हिंदू रीति रिवाज से इसलिए किया जाएगा दिवंगत रतन टाटा का अंतिम संस्कार

हिंदू रीति रिवाज से इसलिए किया जाएगा दिवंगत रतन टाटा का अंतिम संस्कार

नमक से लेकर सॉफ्टवेयर तक के साम्राज्य का नेतृत्व करने वाले समूह के अध्यक्ष
रतन टाटा अब इस दुनिया में नहीं रहे। 9 अक्टूबर बुधवार रात 11:30 बजे मुंबई स्थित ब्रीच कैंडी अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। मुंबई के वर्ली Worli Crematorium में दिवंगत रतन टाटा का अंतिम संस्कार किया जाएगा। वर्ली श्मशान घाट में पारसी समुदाय का प्रेयर हॉल है। यहां पर पारसी-जोरास्ट्रियन समुदाय के ऐसे लोगों का अंतिम संस्कार किया जाता है, जिनके परिजन मालाबार हिल्स पर बने टॉवर ऑफ साइलेंस यानी दखमा में सामाजिक परंपरा के अनुसार दोखमेनाशिनी के लिए दिवंगत के शव को गिद्धों के लिए नहीं रखते हैं। बता दे की साल 2022 में जब टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री का निधन हुआ था तो उनका अंतिम संस्कार वर्ली के श्मशान घाट में किया गया था । दरअसल कोरोना महामारी के वक़्त शवों के अंतिम संस्कार के तरीकों में बदलाव किया गया था। उस दौरान पारसी समुदाय के अंतिम संस्कार के रीति रिवाजों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था ।
तब साइरस मिस्त्री का दाह संस्कार भी खासा सुर्खियों में रहा था। इस से पहले टाटा समूह के चेयरमैन रहे जे आर डी टाटा को भी पेरिस स्थित पेरे लाचेज कब्रिस्तान में दफनाया गया था। अब पारसी होने के बाद भी दिवंगत रतन टाटा का हिंदू रीति-रिवाज से होगा । शाम 4 बजे राजकीय सम्मान के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी जाएगी ।बता दे रतन टाटा पारसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं उसके बाद भी उनका अंतिम संस्कार पारसी रीति रिवाजों के स्थान पर हिन्दू परंपराओं के अनुसार किया जाएगा। दिवंगत रतन टाटा के पार्थिव शरीर को शाम 4 बजे मुंबई के वर्ली स्थित इलेक्ट्रिक अग्निदाह में रखा जाएगा। इससे पहले यहां करीब 45 मिनट तक प्रेयर होगी प्रेयर के बाद अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को पूरा किया जाएगा।

पारसी समुदाय के अंतिम संस्कार विधि बिल्कुल अलग होती है पारसी समुदाय में अंतिम संस्कार के नियम हिंदू और मुस्लिम पद्धति से बिल्कुल अलग है। पारसी समुदाय में किसी के निधन पर शव को पारंपरिक कब्रिस्तान जिसे टावर ऑफ साइलेंस या दखमा कहां जाता हैं, वहां खुले पुलिस स्थान पर गिद्धों को खाने के लिए रख दिया जाता है। गिद्धों का इस तरह मानव शव को खाना भी पारसी समुदाय के रिवाज का ही एक प्राचीन हिस्सा है। हालांकि पारसी समुदाय से ताल्लुक रखने के बाद भी रतन टाटा का अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाजों से किया जाएगा। भारत ही नहीं कई जगह आरसी समुदाय के अंतिम संस्कार की प्रक्रिया में बदलाव हो रहा है। कभी फारस को आबाद करने वाले पारसी समुदाय के लोग अब पूरी दुनिया में कम ही बचे हैं । 2021 में किए गए एक सर्वे के अनुसार दुनिया भर में पारसियों की तादाद 2 लाख से भी कम बची है। इस समुदाय को अंतिम संस्कार की अनोखी परंपरा के चलते दुनियाभर मेंमुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। कई जगह तो टावर ऑफ साइलेंस के लिए भी पर्याप्त स्थान नहीं मिलने और चील व गिद्ध जैसे मांस खाने वाले पक्षियों की कमी के चलते पिछले कुछ सालों से पारसी समुदाय के लोगों ने अपने परिजनों के अंतिम संस्कार के तरीके में बदलाव शुरू किया है।

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