लोकसभा और यूपी विधानसभा की लगातार खाली हो रहीं सीटों ने एक बार फिर चिंता बढ़ा दी है। लोकतंत्र के मंदिर में बैठने वालों की संख्या इसी तरह घटती रही तो आने वाले समय में कोरम कैसे पूरा हो पाएगा,यह अपने आप में एक सवाल है। ऐसा भी नहीं है कि माननीय अपनी मर्जी से सीटें छोड़ रहे हैं। उनकी अपनी ‘मनमानी’ के कारण इस तरह की स्थिति बन रही है।
. अपराध करने वाले जनप्रतिनिधियों पर कसा जा रहा शिकंजा
. कम से कम दो साल की सजा पाने वालों की जा रही सदस्यता
. कानून का सख्ती से हो रहा है पालन
. अब तक कई सांसद और विधायक खो चुके हैं सदस्यता
. अब नहीं चल सकता है कानून से खिलवाड़
लगातार खाली हो रहीं सीटें किसी एक दल की नहीं हैं। इसमें भाजपा,कांग्रेस,सपा और बसपा जैसे बड़े राजनैतिक दल हैं जिनके कारण सीटें खाली हो रहीं हैं। सबसे पहले बात करते हैं लोकसभा की। हाल ही में गाजीपुर से सांसद अफजाल अंसारी को गैंगस्टर एक्ट के तहत चार साल की सजा सुनाई गई,जिसके कारण उनकी लोकसभा की सदस्यता खत्म हो गई। इसी तरह कांग्रेस की तरफ से राज्यसभा पहुंचे सांसद रसीद मसूद एक घोटाले में फंस गए। वर्ष 2013 में हुए एमबीबीएस घोटाले में उन्हे चार साल का सजा सुनाई गई। सजा होते हुए उनकी सांसदगीरी चली गई। इसके पहले 2009 में एक धोखाधड़ी का मामला उजागर हुआ जिसमें फैजाबाद लोकसभा सीट से सपा से सांसद बने मित्रसेन यादव फंस गए। उन्हे सात साल की सजा हुई जिसके कारण लोकसभा की सदस्यता समाप्त हो गई। इन तमाम माननीयों की मनमर्जी से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी भी खुद को नहीं बचा पाए। उन्होंने अपनी एक गलती के कारण वायनाड की लोकसभा सीट खो दी और उनकी सदस्यता समाप्त कर दी गई।
यूपी विधानसभा भी हो रही खाली
यदि उत्तरप्रदेश विधानसभा की बात करें तो यहां भी कई सदस्य अपनी मनमर्जी के चलते सदस्यता गवां चुके हैं। फर्जी मार्क्सशीट मामले में गोसाईंगंज भाजपा के विधायक इंद्र प्रताप तिवारी उर्फ खब्बू तिवारी के नाम की खूब चर्चा हुई। मामले की जांच होने पर उन्हे दोषी पाते हुए 2021 में विधानसभा की सदस्यता गंवानी पड़ी। कभी समाजवादी पार्टी में आजम खां की तूती बोलती थी। उनका अपना रुतबा था। लेकिन वक्त पलटते देर नहीं लगी। आजम खां और उनके बेटे अब्दुल्ला आजम खां को सजा हुई तो विधायकी चली गई। मामला 2019 का था जब आजम ने नफरत भरे बयान दिए। जिसके कारण एमपी एमएलए कोर्ट ने उन्हे तीन साल की सजा सुना दी। इसी तरह मुजफ्फरनगर की खतौली सीट से भाजपा के विक्रम सैनी 2022 में चुनाव जीते। विधायकी मिले हुए कुछ ही साल हुए थे कि उन्हे कोर्ट ने एक दंगे के मामले में दोषी पाया। परिणाम ये हुआ कि सैनी को विधानसभा की सदस्यता से हाथ धोना पड़ा। हमीरपुर से भाजपा के टिकट पर विधायक बने अशोक कुमार सिंह चंदेल भी एक हत्या के मामले में फंस गए। उन्हे कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुना दी। इसके बाद उनकी वर्ष 2019 में विधायक चली गई। उन्नाव में हुए एक दुष्कर्म के मामले ने काफी तूल पकड़ा,मामले की जांच हुई तो बांगरमऊ से भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर दोषी पाए गए। सेंगर की सदस्यता भी उम्रकैद की सजा पाने के बाद 2019 से खत्म कर दी गई।
आधे विधायकों पर दर्ज हैं मामले
माननीयों की मनमानी कितनी गंभीर है इसका अंदाजा एडीआर की एक रिपोर्ट से लगाया जा सकता है। रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि वर्तमान में 18वीं विधानसभा के लिए चुने गए सभी विधायकों में से 50 फीसदी एमएलए के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज हैं। अगर इसी तरह कानूनी शिकंजा कसता रहा तो आने वाले समय में विधायकी खोने वालें नताओं की संख्या काफी बढ़ जाएगी। बता दें कि 10 जुलाई 2013 को लिली थॉमस बनाम भारत संघ के मामले में देश के शीर्षस्थ न्यायालय ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत निर्णय दिया था कि यदि कोई सांसद या विधायक को किसी आपराधिक मामले में कम से कम दो साल की सजा होती है तो वह तुरंत सदन की सदस्यता से अयोग्य माना जाएगा। इसी कानून के चलते अब तक कई सांसद और विधायक अपनी सदस्यता से हाथ धो बैठे हैं।
प्रकाश कुमार पांडेय