अमरनाथ यात्रा से भी बेहद दुर्गम है इस मंदिर का सफर , हिंदुओं के साथ मुस्लिम भी करते है मंदिर में पूजा

अमरनाथ यात्रा से भी बेहद दुर्गम है इस मंदिर का सफर , हिंदुओं के साथ मुस्लिम भी करते है मंदिर में पूजा

 

हिंदु धर्म में पुराणों और ग्रंथों का बहुत अधिक महत्व है. इन्हीं पुराणों में देवी मां के शक्तिपीठों का भी वर्णन किया गया है. देवी मां के शक्तिपीठों की संख्या कुल 51 है. इनमें से 50 भारत में मौजूद है, वहीं एक शक्तिपीठ ऐसी जगह मौजूद जिसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते है. इस शक्तिपीठ की खास बात यह है कि इसकी हिंदु तो पूजा करते ही है, लेकिन इसके साथ इस शक्तिपीठ पर मुस्लिम भी सिर झुकाते है. ये शक्तिपीठ बहुत बड़ा आकर्षण का केंद्र है, जहां हिंदु मुस्लिम एकता देंखी जा सकती है. शक्तिपीठ के बारे में बातें तो बहुत कर ली, चलिए आपको अब उस शक्तिपीठ के बारे में भी बताते है.

कहां मौजूद है शक्तिपीठ ?
देवी मां के इस शक्तिपीठ को हिंगलाज मंदिर के नाम से जाना जाता है. माता का यह शक्तिपीठ पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में स्थित है. इस मंदिर के दर्शन करने के लिए लोग पूरी दुनिया से आते हैं. हिंगलाज मंदिर की खास बात है कि इसका रख रखाव मुस्लिम समुदाय करता है. बलूचिस्तान पाकिस्तान का बहुत ही सुंदर प्रांत है.

क्या है हिंगलाज मंदिर की कहानी ?
हिंगलाज माता को देवी भगवती का रूप माना जाता है. कहते है कि भगवान शिव माता सती के शरीर को लेकर घूम रहे थे, तब उनका सिर यही पर गिरा था. इसलिए इस शक्तिपीठ को चमत्कारी और बेहद अहम माना जाता है. मंदिर का नाम हिंगलाज पड़ने के पीछे भी एक कहानी है. कहानियों के अनुसार यहां पर हिंगोल नाम का राजा हुआ करता था, जिसे उसकी प्रजा बेहद पसंद करती है, लेकिन उसके दरबारी उससे जलते है. दरबारियों ने राजा से राज्य छीनने के लिए उसे कई खराब आदतें डलवा दी. राजा की ऐसी हालात देंखकर प्रजा ने माता हिंगलाज से उनके राजा के लिए कामना की, जिसे मां ने सुन लिया. तभी से इस मंदिर का नाम हिंगलाज पड़ गया.

बेहद दुर्गम है रास्ता
हिंगलाज मंदिर का रास्ता बेहद दुर्गम माना जाता है. कहते है कि हिंगलाज मंदिर की यात्रा अमरनाथ यात्रा से भी कठिन है. मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको  1,000 फुट ऊँचे पहाड़,सुनसान रेगिस्तान, जंगली जानवर से भरे घने जंगल और ज्वालामुखी से होकर गुजरना पड़ता है. इन सभी चीजों को करने के बाद भी डाकुओं और आतंकियों का खतरा रहता है. इन सभी कारणों के कारण यहां अकेले जाना मना है. भक्त यहां पर 40 से 50 लोगों के जत्ते में पहुंचते हैं

मुस्लिम करते है मंदिर की देखरेख
बलूचिस्तान प्रांत की तलहटी में हिंगोल नदी (Hingol River) के किनारे स्थित हिंगलाज मंदिर अपने आप में ही खास है. इस मंदिर में हिंदुओं के साथ साथ मुस्लिमों की भी आस्था जुड़ी हुई है. यहां के मुस्लिम भी माता के दर्शन करने आते है और साथ ही मुस्लिम समुदाय मंदिर की देखरेख का कार्य भी करते हैं. मुस्लिम हिंगलाज मंदिर को नानी मंदिर या नानी का हज कहते है. मंदिर का ऐसा माहौल रहता है कि कई बार आपको भक्त और पुजारी दोनों टोपी पहने दिखते हैं. पाकिस्तान के अलावा अफगानिस्तान, मिस्त्र, ईरान से भी कई मुस्लिम यहां माथा टेकने आते हैं.

यात्रा शुरू करने से पहले लेनी पड़ती है शपथ
हिंगलाज मंदिर की यात्रा शुरू करने से पहले भक्तों को दो शपथ लेनी पड़ती है. पहली शपथ यात्रा खत्म होने तक सन्यास धारण करने की होती है, वहीं दूसरी शपथ के अनुसार आप सफर के दौरान अपना पानी किसी और को नहीं पीला सकते हैं. भले ही वो इंसान पानी से तड़पकर क्यों न मर जाएं. कहा जाता है जो इन शपथों को पूरा नहीं करता है, उनकी यात्रा पूरी नहीं होती है. इसके साथ ही मंदिर पर पहुंचने वाले श्रद्दालुओं को अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए 10 फीट लंबे अग्नि से धधकते ‘माता की चूल’ से होकर गुजरना पड़ता है. कहते है कि जो इस चूल से गुजर जाता है, उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.

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