चेत्र नवरात्रि का उत्साह हर तरफ नजर आ रहा है। शक्ति की भक्ति पूरे मनायोग से की जा रही है। देवी मां के मंदिरों में सुबह से ही भक्तों का तांता लगा रहा है। हम बात कर रहे हैं छत्तीगढ़ के कोरबा जिले में स्थित मां मड़वारानी मंदिर की। जहा भक्त पूरी श्रद्धा भाव से पूजा अर्चना कर रहे हैं।
- मां मड़वारानी के दरबार में लगी भक्तों की भीड़
- दूर-दूर से दर्शन के लिए पहुंचे भक्त
- स्वयं प्रकट हुईं थीं मां मड़वारानी
- फूल और फलदार वृक्ष से ढंका है ये मंदिर
छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के मां मड़वारानी मंदिर पूरे राज्य में प्रसिद्ध है। यहां मां मड़वारानी के दिव्य दर्शन के लिए दूर दूर से भक्त यहां आते हैं। मां मड़वारानी का यह मंदिर श्रद्धा और आस्था का प्रतीक बन चुका है। ऐसी मान्यता है कि मां मड़वारानी स्वयं प्रकट होकर इस क्षेत्र में आस पास के गांवों की रक्षा करती हैं। मड़वारानी मंदिर यहां मड़वारानी नामक पहाड़ की चोटी पर कलमी के एक पेड़ के नीचे स्थित है। मां मड़वारानी का ये मंदिर घनी पहाड़ी पर फूल और फलदार वृक्ष से ढंका है। कई बार यहां जंगली जानवर घूमते देखे गए हैं, जो देवी मां के आशीर्वाद से किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते। यह मार्ग मुख्य मार्ग से 5 किमी लंबा है। जहां दो पहिया एवं चार पहिया वाहनों से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
मंदिर में मां की सेवा करने वाले पुजारी का कहना है मां मड़वारानी ने उनके दादा परदादा को सपना दिया था। जिसमें उन्होंने कलमी पेड़ पर होने की बात कही थी। इसके बाद से ही मां मड़वारानी की पूजा अर्चना की जाने लगी। यह भी मान्यता है कि मां मड़वारानी अपनी शादी के मंडप मड़वा छोड़ कर आ गईं थीं। इस दौरान बरपाली मड़वारानी रोड में उनके शरीर पर लगी हल्दी यहां एक पत्थर पर गिरी। जिससे पत्थर पीला हो गया। बता दें मां मड़वारानी के मंडप से आने के कारण ही कालांतर में गांव और पर्वत को मड़वारानी के नाम से जाना जाने लगा।
एक किवदंती यह भी है कि मां मड़वारानी भगवान शिव से कनकी में मिलीं। मां मड़वारानी संस्कृत में मांडवी देवी के नाम से जानी जाती हैं। साथ ही यह भी मान्यता है कि कुछ गांव के कलमी पेड़ की पत्तियों में हर नवरात्र जवा अपने आप उग जाता है। एक सांप उसके आस पास घूमते रहता है। पुजारी का यह भी कहना है मड़वारानी मां आसपास के गांव बरपाली, सोहागपुर, भैसमा, मड़वारानी में आती थीं। लेकिन एक दिन कुछ लोगों ने मड़वारानी मां का पीछा किया तो मड़वारानी मां कलमी पेड़ में जाकर छिप गईं। मां मड़वारानी का मुख्य मंदिर पहाड़ के सबसे ऊंची चोटी पर गहरी खाई के समीप कलमी पेड़ के नीचे बना है। ऐसी मान्यता है एक कलमी वृक्ष के कट जाने के बाद मां मड़वारानी अपने चार बहनों के साथ वहां आई और अपनी शक्ति को वहां रखे पांच पत्थरों में समाहित हो गईं। इसी कारण अब वे पिंड रूप में पूजी जाती हैं। मां मड़वारानी से कुछ ही दूर पर मां दुर्गा की तीन अन्य मंदिर स्थापित हैं। मां मड़वारानी मंदिर पहाड़ के ऊपर जाने वाले मार्ग में हनुमान जी की उपस्थति का एहसास होता है। मड़वारानी मंदिर समिति सचिव विनोद कुमार साहू की माने तो माता मडवारानी की जो प्राचीन हैं समय से क्षेत्र का विकास माता की भक्ति और श्रद्धा का केन्द्र हैं। प्राचीन समय में बिहड जंगल था। उस समय कोई आवागमन का साधन नहीं था। कालान्तर मे समिति का गठन हुआ। धीरे धीरे रोड और पानी का विकास हुआ है। वे कहते हैं कि जो भी भक्त सच्चे मन से आराधना करता है मां मड़वारानी उसकी हर मनोकामनाएं पूरी करती हैं।