ग्वालियर चंबल में फिर शिवराज सिंधिया का दौरा, बिछने लगी चुनावी बिसात, क्या हैं ग्वालियर चंबल का चुनावी समीकरण,यहां जो जीता वही सिकंदर!

Gwalior Chambal Shivraj Scindia

MP Assembly Election:मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस ​बीजेपी के अन्य दल भी मैदान में नजर आने लगे हैं। राजनीतिक पार्टियों की चुनावी बिसात बिछना शुरु हो गई है। दोनों प्रमुख पार्टियों के साथ सपा, बसपा और आम आदमी पार्टी ने भी इस बार चुनाव में अपनी ताकत दिखाने की तैयारी कर ली है। बात करें ग्वालियर चंबल की तो यहां 34 सीटों पर मतदाताओं को रिझाने की कवायद में राजनीतिक पार्टियां जुट गई हैं। सीएम शिवराज सिंह चौहान और केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्स सिंधिया शुक्रवार को ग्वालियर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र के लिए 185 करोड़ 55 लाख के विकास कार्यों की आधारशिला रखेंगे। साडा क्षेत्र में आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के भी शामिल हो सकते हैं। क्या है ग्वालियर चंबल क्षेत्र की 34 विधानसभा और 4 लोकसभा सीटों का समीकरण, ​यहां कब किसका पलड़ा भारी रहा आइये समझते हैं।

ग्वालियर-चंबल की 34 विधानसभा सीट

ग्वालियर जिले में 6 सीट हैं। जिसमें ग्वालियर ग्रामीण, ग्वालियर, ग्वालियर पूर्व, ग्वालियर दक्षिण, भितरवार और डबरा—एससी। श्योपुर जिले में 2 सीटें हैं श्योपुर और विजयपुर। जबकि मुरैना जिले में सबलगढ़, जौरा, सुमावली, मुरैना, दिमनी और एससी सीट अंबाह है। भिंड जिले में 5 सीटें अटेर, भिंड, लहार, मेहगांव और गोहद (एससी) शामिल हैं दतिया जिले में सेवड़ा, भांडेर (एससी) और दतिया है। शिवपुरी जिले की बात करें तो यहां करेरा (एससी), पोहारी, शिवपुरी, पिछौर और कोलारस सीट शामिल हैं। गुना जिले में बमोरी, गुना (एससी), चचौरा और राघोगढ़ को शामिल किया जाता है। अशकोनगर जिले की विधानसभा सीटों में अशोक नगर (एससी), चंदेरी और मुंगावली शामिल हैं।

2018 में कांग्रेस को मिली थी 26, बीजेपी को 7 सीट

साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव की बात करें तो 34 में कांग्रेस को 26 और बीजेपी को 7 सीट मिली थी। एक सीट पर बसपा ने जीत हासिल की थी। जिससे 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी, लेकिन 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के चलते कांग्रेस के हाथ से सरकार ही नहीं अंचल के कई विधायक चले गए। यहां 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में बीजेपी को 19 सीट पर जीत मिली थी और कांग्रेस को 9 सीटों पर सिमट कर रह गई। 2020 के उपचुनाव के बाद तस्वीर कुछ इस प्रकार हे कि यहां बीजेपी और कांग्रेस के पास बराबर विधायक हैं। यानी 17- 17 विधायक दोनों पा​र्टी के हैं।

सिंधिया के रहते भी 11 विधायक ही जीते

बात करें विधानसभा चुनाव 2013 की तो उस समय कांग्रेस के पास सिंधिया की ताकत थी इसके बाद भी  विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 34 में से 21 सीट हासिल की थीं। जिसके 2013 में बीजेपी की सरकार बनी थी और इन चुनावी आंकड़ों में भी बीजेपी इस अंचल में सबसे बड़ी पार्टी थी। तब कांग्रेस के खाते में 11 विधायक आए थे। तब 2 सीट पर बसपा ने भी जीत हासिल की थी। बता दें तब 4 सीटों पर बसपा दूसरे नंबर की पार्टी बनी थी।

2008 और 2003 में भी कम हुईं कांग्रेस की सीट

2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 18 सीट हासिल की थी। जबकि कांग्रेस को 13 सीट मिली। तब बसपा ने 3 सीटों पर जीत दर्ज की थी। 2008 में भी प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी थी। इससे पहले
2003 में बीजेपी को 23 सीट पर जीत मिली थीं और कांग्रेस के खाते में 9 सीट ही मिली। बसपा ने एक सीट पर जीत दर्ज की तो राष्ट्रीय समता दल को भी एक सीट मिली थी। बीजेपी ने 2003 में इस क्षेत्र से 23 सीट हासिल कर प्रदेश में तत्कालीन सीएम दिग्विजय सिंह के हाथ से सत्ता छीन ली थी।

क्षेत्र के प्रमुख नेता

ग्वालियर चंबल क्षेत्र के प्रमुख नेताओं में केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेन्द्र सिंह तोमर, शिवराज कैबिनेट में शामिल गृहमंत्री डॉ.नरोत्तम मिश्रा, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, नेता प्रतिपक्ष डॉ.गोविंद सिंह, पूर्व मंत्री लाखन सिंह, केपी सिंह और जयवर्धन सिंह ग्वालियर-चंबल संभाग से आते हैं।

कांग्रेस की ताकत अब भाजपा में

कभी ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर चंबल में कांग्रेस की ताकत हुआ करते थे, लेकिन 2020 के बाद ये ताकत बीजेपी को मिल गई। ऐसे में कांग्रेस सामने सिंधिया की बराबरी का कोई नेता नहीं ऐसे में पार्टी प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ स्वयं इस क्षेत्र को देख रहे हैं, वे लगातार दौरा करते रहते हैं। क्योंकि कमलनाथ जानते हैं कि अगर ग्वालियर-चंबल में कांग्रेस को अपना पुराना प्रदर्शन दोहराना है तो उसे ग्वालियर-चंबल में खुद को मजबूत करना होगा। पिछले कुछ विधानसभा चुनाव के परिणाम पर गौर करें तो इस क्षेत्र ने जिस भी दल को भी ज्यादा सीटें मिलीं प्रदेश में उसकी सरकार बनी है। यहां बहुजन समाज पार्टी का भी खासा वोट बैंक है। पिछले चुनावों में उसके कुछ विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे भी। दरअसल यहां कई सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। जिससे साबित होता है यहां पर अनुसचित जाति वर्ग के मतदाताओं की संख्या अधिक हैं। जिसके चलते चुनाव कोई भी हो कोई भी दल बीएसपी को नजर अंदाज नहीं करता।

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