क्या फ्री की रेवड़ी के भरोसे एमपी में सफल होंगे केजरीवाल?

Arvind Kejriwal

आम आदमी पार्टी के संयोजक एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा है वह मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में छह मुद्दों को लेकर जनता के बीच जा रहे हैं। इनमें फ्री बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य के अलावा बुजुर्गों को निशुल्क तीर्थ यात्रा और महिलाओं के लिए मुफ्त ट्रांसपोर्टेशन शामिल है। । ऐसे में बड़ा सावाल यह है कि यदि बीजेपी और कांग्रेस भी मुफ्त के वादों पर खुलकर राजनीति करने लगे हैं तो अरविंद केजरीवाल की राजनीति का क्या होगा। जनता किसके वादों पर भरोसा करेगी और क्या अब भी केजरीवाल बीजेपी या कांग्रेस से को परास्त करने में कामयाब हो सकेंगे।

केजरीवाल ने कहा कि जिस तरह से आम आदमी पार्टी ने दिल्ली और पंजाब में अपने चुनाव में किए वादों को पूरा करने में सफलता हासिल की है। उसी तर्ज पर अब मध्यप्रदेश में भी आम आदमी पार्टी सभी 230 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी और इन्हीं मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाएगी। वहीं ग्वालियर में दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल ने जनसभा को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि दिल्ली में 7 फ्री की रेवड़ियां बांटते हैं तो पीएम मोदी बहुत गुस्सा हैं।

बीजेपी ने लगाया आरोप केजरीवाल का दौरा चुनावी पर्यटन

बीजेपी कांग्रेस के लिए यह सबसे अहम चुनाव माना जा रहा है। ऐसे में कांग्रेस बीजेपी के साथ आम आदमी पार्टी अभी से चुनावी जमावट में जुट गए हैं। बीजेपी पव्रक्ता ने कहा चुनाव जैसे जैसे करीब आ रहे नेताओं के दौरे बढ़ेंगे। चुनावी पर्यटन पर दूसरीे प्रदेश के नेता आएंगे। लेकिन इससे कोई असर बीजेपी के अभियान पर नहीं पडे़गा।

किसे मिलेगी सत्ता की चाबी

दरअसल साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए ग्वालियर चंबल में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों ने दलित वोटर पर निगाह जमा दी है। मौजूदा दौर में यहां की 7 में से 6 दलित सीट कांग्रेस के खाते में हैं। इस लिहाजा से कांग्रेस यहा थोड़ी मजबूत हैं, लेकिन अंचल की 34 सीटों में से बीजेपी के पास 17 और कांग्रेस के पास भी विधानसभा की 17 सीटें हैं। खास बात यह है कि पिछले 2018 के चुनाव में दलित वोटरों की नाराजगी के चलते बीजेपी को मध्य प्रदेश की सत्ता से दूर रहना पड़ा था। उस दौरान अंचल की 34 में से महज 7 सीटों पर बीजेपी सिमट गई थी। जबकि कांग्रेस के खाते में 26 सीटें आई थी। 2018 में कांग्रेस ने 33 साल पुराना रिकॉर्ड बनाया था। हालांकि 2022 के उपचुनाव में तस्वीर बदल गई। अंचल की सीटों पर दलित वोटरों की तादाद 15 से 45 फ़ीसदी के लगभग है। ऐसे में देखना होगा कि मिशन 2023 के लिए दलित वोटर्स को लेकर चल रही सियासत में किसे सत्ता की चाबी हासिल होती है।

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