लोकसभा चुनाव की सरगर्मी के बीच इस बार चुनाव मंच से बीजेपी राम मंदिर के साथ जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाना और उसका राज्य का दर्जा बहाल करने के मुद्दे को भुनाने की कोशिश करती नजर आ रही है। जम्मू-कश्मीर में प्रमुख मुकाबला पांच दलों में है। BJP और कांग्रेस के साथ यहां फारुख अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस और महबूबा मुफ्ती की PDP ही नहीं गुलाम नबी आजाद की DPAP भी चुनावी मैदान में है।
- केशर की क्यारी में सियासी बारी
- अनुच्छेद 370 के प्रावधानों हटने के बाद बदली तस्वीर
- बीजेपी की जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में नई शुरुआत
- 2019 के पहले थीं जम्मू-कश्मीर में लोकसभा की 6 सीट
- लद्दाख अलग होने के बाद कम हुई एक सीट
- लोकसभा की 5 सीटें ही रह गई
- जम्मू-कश्मीर में बड़ा मुद्दा – अनुच्छेद 370 हटाना
- राज्य का दर्जा बहाल करना
- विधानसभा चुनाव कराना
- अलगाववाद, आतंकवाद, पाकिस्तान
- बेरोजगारी के साथ वंशवाद की राजनीति भी प्रमुख मुद्दा
- इस राज्य में है लोकसभा की 5 सीट
- 3 कश्मीर घाटी और दो जम्मू में हैं
- नेशनल कांफ्रेंस के कब्जे में कश्मीर की तीनों सीटें
- BJP के पास है जम्मू की दोनों सीट
जम्मू-कश्मीर में मुद्दों की बात की जाए तो अनुच्छेद 370 हटाना, राज्य का दर्जा बहाल करना, विधानसभा चुनाव कराना, अलगाववाद, आतंकवाद, पाकिस्तान, बेरोजगारी के साथ वंशवाद की राजनीति प्रमुख चुनावी मुद्दे हैं। धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले इस राज्य में लोकसभा की 5 सीटें हैं। जिनमें 3 कश्मीर घाटी और दो जम्मू में हैं। अभी कश्मीर की तीनों सीटें नेशनल कांफ्रेंस और जम्मू की दोनों भाजपा के पास हैं।
देश के साथ कश्मीर के कदम से कदम-PM
पीएम नरेन्द्र मोदी कहते हैं दशकों के फासले को कम करते हुए हमारी सरकार ने विकास की दौड़ में पीछे छूट रहे जम्मू-कश्मीर और लद्दाख से अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस् किया। इससे 70 साल की टीस खत्म हुई है। अब इस राज्य को मुख्यधारा से जोड़कर देश के दूसरे राज्यों के बराबर लाकर खड़ा किया है। यह क्षेत्र अब विकास के नए सफर पर चल पड़ा है। केन्द्र सरकार की ओर से करीब 170 कानून जो पहले लागू नहीं थे, अब यह सभी कानून इस क्षेत्र में लागू कर दिए गए हैं। वर्तमान में सभी केन्द्रीय कानून जम्मू और कश्मीर केन्द्र शासित प्रदेश में लागू हैं।
ऊधमपु सीट: 60% हिंदू और 40% मुस्लिम आबादी
पहले चरण में उधमपुर सीट पर हीं वोटिंग होना है। यहां 60% हिंदू और 40% मुस्लिम आबादी है। यहां से 2004 और 2009 में कांग्रेस के लाल सिंह और 2014 और 2019 में बीजेपी के जितेंद्र सिंह ने जीत दर्ज की थी। इस बार भी इन दोनों ही नेताओं के बीच कड़ी टक्कर नजर आ रही है। यहां फर्स्ट टाइम के वोटर्स कहते हैंं कि जो पार्टी धार्मिक मुद्दों के बजाय रोजगार के मौके पैदा करने की बात करेंगी वे उसे ही वोट देंगे। वहीं बीजेपी समर्थकों का कहना हैं कि