उत्तरप्रदेश की राजनीति से लकर देश की सियासत में खासा दखल रखने वाले मुलायम सिंह यादव इन दिनों अस्वस्थ हैं। गुड़गांव के मेदांता हास्पिटल में उनका उपचार जारी है। कभी पहलवानी तो कभी शिक्षक के रूप में मुलायम सिंह यादव का जीवन बहुत उतार चढ़ाव से भरा रहा है। हालांकि, समाजवादी पार्टी के गठन के साथ उनका राजनीतिक करियर चमका। उनकी राजनीति के साथ ही उनकी प्रेम कहानी भी काफी चर्चित रही। जानें मुलायम सिंह की प्रेम कहानी के बारे में…
अस्पताल से शुरु हुई प्रेम कहानी
मुलायम सिंह यादव की पहली पत्नी और अखिलेश यादव की मां मालती देवी का वर्ष 2003 में लंबी बीमारी के चलते निधन हो गया था। कहा जाता है कि उनकी दूसरी पत्नी साधना गुप्ता से मुलाकात के समय मुलायम सिंह का राजनीतिक करियर बुलंदियों पर था। 1982 में जब मुलायम लोकदल के अध्यक्ष बनेथे तब साधना सपा में एक कार्यकर्ता के रूप में काम करती थीं। मुलायम से उनकी पहली मुलाकात एक अस्पताल में ही हुई थी। जहां साधना नर्स थीं। कहा जाता है कि मुलायम को अस्पताल में हुई पहली मुलाकात में ही साधना पसंद आ गई थीं।
अमर सिंह रहे गुप्त रिश्ते के गवाह
दरअसल, साधना गुप्ता का फर्रुखाबाद के एक व्यापारी चंद्रप्रकाश गुप्ता की पत्नी थीं। लेकिन दोनों बाद में अलग हो गए। इसके बाद से मुलायम सिंह यादव और साधना की मुलाकात बढ़ी उनके बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं। इस समय तक इस रिश्ते के बारे में सिर्फ समाजवादी पार्टी के तत्कालीन वरिष्ठ नेता और मुलायम के करीबी अमर सिंह को ही पता था।
पत्नी जानती थी मुलायम सिंह और साधना के रिश्ते
80 का दशक खत्म होने को था तब मुलायम सिंह और साधना के गुप्त प्रेम संबंध की भनक उनकी पहली पत्नी मालती देवी को लग गई थी। लेकिन उस समय मालती देवी कई बीमारियों से जूझ रही थीं। जिसके चलते 2003 में उनकी निधन हो गया। इसके बाद से साधना गुप्ता मुलायम सिंह पर उन्हें अपनी आधिकारिक पत्नी के रूप में स्वीकार करने का दबाव डालने लगीं। लेकिन राजनीतिक और पारिवारिक कारणों के चलते मुलायम सिंह ने इस बात से इंकार कर दिया।
अखिलेश को नहीं था रिश्ता मंजूर
कुछ सालों बाद धीरे-धीरे प्रदेश भर में ये चर्चाएं होने लगीं कि मुलायम सिंह यादव की दो पत्नियां हैं। इसी दौरान अखिलेश को भी साधना के बारे में पता चल गया। आखिरकार रिश्ते के करीब 15 साल बाद भी मुलायम साधना के साथ अपने रिश्ते को आधिकारिक रूप से स्वीकारने की स्थिति में नहीं थे। इस संबंध के बारे में अभी तक केवल शिवपाल सिंह और अमर सिंह को ही जानकारी थी। अंततः 2007 में अमर सिंह ने पार्टी के सार्वजनिक मंच से मुलायम से आग्रह किया कि वे साधना गुप्ता को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकारें। इस बार मुलायम मना नहीं कर पाए। लेकिन अखिलेश ने कभी भी साधना गुप्ता को अपनी मां के रूप में नहीं स्वीकारा। वे हमेशा ही उनसे दूरी बनाए रखते थे।
80 के दशक में की साइकल की सवारी
मुलायम सिंह यादव के साथ रहने वाले अक्सर बताया करते हैं कि 80 के दशक में किस तरह लखनऊ में मुलायम साइकिल से सवारी करते थे। साइकिल से बहुत घूमे। कई बार साइकल से ही वे अखबारों के दफ्तर पहुंच जाया करते थे। जहां पत्रकारों से घंटों उनकी चर्चा होती थी। उस दौर में उन्हें सादगी पसंद और जमीन से जुड़ा ऐसा नेता माना जाता था जो लोहियावादी था। समाजवादी था और धर्मनिरपेक्षता की बातें करता था। यह बात और है कि 80 के दशक में उनकी पहचान यादवों के नेता के रुप में हुई। किसान और गांव की बैकग्राउंड ने उन्हें किसानों से जोड़े रखा तो अल्पसंख्यक वर्ग के पसंदीदा वह राम मंदिर आंदोलन के शुरुआती दिनों में बने।
कभी थे विरोधी फिर मजबूत की वंशवाद की बेल
मुलायम सिंह यादव 80 के दशक तक अपने राजनीतिक गुरु चरण सिंह के साथ मिलकर इंदिरा गांधी को वंशवाद के लिए कोसने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे। हालांकि, बाद में धीरे-धीरे वे वंशवाद के प्रति लचीले हो गए। खुद अपने बेटे और कुनबे को उन्होंने राजनीति में बडे़ पैमाने पर आगे बढ़ाने का काम किया।
इस तरह बनाई अपनी अलग पार्टी
चौधरी चरण सिंह से तब वह क्षुब्ध हो गए थे जबकि उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल में मुलायम सिंह के यादव के जबरदस्त असर और पकड़ के बाद भी अमेरिका से लौटे अपने बेटे अजित सिंह को पार्टी की कमान देनी शुरू कर दी। इस बीच चरण सिंह के निधन के बाद जब पार्टी में बिखराव हुआ। जिसके एक धड़े की अगुवाई मुलायम सिंह करने लगे। आखिर में 1992 में उन्होंने समाजवादी पार्टी का गठन किया। साइकल प्रेम के चलते उन्होंने पार्टी का प्रतीक चिन्ह साइकल को ही बनाया।
कुछ ऐसा रहा नेताजी का राजनीतिक सफर
साल 1967 में जसवंतनगर सीट से विधानसभा चुनाव जीतने वाले मुलायम ने विधायक से लेकर रक्षामंत्री तक का सफर तय किया। 1967, 1974, 1977, 1985 और 1989 में वह विधानसभा के सदस्य रहे। इसके बाद 1982 से 1985 में वह विधानपरिषद के सदस्य रहे। 1992 में उन्होंने समाजवादी पार्टी का गठन किया।
तब भाई शिवपाल उनके बहुत काम आए
मुलायम सिंह यादव के लिए 1980 का दशक राजनीति का बेहद मुश्किल दौर था। उन पर हमले हुए। साजिश रची गई लेकिन हर बार उनके छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव ने उन्हें बचाने में जान की बाजी भी लगा दी। इसी वजह से शिवपाल यादव हमेशा उनके करीबी सियासी सलाहकार बने रहे।