कांग्रेस के पूर्व अयक्ष राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता शून्य होते ही कांग्रेस और राहुल गांधी के राजनीतिक भविष्य को लेकर सवाल खडे़ होने लगे है। वैसे गणित में शून्य का खासा महत्व होता है। शून्य का अविष्कार भारत के ही गणितज्ञ ने किया है। शून्य का अविष्कार भारत में किया गया था । शून्य के जनक के रुप में भारतीय गणितज्ञ आर्य भटट को माना जाता है। शून्य किसी भी अंक के आगे या पीछे लग जाए तो उसकी गणना बदल जाती है। उसका मान बदल जाता है। लेकिन सियासत में किसी के पीछे शून्य लग जाए तो उसका राजनीतिक भविष्य खतरे में पड़ जाता है। कुछ ऐसा ही इन दिनों कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ हो रहा है। लोकसभा से उनकी सदस्यता शून्य घोषित कर दी गई है।
- राहुल गांधी की सदस्यता शून्य
- कांग्रेस का अब क्या होगा
- क्या राहुल गांधी जीरो से बनेंगे सियासत के हीरो
- कांग्रेस का राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन
सूरत की कोर्ट के बाद जो फैसला लोकसभा अध्यक्ष की ओर से लिया गया उसने कांग्रेस में भूचाल ला दिया है। इस फ़ैसले के बाद ये चर्चा शुरू हो गई है। अब दिल्ली से लेकर देशभर में राजनीति कैसे आगे अपना रंग बदलेगी। इस फैसले का राहुल गांधी के लिए क्या सियासी मायने हैं। कांग्रेस अपने हाथ से निकल चुकी प्रतिष्ठा हासिल करने में जुट गई है। उसके लिए इसके क्या मायने हैं। साथ ही इसे देखते हुए विपक्षी पार्टियों के एकजुट करने का जो सपना है क्या वह अब पूरा होगा या नहीं ऐसे कई सवाल उठ रहे हैं। दरअसल 2024 के लोकसभा चुनाव होने में अभी एक साल से ज़्यादा का समय बचा हुआ है। लेकिन उससे उससे पहले कर्नाटक, राजस्थान , छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। इन राज्यों में कांग्रेस की टक्कर भाजपा के साथ होना है। ऐसे में ये सवाल भी उठ रहा है कि राहुल गांधी की सदस्यता जाने से क्या कांग्रेस यहां चुनावी माहौल अपने पक्ष में बना पाएगी।
कांग्रेस के पास आपदा को अवसर में बदलने का मौका
राजनीतिक विषलेषकों की माने तो राहुल गांधी समेत सभी विरोधी दलों के पास जनता को ये बताने का एक मौक़ा है कि उनको कैसे निशाने पर लिया जा रहा है। लेकिन यह कांग्रेस पर निर्भर रहेगा कि वह किस तरह राहुल गांधी की सदस्यता जाने के मुद्दे को लेकर जनादोलनश् खड़ा कर सकत है। लेकिन एक बात तो साफ़ है कि सारे विरोधी दल इस मामले में राहुल गांधी के साथ खड़े हैं। गैर बीजेपी और एनडीए से परे राजनीतिक दलों में यह राय बनती जा रही है कि यह लोकतंत्र के ख़िलाफ़ है। विरोधी दलों के नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है। इस पर सर्वसम्मति कैसे होती है। सारे दल इकट्ठा कैसे रह पाते हैं। किन मुद्दों पर और एकता बढ़ती है या बिखरती है। कांग्रेस अपने कार्यकर्ताओं में किस तरह जोश भर सकतीती है। ये सब आने वाले दिनों में देखने वाली बात होगी।
इंदिरा गांधी की भी हुई थी लोकसभा की सदस्यता शून्य
जिस तरह से आपातकाल के बाद जेल जाने को स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने एक अवसर में बदल दिया था कुछ वैसा ही अवसर राहुल गांधी के भी सामने है। लेकिन सवाल ये है कि क्या राहुल गांधी अपनी दादी की तरह ऐसा कर पाएंगे? । सियासी जानकार कहते हैं कि इस निर्णय ने कांग्रेस में नई ऊर्जा डाल दी है। राहुल गांधी को एक तरीक़े का बूस्ट मिला है। कांग्रेस के लीडर कहते हैं कि सबको पता है कितने ग़लत तरीक़े से यह निर्णय हुआ है। जब बाबरी मस्जिद का फ़ैसला आता है तो कहते हैं कि यह मोदीजी ने कराया है और जब ये फ़ैसला आया है तो कह रहे हैं कि कोर्ट ने किया है। हमसे क्या मतलब है। यह कुछ ऐसा ही है जैसे कभी स्वर्गीय इंदिरा गांधी को आपातकाल के बाद सताया गया था। इंदिरा गांधी ने आपातकाल लाकर ग़लती की थी। लेकिन बाद में जब उन्हें जेल भेज दिया गया तो उन्होंने सत्ता में वापसी की। सियासी जानकारीों की माने तो राहुल गांधी के लिए यह ब्लेसिंग इन डिसगाइज़ हो सकता है। इससे पहले किसी को डिफ़ेमेशन केस में दो साल की सज़ा नहीं हुई है। तो यह सब बाइ डिज़ाइन किया गया है। बहरहाल कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की संसद सदस्यता छिनने के बाद से कांग्रेस उग्र नजर आ रही है। पार्टी ने इस मुदद्दे को लेकर बीजेपी और उसकी केन्द्र सरकार के खिलाफ राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन का जरिया बना लिया है। कांग्रेस कार्यकर्ता देश के विभिन्न शहरों में प्रदर्शन कर रहे हैं। कांग्रेस ने केन्द्र सरकार के खिलाफ कानूनी और राजनीतिक जंग में उतरने का एलान करते हुए बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर बेहद तीखा हमला बोला है।।