भाजपा के कार्यकाल में जम्मू को आईआईटी, आईआईएम और एम्स जैसे बड़े संस्थान मिले हैं। इधर कांग्रेस समर्थक कहते हैं कि अगर बीजेपी इतनी ही आसानी से जीत रही है तो मोदी और योगी को चुनाव प्रचार की जरूरत नहीं पड़ती। नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी यहां प्रत्याशी नहीं उतार रहीं। वह कांग्रेस को समर्थन कांग्रेस को समर्थन दे रहीं। डीपीएपी ने यहां से जीएम सरूरी को प्रत्याशी बनाया है। हालांकि सरुरी ज्यादा मजबूत तो नहीं दिख रहे, लेकिन मुस्लिम इलाकों से कांग्रेस के कुछ वोट जरूर कम कर सकते हैं।
जम्मू : कांग्रेस-BJP में टक्कर
जम्मू लोकसभा सीट की बात की जाए तो यहां कांग्रेस-भाजपा में टक्कर है। BJP ने दो बार के सांसद जुगल किशोर और कांग्रेस ने जेएंडके के पार्टी अध्यक्ष रमन भल्ला को चुनावी मैदान में उतारा है। दोनों में करीबी मुकाबला संभव है। वहीं अनंतनाग-राजौरी, नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी, भाजपा और डीपीएपी के बीच चतुष्कोणीय मुकाबला है। अभी नेशनल कांफ्रेंस के हसनैन मसूदी सांसद हैं। 1989 से यहां कोई पार्टी लगातार 2 बार नहीं जीती। पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती – और गुलाम नबी आजाद यहीं से लड़ रहे। ऐसे मेें करीबी मुकाबले के आसार हैं।
श्रीनगर : त्रिकोणीय मुकाबला
श्रीनगर की बात करें तो यहां एनसीपी, पीडीपी और अपनी पार्टी में त्रिकोणीय मुकाबला नजर आ रहा है। पिछले तीन दशकों से यहां कभी भी 20% से ज्यादा मतदान नहीं हुआ। वहीं बारामूला सीट पर नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स कांफ्रेंस और पीडीपी में त्रिकोणीय टक्कर है। पूर्व सीएम अब्दुल्ला यहां से मैदान में हैं।
बीजेपी की सीट और वोट शेयर
जम्मू-कश्मीर में पिछले दो बार के चुनाव में सबसे ज्यादा सीट और वोट शेयर बीजेपी के खाते में गया है। 2019 की बात करें तो भाजपा ने तीन सीट के साथ 46.39 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया। इसके बाद 2014 में 3 सीट के साथ 32.36 प्रतिशत वोट शेयर रहा। वहीं इससे पहले 2009 में बीजेपी यहां एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। हालांकि उसे 18.61 प्रतिशत वोट जरुर मिले थे।
नेशनल कांफ्रेंस ने 2019 में दोहराया 2009 वाला प्रदर्शन
2019 में नेशनल कांफ्रेंस ने तीन सीट के साथ 36.89 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया। इसके बाद 2014 में उसे कोई सीट नहीं मिली। लेकिन उसके हिस्से में 11.12 प्रतिशत वोट शेयर रहा। वहीं इससे पहले 2009 में उसने 3 सीट जीती थी और 19.11 प्रतिशत वोट मिले थे।
2014 में PDP के खाते में गईं थी 3 सीट
वहीं 2019 में पीडीपी को एक भी सीट नहीं मिल सकी। इसके साथ 2.37 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया। इसके बाद 2014 में पीडीपी को 3 सीट मिली। उसके हिस्से में 20.54 प्रतिशत वोट शेयर रहा। वहीं इससे पहले 2009 में भी पीडीपी कोई सीट नहीं जीत सकी थी। तब उसे 20.05 प्रतिशत वोट मिले थे।