महाराष्ट्र की सियासत,कुर्सी के बाद धनुष-बाण के लिए जंग

Shivsena party symbol

महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे गुट के बीच शिवसेना के चुनाव चिह्न को लेकर जंग जारी है। बाला साहब ठाकरे की शिवसेना का धनुषबाण उद्धव के पास रहेगा या एकनाथ शिंदे के नेतृ्त्व वाला विद्रोही गुट उन्हें महाराष्ट्र की सत्ता के बाद पार्टी के चुनाव चिन्ह से भी बेदखल करने में कामयाब रहेगा ये सवाल है, जिसका जवाब महाराष्ट्र ही नहीं की जनता ही नहीं पूरा देश जानना चाहता है।

शिवसेना के नाम और चुनाव चिन्ह पर रोक लगाने के चुनाव आयोग के अंतरिम आदेश के खिलाफ महाराष्ट्र के पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। ठाकरे की याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने सवाल किया कि पार्टी गुटों के बीच विवाद पर पोल पैनल के अंतिम फैसले का इंतजार क्यों नहीं करना चाहिए। फिलहाल अदालत इस मामले में आज फिर सुनवाई करने वाली है। इससे पहले पक्षों से सबमिशन का एक संक्षिप्त नोट दाखिल करने के निर्देश दिए गए।

पहले पद छूटा, क्या अब छूटेगा उद्धव से सिंबल

बता दें महाराष्ट्र में शिवसेना में विद्रोह के बाद सत्ता परिवर्तन हो गया था। यहां महाविकास अघाड़ी सरकार जिसके मुखिया उद्धव ठाकरे थे उन्हें पद छोड़ना पड़ा था। इसके बाद शुरू हुआ राजनीतिक घमासान अब तक नहीं थमा है। दो धड़ों में बंट चुकी शिवसेना में अब चुनाव निशाना तीरकमान को लेकर एक दूसरे के सामने है। ये मामला फिलहाल चुनाव आयोग के पास है। हालांकि अंधेरी उपचुनाव और निकाय चुनावों को देखते हुए चुनाव आयोग ने पार्टी के दोनों धड़ों को अस्थायी रूप से नया नाम और नया चुनाव निशान जारी किया था। इस बीच उद्धव ठाकरे गुट ने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनाव निशान तीरकमान पर अपना दावा करते हुए एक याचिका दाखिल कर दी। दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने दलील दी कि भारतीय चुनाव आयोग की ओर से जारी शिवसेना पार्टी के नाम और धनुष और तीर के चिन्ह को प्रतिबंधित करने का आदेश अवैध है। वहीं कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि इस मामले में उसे चुनाव आयोग के अंतिम निर्णय का इंतजार क्यों नहीं करना चाहिए?

बता दें सोमवार को शिवसेना के नाम और चुनाव चिन्ह पर रोक लगाने के चुनाव आयोग के अंतरिम आदेश के खिलाफ महाराष्ट्र के पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे की याचिका पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने सुनवाई की थी। इस दौरान अदालत ने पूछा कि उसे पार्टी गुटों के बीच विवाद पर पोल पैनल के अंतिम फैसले का इंतजार क्यों नहीं करना चाहिए। अदालत ने कहा पहले का चुनाव आयोग का आदेश उपचुनाव के उद्देश्य से था। वह कोई अंतिम निर्णय नहीं हैघ् जब उपचुनाव पहले ही हो चुके हैं। तो  ऐसे में अंतरिम आदेश का अब कोई अस्तित्व ही नहीं रह जाता हैं। अदालत को चुनाव आयोग के अंतिम विचार का इंतजार क्यों नहीं करना चाहिए? सोमवार को सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने कहा अदालत चुनाव आयोग से समयबद्ध तरीके से धनुष और तीर चिन्ह आवंटित करने के मुद्दे पर फैसला करने के लिए कहेगी। साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि दोनों गुट चुनाव आयोग के समक्ष अपनी दलील रखने के लिए स्वतंत्र हैं। इधर चुनाव आयोग के वकील सिद्धांत कुमार ने कोर्ट  के समक्ष कहा कि आयोग एक संवैधानिक निकाय है और किसी निर्णय पर पहुंचने के लिए एक विशिष्ट समयरेखा निर्देशित नहीं की जा सकती है।

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