समलैंगिंक विवाह को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि कोर्ट कानून नहीं बना सकतीं। कोर्ट उसकी केवल व्याख्या कर सकती हैं उसे लागू कर सकती हैं। इस दौरान चीफ जस्टिस ने यह भी कहा अदालत इतिहासकारों का काम नहीं कर रही है। उन्होंने कहा सती और विधवा पुनर्विवाह से लेकर अंतरधार्मिक विवाह तक, विवाह का रूप बदला है। शादी अब बदल गई है। यह एक अटल सत्य है। ऐसे कई बदलाव देश की संसद से आए हैं। कई वर्ग इन बदलावों का विरोध करते रहे लेकिन इसके बाद भी इसमें बदलाव आया है। लिहाजा यह कोई स्थिर या अपरिवर्तनीय संस्था नहीं है। समलैंगिक विवाह में हुई लंबी सुनवाई और बहस के बाद सुप्रीम कोर्ट आज मंगलवार 17 अक्टूबर को अपना फैसला सुनाया है। समलैंगिक विवाह का समर्थन कर रहे याचिकाकर्ताओं ने इसे स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत पंजीकृत करने की मांग की। वहीं केंद्र सरकार की ओर से कोर्ट में इसे भारतीय समाज के खिलाफ बताया गया। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिकाओं में याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि 2018 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने समलैंगिकता को अपराध मानने वाली IPC की धारा 377 के एक भाग को रद्द कर दिया था। जिससे इस फैसले के बाद दो वयस्क आपसी सहमति से समलैंगिक संबंध बनाते हैं तो वह संबंध अपराध नहीं है। लिहाजा समलैंगिक विवाह को भी मंजूरी मिलनी चाहिए।
समलैंगिक विवाह सुप्रीम कोर्ट का फैसला
- नहीं किया जा सकता समलैंगिकों के साथ भेदभाव
- कोर्ट कानून नहीं बना सकती
- कानून की व्याख्या कर सकती है
- सेक्सुअल ऑरिएंटेशन आधार, भेदभाव नहीं किया जा सकता
- विषमलैंगिक जोड़ों को मिलने वाली सुविधाओं से नहीं रखा जा सकता इन्हें वंचित
- वंचित रखना मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा
- सेक्स शब्द ,सामाजिक – ऐतिहासिक सन्दर्भों के बिना नहीं पढ़ा जा सकता
- रिलेशनशिप पर प्रतिबंध संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यदि राज्य पर सकारात्मक दायित्व लागू नहीं किए गए तो संविधान में अधिकार महज एक मृत अक्षर होगा। समानता वाले व्यक्तिगत संबंधों के मामले में अधिक शक्तिशाली व्यक्ति को प्रधानता मिलती होती है। उन्होंने कहा अनुच्छेद 245 और 246 के तहत सत्ता में संसद ने विवाह संस्था में बदलाव लाने वाले कानून बनाए हैं। सेक्सुअल ऑरिएंटेशन के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। वहीं चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट की व्यवस्था में बदलाव करना है या नहीं इसका निर्णय संसद को करना है। अदालत को विधायी क्षेत्र में प्रवेश करने में सावधानी बरतनी चाहिए। उन्होंने कहा एक-दूसरे के साथ प्यार-जुड़ाव महसूस करने की क्षमता हमें इंसान होने का एहसास कराती है। मनुष्य कॉम्पलेक्स समाजों में रहते हैं। एक-दूसरे के साथ प्यार और जुड़ाव महसूस करने की हमारी क्षमता ही हमें इंसान होने का एहसास भी कराती है। हमे अपनी भावनाओं को साझा करने की आवश्यकता, वह बनाती है जो हम हैं। उन्होंने कहा ये रिश्ते कई रूप ले सकते हैं। जन्मजात परिवार के साथ रोमांटिक रिश्ते भी होते हैं। रिवार का हिस्सा बनने की आवश्यकता मानव गुण का मुख्य हिस्सा है। आत्म-विकास के लिए महत्वपूर्ण है। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा जीवन साथी चुनना किसी के जीवन की दिशा चुनने का एक अभिन्न अंग है।
समलैंगिक व्यक्ति शादी नहीं कर सकते हैं
कुछ लोग ऐसे होते हैं जो इसे अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण निर्णय मान सकते हैं। इतना ही नहीं यह अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की जड़ तक जाता है। सीजेआई जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा इस अदालत ने माना है कि समलैंगिक व्यक्तियों के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता है। उनकी रिलेशनशिप को सेक्सुअल ऑरिएंटेशन के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। विषमलैंगिक जोड़ों को जो मिलने वाली सुविधा हैं उनसे इन्हें वंचित रखना इनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा। साथ ही उन्होंने कहा सेक्स शब्द को सामाजिक और ऐतिहासिक सन्दर्भों के बिना नहीं पढ़ा जा सकता है। सेक्सुअस ऑरिएंटेशन के आधार पर समलैंगिक के रिलेशनशिप पर प्रतिबंध संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन होगा। CJI ने आगे यह भी कहा अविवाहित विषमलैंगिक जोड़े अपनी आवश्यकता को पूरा करने के लिए शादी कर सकते हैं लेकिन समलैंगिक व्यक्ति को ऐसा करने का अधिकार नहीं है। ये केवल भेदभाव को मजबूत करता है और इस प्रकार सीएआरए परिपत्र अनुच्छेद 15 का उल्लंघन होगा।