सियासी चौपाल पर फिर नीतीश की दिखने लगी ताकत,जिधर रहेंगे उधर का पलड़ा भारी होगा!

विपक्ष की दूसरी बैठक के बाद बने नए समीकरण

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर ताकतवर दिखाई दे रहे हैं। सुशासन बाबू के नाम से अपनी छवि बनाने वाले नीतीश की जितनी जरूरत विपक्ष को उतनी जरूरत एनडीए को दिखाई दे रही है। हालांकि दोनों ही भीतर ही भीतर नीतीश की ताकत को समझ रहे हैं लेकिन उजागर नहीं होने देना चाहते हैं। उन्हे लगता है कि कहीं सुशासन बाबू को अपनी ताकत का अहसास करा दिया तो उनके लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।

विपक्ष से नाराज नीतीश बाबू

सियासी गलियों में चर्चा चल रही है कि बेंगलुरु में हुई विपक्षी दलों की बैठक में नीतीश कुमार कई मुद्दों पर सहमत नहीं थे। इससे उनकी इतनी नाराजगी बढ़ी कि उन्होंने बैठक से बाहर निकल गए। नीतीश का बैठक से जाना विपक्षी दलों को अपने आप में बड़ा झटका था। हालांकि दूसरे ही दिन जनता दल यूनाईटेड के अध्यक्ष ललन सिंह ने इस मामले पर सफाई देते हुए कहा कि विपक्षी दलों के गठबंधन का नाम इंडिया सबकी सहमति से रखा गया है। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार विपक्षी दलों की बैठक के सूत्रधर हैं और सूत्रधर कभी नाराज नहीं होते हैं। जहां तक उन्हे संयोजक बनाने की बात है तो इस मुद्दे को जबरन तूल दिया जा रहा है अभी इस बिंदु पर कोई चर्चा ही नहीं हुई है। मुंबई में होने वाली तीसरी बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा होगी।

नाराज हुए तो क्या एकता पर ग्रहण लगेगा

राजनीति की गलियों पर इस बात की भी चर्चा जोरों पर चल रही है कि यदि बिहार की सीएम नीतीश कुमार विपक्षी दलों से नाराज हो गए तो विपक्षी एकता को ग्रहण भी लग सकता है। क्योंकि नीतीश कुमार ने पूरे कुनबे को जोड़ने में काफी मेहनत की है। उनके दिए गए भरोसे के कारण ही कई दल एक साथ एक़त्रित हुए हैं। यदि वे ही नाराज होकर घर बैठ गए तो कई दल और नेता ऐसे हैं विपक्षी गठबंधन से छिटक सकते हैं। फिर इस संभावना से भी इंकार नहीं किया सकता है कि विपक्ष की एकता कमजोर हुई तो विरोधी दल भाजपा इसका फायदा उठाने की पूरी कोशिश करेगा।

पाला बदलते देर नहीं लगेगा

सीएम नीतीश कुमार जब तक होता है सहन करते हैं इसके बाद उन्हे पाला बदलते देर नहीं लगती है। उन्हे प्रेशर पॉलिटिक्स कतई पसंद नहीं है। वे हमेशा से ही चुप रहकर राजनीति करने में भरोसा करते रहे हैं। माना ये भी जा रहा है कि नीतीश कुमार को यदि विपक्ष ने संयोजक नहीं बनाया तो उनकी नाराजगी बढ़ सकती है। और विपक्षी उन्हे मनाने में कामयाब नहीं हो पाए तो सारे प्रयासों को पलीता लग सकता है।

नीतीश और मायावती पर है सबकी नजर

बिहार के सीएम नीतीश कुमार और यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती पर सभी की नजरेें टिंकी हुई है। वजह ये है कि यदि नीतीश की नाराजगी बढ़ी तो भाजपा इसका फायदा उठा लेगी और पूरा का पूरा दांव पलट सकता है। इसी तरह बसपा प्रमुख मायावती का हाथी भाजपा की तरफ मुड़ गया तो सियासी समीकरण बदलने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।

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