नीतीश की चुप्पी में छुपा है बड़ा सियासी दांव,इस रणनीति पर चल रहे हैं बिहार के मुख्यमंत्री

प्रशांत किशोर ने तमाम अटकलों को खारिज किया

महाराष्ट्र में मची सयासी धमाचौकड़ी की आहट बिहार में भी सुनाई दे रही है। राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लेकर अटकलों और कयासों की दुकानें भी चल पड़ी हैं। जिसकी जो मर्जी वो कयास लगा रहा है। जबकि नीतीश कुमार चुपचाप अपने काम में लगे हुए हैं। वे विपक्ष को एकजुट करना चाहते हैं और भाजपा को चुनावी संग्राम में टक्कर देने की रणनीति पर चल रहे हैं। इसी रणनीति में उनकी चुप्पी भी छुपी है। अभी तक उन्होंने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया जिसमें उनका दर्द छलक रहा हो।

चुप्पी में छुपा है सियासी दांव

सीएम नीतीश कुमार के बारे में अक्सर माना जाता है कि उनकी चुप्पी में कई सियासी संकेत छुपे होते हैं। वे किसी को कुछ बताते नहीं हैं,जब भी मौका मिलता है तो धमाका करने से चूकते भी नहीं है। फिर भी राजनीति के जानकार मानकर चल रहे हैं कि जिस तरह से विपक्ष को एकजुट करने में नीतीश अपनी ताकत लगा रहे हैं उसका कहीं न कहीं भाजपा पर मानसिक दबाव तो बन रहा होगा। इसी प्रेशर पॉलिटिक्स का फायदा नीतीष कुमार उठा सकते हैं। यदि उन्हें एनडीए में जाना भी होगा तो इस प्रेशर पॉलिटिक्स से वे अपनी अधिकतम बातें मनवाने में कामयाब हो सकते हैं।

पीके ने नीतीश को लेकर कही बड़ी बात

बिहार में चुनावी रणनीतिकार और जन सुराज यात्रा के संस्थापक प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि हर एक राज्य का अपना राजनैतिक स्वभाव होता है। महाराष्ट्र में हुए घटनाक्रम को बिहार से नहीं जोड़ा जा सकता है। बिहार की अपनी राजनीति है। अपनी यात्रा लेकर समस्तीपुर पहुंचे पीके ने कहा कि बिहार में उलट पुलट को लेकर जो खबरें आ रहीं हैं उनका कोई मजबूत आधार नहीं है।

जनता का घोटालों से सीधा लेना देना नहीं होता है

पीके ने लैंड फॉर जॉब के मामले पर कहा कि उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर लगे आरोपों को लेकर सीबीआई ने चार्जसीट दायर कर दी है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इससे आम जनता पर कोई बड़ा असर पड़ेगा या वोटबैंक कट जाएगा। ऐसा बिलकुल नहीं है। आम लोगों की नजर से देखें तो लोगों का पता है कि रेड सिर्फ विपक्षी दलों के यहां पड़ रही है। उससे भी ज्यादा दिक्कत ये है कि जो लोग सत्ताधारी दल के साथ चले जाते हैं उनके यहां रेड डलना बंद हो जाती है। आजकल सियासी दांव पेंच आम लोग भी अच्छी तरह से समझने लगे हैं। इसलिए सवाल ये बिलकुल नहीं है कि किस पर क्या आरोप है। सवाल ये है कि कार्रवाई के पीछे की मंशा क्या है।

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