मध्य प्रदेश में साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के उन विधायकों का टेंशन बढ़ गया है जिनका पार्टी सर्वे रिपोर्ट में परफॉर्मेंस खराब निकला है। ये विधायक अपने लिए सुरक्षित सीट तलाश रहे हैं। इन्हें डर है कि इस बार कहीं टिकट ही न कट जाए। वहीं इस चुनाव में बीजेपी उन विधायकों के भी टिकट काट सकती है जो तीन बार से लगातार चुनाव लड़ रहे हैं और जिनका परफॉरमेंस ठीक नहीं है, जनता के बीच छवि खराब है। ऐसे में विधायक अगले विधानसभा चुनाव के मैदान में नजर नहीं आएंगे।
- नवंबर में होंगे विधानसभा के चुनाव
- बीजेपी ने शुरु किया चुनावी रणनीति पर काम
- बनाई जा रही अबकी बार 200 पार की रणनीति
- 60 पार के विधायकों दिया जा सकता है विश्राम
- नए चेहरे तलाशने में जुटा संगठन
गुजरात की तर्ज पर होगा टिकट वितरण
पार्टी सूत्र बताते हैं कि गुजरात की तर्ज पर मध्य प्रदेश में भी BJP कई दिग्गजों का टिकट काट सकती है। मध्य प्रदेश में भाजपा विधायकों और नेताओं के एक धड़े को यह डर है कि गुजरात की रणनीति इस सूबे में भी न दोहरा दी जाए। दरअसल भाजपा ने पिछले साल गुजरात में पूरा मंत्रिमंडल बदल दिया था। यही नहीं एंटी इनकंबेंसी की चोट से बचने के लिए कई मौजूदा विधायकों का टिकट काट दिये थे। मध्य प्रदेश में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। पार्टी के कई विधायक सत्ता विरोधी लहर को दूर करने के लिए मध्य प्रदेश में गुजरात का फार्मूला अपनाए जाने को लेकर चिंतित नजर आ रहे हैं। BJP मध्य प्रदेश में करीब 20 साल से सत्ता में है। ऐसे में बीजेपी नहीं चाहती कि विधायकों की नाराजगी का खामियाजा उसे उठाना पड़े। लिहाजा जिन विधायकों की रिपोर्ट ठीक नहीं मिल रही है उनके टिकट पर बीजेपी इस बार कैची चला सकती है।
ऐसे विधायकों से खुद ऐलान करने को कहेगी बीजेपी
सूत्रों की मानें तो पार्टी की सबसे ज्यादा नजर तीन बार से ज्यादा बार के विधायक और 60 पार कर चुके नेताओं और उन खास लोगों पर है जिनके चलते पार्टी को नुकसान की आशंका है। पार्टी में यह भी राय बन रही है कि जिन नेताओं की छवि अच्छी नहीं है या जनता में नाराजगी है। उनसे चुनाव से लगभग दो माह पहले ही यह ऐलान करा दिया जाए कि वे चुनाव नहीं लड़ेंगे। ऐसा करने पर एंटीइंकम्बेंसी को कम किया जा सकेगा। इसके बाद तीन बार के विधायकों और अन्य पर फैसला हो। इसमें पार्टी को बगावत की आशंका है। मगर पार्टी जोखिम लेने को तैयार है। इसकी भी वजह है क्योंकि पार्टी को इतना भरोसा है कि जिनके टिकट कटेंगे उनमें से मुश्किल से पांच फीसदी ही नेता ऐसे होंगे, जो दल बदल करने का जोखिम लेंगे।
चिंता में तीन बार के विधायक
यहीं वजह है कि ऐसे विधायकों के माथे पर चिंता की लकीरें दिखने लगी हैं, क्योंकि जमीनी फीडबैक उसके पक्ष में नहीं आ रहा है। यही कारण है कि पार्टी गुजरात फार्मूले को राज्य में सख्ती से लागू करने वाली है। इसके चलते तीन बार या उससे ज्यादा बार के विधायकों की उम्मीदवारी तो खतरे में पड़ ही सकती है। साथ में दिग्गज नेता चुनाव न लड़ने का ऐलान तक कर सकते हैं। जिनमें मंत्री कमल पटेल के साथ कई दूसरे विधायकों के नाम शामिल हैं।
पिछले चुनाव से भी अधिक चुनौतीपूर्ण स्थिति
मप्र में वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को डेढ़ दशक बाद सत्ता से बाहर होना पड़ा था। मगर इस बार परिस्थितियां पार्टी को पिछले चुनाव से भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण नजर आ रही हैं। जमीनी स्तर से जो फीडबैक आ रहा है। वह पार्टी के लिए संदेश दे रहा है कि जमीनी हालात भाजपा के पक्ष में नहीं है। साथ ही इतने भी बुरे नहीं हैं कि उन्हें संभाला न जा सके।
क्या कहता है बीजेपी का सर्वे
2018 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी के आंतरिक सर्वे में कई मंत्रियों के विधानसभा में चुनाव हारने की रिपोर्ट आई थी। कई मंत्रियों की सीट बदल दी गयी थी। लेकिन अपनी परंपरागत सीट पर चुनाव लड़ने वाले कई मंत्री विधायकी से हाथ धो बैठे थे। अब यही वजह है कि पार्टी सर्वे के आधार पर विधानसभा में अपनी स्थिति को बेहतर बनाने की कोशिश में विधायक हैं। जहां स्थिति नहीं सुधरेगी वहां विधायक दूसरी विधानसभा सीट पर अपनी दावेदारी ठोक सकते हैं।