्र बतायी जाती हैं। जिसमें यादव समाज से किसी भी पार्टी से प्रत्याशी के खड़े होने पर समाज के सभी लोग लगभग एकतरफा वोटिंग करते हैं। इस बार भी वहीं 2019 वाली स्थिति बन रही है। एक तरफ यादव समाज से आने वाले यादवेन्द्र सिंह है तो दूसरी तरफ सिंधिया। इसलिए ज्योतिरादित्य सिंधिया इस बार बीजेपी के निर्णय से बड़े ही कशमकश में दिखाई दे रहे हैं। वे ग्वालियर से चुनाव मैदान में उतरते तो शायद परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता। ऐसे में सिंधिया के चुनाव प्रचार प्रसार में भी तेजी नहीं दिखाई दे रही है।सिंधिया गुना क्षेत्र में ही बंध कर रह गये हैं, वे मध्यप्रदेश की दूसरी लोकसभा सीट पर प्रचार के लिए निकल नहीं पा रहे हैं, जबकि वे बीजेपी के स्टार प्रचारक हैं।

लोधी वोट हासिल करने के लिये उमा का सहारा

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गुना क्षेत्र के ओबीसी वर्ग में शामिल लोधी वोटर्स को प्रभावित करने के लिए उमा भारती का सहारा लिया है। पिछले दिनों सिंधिया ने उमा भारती को अपनी बुआ बताते हुए कहा मेरी आजी अम्मा ने उमा भारती जी को अपनी पांचवी बेटी के समान रखा था। ऐसे में उमाजी मेरी बुआ बनती हैं,, और मैं उमाजी का भतीजा बनता हूं। जो प्यार और लाड़ उमा जी ने उन्हें दिया उसके लिए वे उमा जी और लोधी समाज के प्रति कृतज्ञ हूं। सिंधिया ने कहा जब जब सिंधिया परिवार के मुखिया को लोधी समाज के साथ की जरुरत पड़ी है जब जब केवल लोधी समाज ही नहीं उमा जी भी चट्टान की तरह उनके साथ खड़ी हुईं हैं।

क्या सिंधिया से ले सकेंगे पिता की हार का बदला

राव यादवेंद्र सिंह को आगे करके कांग्रेस ने सिंधिया के सामने एक मजबूत दांव खेल दिया है। अशोक नगर जिले से आने वाले राव यादवेंद्र सिंह फिलहाल जिला पंचायत सदस्य हैं। वे पहले बीजेपी में ही थे। लेकिन पिछले 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने कांग्रेस का हाथ थाम लिया था। जबकि उनके पिता स्वर्गीय देशराज सिंह यादव बीजेपी के ही टिकट पर विधायक रह चुके हैं। दरअसल सिंधिया परिवार के खिलाफ राव परिवार की चुनावी अदावत काफी पुरानी है। ठीक 22 साल पहले 2002 में बीजेपी के टिकट पर यादवेंद्र यादव के पिता स्वर्गीय देशराज सिंह यादव ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ लोकसभा के उपचुनाव मैदान में उतरे थे। जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बड़े अंतराल से करीब 4 लाख से अधिक वोटों से यादवेन्द्र सिंह के पिता को शिकस्त दी थी। देशराज सिंह यादव को महज 1 लाख 29 हजार वोट ही मिल पाए थे। इससे पहले देशराज सिंह यादव साल 1999 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता दिवंगत माधवराव सिंधिया के सामने लोकसभा चुनाव मैदान में उतरे थे। उस चुनाव में माधवराव सिंधिया ने देशराज सिंह को 2 लाख 14 हजार से अधिक वोटों से पराजित किया थे। पिता माधवराव ने करीब 2 लाख और बेटे ज्योतिरादित्य ने करीब 4 लाख से अधिक वोटों से यादवेन्द्र सिंह के पिता को चुनाव में परास्त किया था। अब वही चुनावी समीकरण एकबार फिर सामने आ गए हैं। राव परिवार के बेटे यादवेंद्र सिंह अब कांग्रेस में है ओर कभी कांग्रेस में रहने वाले सिंधिया बीजेपी में हैं। ऐसे में राय यादवेन्द्र ने यादव समाज के वोट की दम पर पिता की हार का बदला लेने के लिए कमर कस ली है।

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