राजस्थान की सियासत में गरमा रहा ओबीसी आरक्षण का मुद्दा,एकजुट हो रहा जाट समाज,कांग्रेस ही नहीं बीजेपी भी साधे है मौन

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राजस्थान में साल के अंत में विधानसभा चुनाव होना हैं। इस चुनाव से पहले मरुभूमि में अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण का मुद्दा गरमा गया है। जिसने सत्तारुढ़ कांग्रेस ही नहीं राज्य में सत्ता के सपने देख रही बीजेपी के सामने भी परेशानी खड़ी कर दी है। दोनों ही प्रमुख पार्टियां इस लेकर हैरान परेशान नजर आ रही हैं। सियासी गलियारों में चर्चा है कि जातिगत जनगणना और उसके हिसाब से सरकारी नौकरी में आरक्षण तय करने का मुद्दा यहां की राजनीति को चुनावी साल में खासा प्रभावित कर सकता है। ओबीसी आरक्षण के मुद्दे का समर्थन और विरोध दोनों ही किसी बड़े खतरे से कम नहीं है।

बिहार में गरमाया था जातिगत जनगणना का मुद्दा

बता दें जातिगत जनगणना का मुददा बिहार से उठा है। वैसे बिहार ही नहीं महाराष्ट्र और ओडिशा सहित कुछ संगठनों ने जनगणना में जाति आधारित विवरण को शामिल करने का अनुरोध केन्द्र सरकार से किया है। पिछले दिनों लोकसभा में ए गणेशमूर्ति के एक सवाल के जवाब में ये जानकारी सामने आई है। गणेशमूर्ति का सवाल था कि क्या सरकार ने इस दशक की जनगणना के लिए जो आंकड़े जमा करने जा रही है क्या आंकड़ों के साथ ही जातिवार जनगणना कराने की मांग की जा रही है। ऐसे में केंद्र सरकार की ओर से बताया गया कि आजादी के बाद से जनगणना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा जातिवार जनसंख्या की गणना नहीं की है।

यूपी होते हुए पहुंचा राजस्थान

इस बीच अब ये मुद्दा बिहार और उत्तरप्रदेश से होते हुए चुनावी राज्य राजस्थान पहुंच चुका है। जहां सियासत गरमाते दिखाई दे रहा है। मुददे का समर्थन करना ही नहीं विरोध करना भी राजनीतिक दल के लिए आसान नहीं है। बता दें आने वाली पांच तारीख को राजस्थान की राजधानी जयपुर जिसे गुलाबी शहर भी कहा जाता है वहां जाट समाज ने बड़ा समम्मेलन बुलाया है। जिसमें राजस्थान में जातिगत जनगणना की मांग की जाएगी। जयपुर में जाट समाज के इस सम्मेलन में मुख्य मांग राजस्थान में भी जातिगत जनगणना कराने के साथ ओबीसी को उनकी जनसंख्या में भागीदारी के हिसाब से आरक्षण देने की है।

ओबीसी के लिए मांगा जा रहा अधिक आरक्षण

फिलहाल राजस्थान में ओबीसी वर्ग के लिए सरकारी नौकरियों में 21 प्रतिशत आरक्षण लागू है। इसमें बढ़ोत्री की लगातार मांग की जा रही है। समाज के पदाधिकारियों ने इसे बढ़ाकर 27 प्रतिशत किए जाने की मांग की है। इसके लिए यहां जातिगत जनगणना कराई जाने की भी मांग ने जोर पकड़ लिया है। ऐसे में सभी जाति और समाज के अलग अलग आंकड़े जुटाने की मांग ने सियासी पारा बढ़ा दिया है। हालांकि देश में जातिगत जनगणना कराये जाने का किसी प्रकार का कोई प्रावधान नहीं किया गया है, लेकिन मांग से राजस्थान में 50-55 प्रतिशत आबादी सीधे तौर पर प्रभावित नजर आ रही है। यही वजह है कि इसे लेकर कोई भी राजनीतिक पार्टी अपना रुख स्पष्ट नहीं कर रही है।

चुनौती का सामना कर रहे दोनों दल

बता दें जातिगत जनगणना कराने, सरकारी नौकरियों में जातियों की संख्या के हिसाब से आरक्षण देने की जो मांग की जा रही है वह राजस्थान ही नहीं देश भर बीजेपी और कांग्रेस के लिए किसी मुश्किल चुनौति से कम नहीं है। ऐसे में कांग्रेस भाजपा दोनों ही पार्टियों ने मौन साध लिया है। बता दें जातिगत जनगणना होने पर उसके हिसाब से ही आरक्षण तय होगा। जिस जाति की संख्या कम होगी उसे सरकारी नौकरियों में उतना ही कम स्थान मिलेगा। जाति की संख्या कम और अधिक होने से ये नहीं माना जा सकता कि उसके युवाओं में प्रतिभा की कमी है। ऐसा होने पर जातियों में सामाजिक और राजनीतिक आक्रोश पनपेगा।

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