दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय आज ऐसी दो याचिकाओं पर सुनवाई करेगा, जो भारतीय विवाह का चेहरा बदल सकती है। सुप्रीम कोर्ट दो याचिकाओं पर सुनवाई करेगा और ये दोनों याचिकाएं दिल्ली और केरल हाईकोर्ट में पेंडिंग थीं। ये दोनों याचिकाएं समान सेक्स वाले लोगों के विवाह करने से संबंधित हैं। शीर्ष कोर्ट में ट्रांसफर करने की मांग के बाद सुप्रीम कोर्ट इन याचिकाओं पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया है।
- भारत में अभी नहीं मान्य है सेम सेक्स मैरेज
- 2018 में समलैंगिकता को अपराध बताने वाला कानून रद्द हुआ
- उसके बाद से समलैंगिक विवाहों को मान्यता की जमीन तैयार हुई
- आज दो याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई
कानून की भाषा स्पष्ट नहीं है
इनमें से एक याचिका पश्चिम बंगाल के सुप्रियो चक्रवर्ती और दिल्ली के अभय डांग ने दायर की है। ये दोनों 10 साल से मियां-बीवी की तरह हैं और दूसरी याचिका पार्थ फिरोज मेहरोत्रा और उदय राज की है, जो 17 साल से साथ हैं। ये लोग स्पेशल मैरेज एक्ट के तहत शादी कर चुके हैं। अब वे चाहते हैं कि उनकी शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत मान्यता मिले, ताकि बच्चों की देखभाल से लेकर बैंक अकाउंट खुलवाने तक की बाधाएं दूर हो सके।
भारतीय कानून के हिसाब से महिला और पुरुष के बीच ही शादी हो सकती है। हालांकि, इसी कानून में सेम-सेक्स मैरिज को शामिल किया जा सकता है, क्योंकि कानून में पत्नी की परिभाषा में उसका जेंडर स्पष्ट नहीं किया गया है।
पत्नी शब्द को जेंडर-न्यूट्रल बनाने की मांग
याचिकाकर्ताओं का मानना है कि समलैंगिक संबंधों को गैर-कानूनी बताने से हटाने का कानून बनाकर कोर्ट ने एक लंबी राहत दी है, लेकिन समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता नहीं मिलने से ऐसे जोड़ों की प्रॉपर्टी, गोद लेने, सरोगेसी जैसे मूल अधिकारों पर असर पड़ता है।
स्पेशल मैरिज एक्ट का सेक्शन 4 किसी भी दो व्यक्तियों को विवाह करने की इजाजत देता है, लेकिन सब-सेक्शन (C) के तहत लिखा है कि केवल पुरुष और महिला ही शादी के लिए आवेदन कर सकते हैं। इसलिए याचिकाओं में स्पेशल मैरेज एक्ट को जेंडर न्यूट्रल बनाने की मांग हो रही है।
सेम सेक्स मैरेज को मान्यता न देना लैंगिक भेदभाव
LGBTQ एक्टिविस्ट्स का कहना है कि सेक्स के आधार पर सेम सेक्स मैरिज को कानूनी दर्जा न देना लैंगिक भेदभाव के साथ ही गरिमा के साथ जीने के अधिकार के भी विरुद्ध है। इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का भी उल्लंघन होता है।
वैसे, 2018 में ही सुप्रीम कोर्ट ने 158 साल पुराने उस कानून को रद्द कर दिया था, जिसमें समलैंगिकता को अपराध माना गया था।