महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मराठा साम्राज्य की राजधानी और छत्रपति शिवाजी महाराज की कर्मभूमि माने जाने वाले सतारा में सियासत ने एक नई करवट ली है। मराठा क्षत्रप के उपनाम से राजनीति में मशहूर शरद पवार का यहां करिश्मा अब मद्धम पड़ने लगा है। भाजपा यहां धीरे धीरे अपना जनाधार बढ़ाती नजर आ रही है।
- एनसीपी के विभाजन के बाद सतारा के बदले समीकरण
- शरद पवार के सामने चुनौतियां और बढ़ी
- कभी एनसीपी में शरद पवार की ताकत हुआ करते थे
- वे आज या तो भाजपा के पाले में हैं या अजीत पवार के साथ खड़े
- शरद पवार के सामने अपना गढ़ बचाने की चुनौती
दरअसल एनसीपी के विभाजन के बाद सतारा के नस-नस से वाकिफ रहने वाले शरद पवार के सामने चुनौतियां और बढ़ी हैं। जो नेता कभी एनसीपी में शरद पवार की ताकत हुआ करते थे, वे आज या तो भाजपा के पाले में हैं या अजीत पवार के साथ खड़े हैं।
बदले सियासी हालात और समीकरण में अब शरद पवार को अपना गढ़ बचाने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
आज चुनाव के बाद सतारा का बदला माहौल
यहां का माहौल लोकसभा चुनाव के बाद काफी बदला हुआ नजर आ रह है। आमचुनावों के दौरान मनोज जरांगे फैक्टर असरदार साबित हुआ था लेकिन अब यह फीका हो चला है। लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का संविधान बचाओ नारा भी अब वैसा असरदार नहीं रहा।
एनसीपी विभाजन और अजीत पवार के शरद पवार से अलग होने से सतारा के लोगों के मन में अब शरद पवार के प्रति सहानुभूति भी लोकसभा चुनाव के जैसी नजर नहीं आ रही है। शिवाजी महाराज के दो वंशज अब भाजपा के पाले में हैं। उदयनराजे भोंसले जो सतारा से सांसद हैं तो वहीं शिवेंद्र राजे भोंसले सतारा विधानसभा से भाजपा प्रत्याशी है। इस बार भाजपा नेतृत्व वाले महायुति संगठन और कांग्रेस गठबंधन महाअघाड़ी के बीच कड़ी चुनावी टक्कर होने की उम्मीद नजर आ रही है।
फसल के नहीं मिलते भाव
महाराष्ट्र के दूसरे जिलों की तरह सतारा में भी असल मुद्दे चुनाव के दौरान हाशिए पर हैं। प्रदेश और देश की राजधानी दिल्ली में उछाले जा रहे चुनावी मुद्दों के साथ क्षेत्र के आम मतदाता भी बहते नजर आते हैं। पक्ष और विपक्ष के दोनों राजनीतिक गठबंधनों की ओर से की जा रही चुनावी घोषणाओं की बातें ज्यादातर लोगों की जुबान पर नजर आ रही हैं।
शरद पवार की जमीन पर BJP का बढ़ता पॉवर
शरद पवार की एक समय सतारा में लोकप्रियता ऐसी थी कि उनके एक इशारे पर सबकुछ चलता था। ग्रामीण इलाकों में आज भी शरद पवार के प्रति लोगों की वही भावना नजर आ रही है। लेकिन देवेंद्र फणडवीस के डिप्टी सीएम बनने के बाद राजनीति में काफी बदलाव हुआ और एनसीपी नेता अब धीरे-धीरे भाजपा के झंडे के नीचे आने लगे हैं। सतारा शहर की बात करें तो यहां भी भाजपा मजबूत नजर आती है। जिले में 8 विधानसभा क्षेत्र में से पांच सीटों पर शरद पवार ने अपनी पसंद के उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे हैं। इनमेें से फलटण और वाई दो सीट पर उसका मुकाबला अपने ही भतीजे अजीत पवार वाली एनसीपी के साथ है। फलटण सीट पर शरद गुट तो वाई सीट पर अजीत पवार गुट से ताल्लुक रखने वाले उम्मीदवार मजबूत दिखते हैं।
सतारा जिले की चार सीट पर BJP
भाजपा भी सतारा जिले की चार विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है। जिसमें से तीन सीटों पर वह कड़े मुकाबले में फंसी है। तीन सीटों में एक सतारा विधानसभा सीट भी है। सतारा सीट से छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज छत्रपति शिवेंद्र राज भोंसले स्वयं चुनाव मैदान में उतरे हैं। यहां भाजपा को सबसे अधिक उम्मीदें हैं। वहीं शिवसेना यूबीटी के साथ एकनाथ शिंदे गुट के प्रत्याशी एक-एक सीट पर आमने-सामने लड़ रहे हैं।
कराड़ दक्षिण में आजादी के बाद से अजेय है कांग्रेस
कांग्रेस सतारा जिले में सिर्फ एक विधानसभा क्षेत्र कराड़ दक्षिण सीट पर चुनाव लड़ रही है। कराड़ दक्षिण विधानसभा सीट देश की एकमात्र ऐसी विधानसभा सीट है जहां कांग्रेस को आजादी के बाद से अब तक किसी भी चुनाव में हार का सामना नहीं करना पड़ा है। महाराष्ट्र के पूर्व सीएम पृथ्वीराज चव्हाण यहां से तीसरी बार कांग्रेस के टिकट पर मैदान में हैं। लेकिन इस बार उनके खिलाफ भी चुनाव में असंतोष नजर आ रहा है। ऐसे में भाजपा प्रत्याशी अतुल भोंसले इस बार चुनाव में पृथ्वीराज चव्हाण को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। अगर कराड़ दक्षिण विधानसभा सीट पर कोई बड़ा उलटफेर होता है तो यह एक नया इतिहास बनेगा।
(प्रकाश कुमार पांडेय)