प्रियंका गांधी के महाकौशल दौरे से क्यों चिंतित है बीजेपी?, कांग्रेस दोहराना चाहती हैं 2018 का प्रदर्शन

priyanka gandhi

मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव रणभेरी बजने से पहले सियासी दल सक्रिय हो गए हैं। इस बीच प्रदेश में कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार के अभियान की शुरुआत महासचिव प्रियंका गांधी 12 जून को महाकौशल से करने जा रहीं हैं। इस पर सियासी बयानबाजी शुरु हो गई।

बहुसंख्यक वोटरों को देंगी धार्मिक संदेश

प्रियंका गांधी 12 जून को जबलपुर में मां नर्मदा की पूजा कर बहुसंख्यक वोटरों को धार्मिक संदेश देंगी। इसके बाद एक बड़ी जनसभा रखी गई है। जिसमें वे चुनाव अभियान का आगाज करेंगी। एमपी कांग्रेस ने इस रैली में करीब एक लाख लोगों को जुटाने का लक्ष्य रखा है। प्रियंका गांधी के महाकौशल रैली करने चुनने के पीछे की वजह मालवा-निमाड़ में राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा कर चुके हैं। महाकौशल में आदिवासी वोटरों की अधिक संख्या है। जो कांग्रेस का वोट बैंक माना जाता है। आदिवासी क्षेत्रों से मिले वोट से ही कांग्रेस ने 2018 में सत्ता में वापसी की थी। कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनाव में महाकौशल अंचल की 38 में से 26 सीटों पर कब्जा किया था। ऐसे में कांग्रेस 2018 की जीत को 2023 में दोहराना चाहती है। यहां 13 सीट आदिवासियों के लिए और 3 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। सियासी पंडित मानते हैं कि महाकौशल की सीटें सत्ता पर पहुंचने का रास्ता तय करती हैं। इतना ही नहीं महाकौशल से सटा हुआ विंध्य क्षेत्र है। यहां के 7 जिलों में बीजेपी ने 30 में से 24 सीट पर जीत दर्ज की थी। इस बार भी बीजेपी लगातार यहां फोकस कर रही है। ऐसे में कांग्रेस नेता दावा कर रहे है कि महाकौशल में प्रियंका गांधी की रैली से विंध्य अंचल में भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भरेगा।

महाकौशल अंचल की 26 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा

महाकौशल में 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को निराशा मिली थी। यहां की 38 सीटों में से भाजपा के पास सिर्फ 11 सीटें है, जबकि कांग्रेस ने 26 सीटों पर जीत दर्ज की थी। एक सीट निर्दलीय के खाते में गई थी। वहीं, 2013 में भाजपा ने महाकौशल में 13 सीटें जीती थी। कांग्रेस 2018 की जीत को दोहराना चाहती है। यहां 13 सीटें आदिवासियों और 3 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। महाकौशल की सीटें सत्ता पर पहुंचने का रास्ता तय करती हैं। महाकौशल में नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा का परिणाम उत्साह जनक नहीं रहा। यहां जबलपुर और छिंदवाड़ा महापौर का चुनाव भाजपा हार गई। कमलनाथ के गढ़ में 18 साल बाद महापौर का चुनाव हार गई। वहीं, जबलपुर में 22 साल बाद भाजपा हारी। वहीं, कटनी में भी निर्दलीय प्रत्याशी प्रीति सूरी चुनाव जीती थी। हालांकि बाद में वह भाजपा में शामिल हो गई। कांग्रेस ने 2018 में चुनाव जीतने के बाद महाकौशल से दो विधायकों को मंत्री बनाया था। इसमें तरुण भनौत और लखन घनघोरिया को मंत्री बनाया था। वहीं, भाजपा ने अपने मंत्री परिषद में महाकौशल से किसी को भी मंत्री नहीं बनाया है।

सीटों का सियासी समीकरण

जबलपुर जिले में 8 सीट है। पाटन, बरगी, जबलपुर पूर्व, जबलपुर उत्तर, जबलपुर कैंट, जबलपुर पश्चिम, पनागर, सीहोरा है। यहां कांग्रेस और भाजपा दोनों के पास चार चार है। छिंदवाड़ा जिले की 7 सीटों में छिंदवाड़ा, जुनारदेव, अमरवाड़ा, चौरई, सौंसर, परासिया, पांढुर्णा है। यह सभी कांग्रेस ने जीती। डिंडौरी की दो सीट डिंडौरी और शाहपुरा है। दोनों पर कांग्रेस का कब्जा है। बालाघाट में भी 6 सीट है। बैहर, बालाघाट, परसवाड़ा, लांजी, बारासिवनी, कटंगी है। इनमें से 5 सीट कांग्रेस और बारासिवनी निर्दलयी प्रदीप जायसवाल ने जीती। कटनी की बात करें तो यहां 4 सीट बड़वारा, विजयराघवगढ़, मुड़वारा, बहोरीबंद है। जिसमें तीन सीट भाजपा और 1 कांग्रेस के पास है। नरसिंहपुर की चार सीट नरसिंहपुर,गोटेगांव, तेंदूखेड़ा, गाडरवाड़ा हैं। जिसमें 3 कांग्रेस और 1 भाजपा के पास है। वहीं सिवनी की चार सीट बरघाट, सिवनी, केवलारी, लखनादौन है। जिसमें दो कांग्रेस और दो भाजपा के पास है। वहीं मंडला जिले की बात करें तो 3 सीट हैं बिछिया, निवास, मंडला। जिसमें से दो सीट कांग्रेस के कब्जे में है। और एक भाजपा के पास है।

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