परमाणु हथियार, शरिया कानून और लेबनान की जंग… दोस्त थे कभी इजराइल और ईरान अब क्या है दुश्मनी की असल वजह?

Iran Israel war attack 200 drone missiles fired threat of third world war

ईरान और इजराइल आज जंग लड़ रहे हैं, लेकिन कभी दोस्त रहे थे। ईरान ने शनिवार रात को इजराइल पर जंग का ऐलान करते हुए सीधा हमला कर दिया। इजरायल पर बीती रात ईरान के 200 से अधिक ड्रोन और मिसाइलें दागी, इस हमलों के बाद दुनिया पर तीसरे विश्व युद्ध के बादल भी मंडराने लगे हैं।

इजरायल पर ईरानी हमले के तुरंत बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बड़ी आपातकालीन बैठक की। इसके साथ ही जो बाइडन ने इजरायल पर ईरान के हमले की निंदा की। इजरायल पर ईरान के हमले के बाद अमेरिका बेहद सतर्क हो गया है। अब बड़ा कदम उठाने जा रहा है। पहले कदम के तहत ईरान-इजरायल युद्ध छिड़ने की आशंका के मद्देनजर जो बाइडेन ने आगे की स्थिति पर विचार विमर्श करने और अग्रिम कार्रवाई के लिए तत्काल जी-7 नेताओं की बैठक बुलाई।वहीं इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से फोन पर बात करने के बाद बाइडेन ने कहा इजरायल की वे पूरी मदद करेंगे।

इधर ईरान की तरफ से इस्राइल पर ड्रोन और मिसाइल दागे जाने पर भारत की तरफ से भी बयान जारी किया गया है। विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा, ‘हम इस्राइल और ईरान के बीच दुश्मनी बढ़ने को लेकर गंभीर तौर पर चिंतित हैं। इससे क्षेत्र में शांति और सुरक्षा पर खतरा पैदा होता है। इस संघर्ष से पीछे हटने और दोनों देशों से अपने कदमों को रोकने के साथ बातचीत करने की हम अपील करते हैं। विदेश मंत्रालय इस स्थिति पर करीब से नजर रख रहा है। क्षेत्र में मौजूद हमारे दूतावास भारतीय समुदाय से संपर्क में हैं। यह जरूरी है कि क्षेत्र में सुरक्षा और स्थायित्व बना रहे।

इजरायल और ईरान दोनों के बीच की जारी जंग को समझने के लिए इतिहास के पन्ने पलटना होंगे। साल 1948 में मिडिल ईस्ट में फिलीस्तीन की जगह पर ही इजराइल नाम का यह यहूदी देश बना था। जिसका मुस्लिम देशों ने घोर विरोध शुरू किया। मिडिल ईस्ट के अधिकांश मुस्लिम देशों ने इजराइल को मान्यता नहीं दी। इस बीच तुर्किए के बाद ईरान ऐसा दूसरा मुस्लिम देश था, जिसने इजराइल को बाकायदा एक देश के रुप में स्वीकार किया था और दोनों दोस्त बन गये थे। शुरुआती दौर में दोनों इसे कभी जाहिर नहीं किया हालांकि अंदरूनी तौर पर देानों देश एक-दूसरे की मदद करते रहे।

दुश्मनी में बदली दोस्ती

इजरायल और ईरान दोनों देशों के बीच 1979 में ईरान की इस्लामिक क्रांति के बाद दुश्मनी की नींव पड़ी। इस्लामिक क्रांति क्रांति के बाद ईरान को इस्लामिक गणराज्य घोषित कर दिया गया था। इसे दुनिया की ऐतिहासिक क्रांति भी कहा गया। इस क्रांति के बाद पहलवी वंश का अंत हुआ था। उस समय अयातुल्ला रूहुल्लाह खुमैनी को ईरान के सर्वोच्च नेता का पदवी दी गई। ईरान में अब इस्लामिक सरकार बन चुकी थी। इसके बाद शरिया कानून भी लागू हो गया था। यह वो वक्त था जब ईरान में करीब 1 लाख यहूदी रहते थे। खुमैनी ने इसके बाद भी अपने देश को इस्लामिक घोषित कर दिया था। इसके बाद खुमैनी के दौर से ही ईरान का रुख भी धीरे-धीरे इजराइल के विरोध में होने लगा। इतना ही नहीं दोनों देशों के बीच तनाव की भी खबरें आती रहीं और धीरे धीरे हालात इतने बिगड़ गये कि दोनों देशों ने एक-दूसरे के यहां जाने को लेकर भी प्रतिबंध लगा दिये। दोनों ने एक दूसरे के देश में दूतावास बंद कर दिये। दोनों के बीच तनाव लगातार बढ़ने लगा। इसका असर मिडिल ईस्ट के अन्य देशों पर दिखाई देने लगा था। दोनों ही देश एक-दूसरे को कमजोर करने की कोशिश में लगे रहे। साल 2006 में लेबनान युद्ध में ईरान उसके साथ खड़ा था। दरअसल यह जंग ही इराजइल के विरोध में थी। इतना ही नहीं ईरान ने दूसरे कई ऐसे देशों के साथ अपनी दोस्ती का हाथ बढ़ाना शुरू कर दिया ताकि उसका रुतबा बढ़े। ईरान ने इराक के साथ पाकिस्तान और सीरिया के कई देशों के गुट को समर्थन दिया। जिसे इजराइल गलत मानता था। इससे दोनों के बीच दुश्मनी की खाईं गहरी होती गई।

परमाणु हथियार भी बने जंग की वजह

ईरान में इस्लामिक क्रांति के बाद इजराइल की ओर से दोस्ती को बरकरार रखने की कोशिश की गईं। इजराइल शुरुआती दौर में ईरान को हथियार सप्लाई करता रहा और दोस्ती को पटरी पर लाने की कोशिशें जारी रहीं। क्योंकि उधर ईराक भी उग्र हो रहा था। सद्दाम हुसैन की अगुआई में इराक ने परमाणु हथियार हासिल करने की कोशिशें शुरु कर दी थीं। और इससे बचाव के लिए ही इजराइल ने ईरान के साथ अपने सम्बंधों को फिर से मजबूत रखने की कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हो सका।

Exit mobile version