काला है अतीक का अतीत, कभी पूरे पूर्वांचल पर था राज, मौत का डर सता रहा आज

Gangster Atiq Ahmed

अतीक अहमद.. इस नाम को सुनकर कभी पूरा पूर्वांचल सहम जाता था। आज काल का चक्र ऐसा घूमा कि खुद उसकी घिग्घी बंधी हुई है। अतीक अहमद अपराधियों के राजनीति में आने का वो स्याह पन्ना है। जिससे भारतीय लोकतंत्र का एक पूरा अध्याय कलंकित है। अतीक का जन्म प्रयागराज जो पहले इलाहाबाद के नाम से पहचाना जाता था वहां 10 अगस्त 1962 को हुआ था। पिता फिरोज अहमद परिवार को पालने के लिए तांगा चलाया करते थे। गरीबी में बचपन गुजरा तो महज 17 साल की उम्र में ही अतीक ने हत्या के मुजरिम के रूप में जुर्म की दुनिया में एंट्री की। इसके बाद अतीक तेजी से जुर्म की सीढ़ियां चढ़ते हुए 21 से 22 की उम्र तक अतीक इलाहाबाद में चकिया का बड़ा गुंडा बन गया। रंगदारी का उसका धंधा ऐसा चला कि उसका सिक्का चलने लगा।

निर्दलीय विधायक से शुरु हुआ अतीक का सियासी सफर

साल1989 के विधानसभा चुनाव में इलाहाबाद पश्चिम से निर्दलीय पर्चा भरा। यहां उसका सीधा मुकाबला चांद बाबा से हुआ। लेकिन अतीक भारी पड़ा और विधायक बन गया। अतीक ने विधायक बनते ही चांद बाबा का पूरा गैंग खत्म कर दिया इमना ही नहीं चांद बाबा की भी हत्या कर दी गई। जाहिर है आरोप अतीक पर ही लगा। चांद बाबा की मौत का फायदा यह हुआ कि अतीक का खौफ इलाहाबाद से निकलकर पू्रे पूर्वांचल तक फैल गया। इसके बाद 1991 और 1993 में भी अतीक इलाहाबद पश्चिम से निर्दलीय विधायक चुना गया। इस दौरान ही उसकी समाजवादी पार्टी से नजदीकियां बढ़ीं। बात करें साल 1995 के बहुचर्चित गेस्ट हाउस कांड की, जिसमें भी अतीक का नाम आया और इनाम में उसे 1996 में सपा टिकट मिला और जीत भी मिली। 2002 में भी इलाहाबाद पश्चिमी सीट से अतीक पांचवीं बार विधायक बना, लेकिन उसके मन में संसद तक पहुंचने की बेकरारी थी, ऐसे में 2004 के लोकसभा चुनाव में अतीक अहमद ने सपा के टिकट पर इलाहाबाद की फूलपुर सीट से चुनाव लड़ा और जीता।

विधायक पाल की हत्या से लिया भाई की हार का बदला

अतीक के सांसद बनने पर इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा सीट खाली हो गई। जिस पर उसने अपने छोटे भाई अशरफ को चुनाव लड़ाया।लेकिन अशरफ के खिलाफ बसपा ने राजू पाल को मैदान में उतारा और राजू पाल 4 हजार वोट से जीत भी गया। ये हार अतीक को बर्दाश्त नहीं हुई और एक महीने में ही राजू पाल के ऑफिस के पास बम फेंका फायरिंग भी की। हमले में राजू पाल बच गया। इसके बाद दिसंबर 2004 में फिर हमला किया,लेकिन किस्मत राजूपाल के साथ थी। हालांकि 25 जनवरी 2005 में तीसरी बार जब अतीक ने राजू पर हमला किया तो इस बार किस्मत ने राजू का साथ नहीं दिया। 19 गोलियों से छलनी हो चुका राजू की मौत हो गई। साल 2007 में यूपी में मायावती का राज कायम हुआ। इस बीच सपा ने भी अतीक से पल्ला झाड़ लिया। यही अतीक के जीवन का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। राजू पाल की पत्नी पूजा पाल भी अतीक के भाई अशरफ को चुनाव में हरा चुकी थी और मायावती ने अतीक को मोस्ट वॉन्टेड घोषित कर ऑपरेशन अतीक शुरू किया। 1986 से 2007 के दौरान के एक दर्जन से ज्यादा मामले अतीक पर गैंगस्टर एक्ट के तहत दर्ज किए गए । उसके सिर पर 20 हजार का इनाम रखा अतीक अहमद की करोड़ों की चल अचल संपत्ति को राजसात किया गया। जिस बिल्डिंग की ओर कभी पुलिस देखने से भी घबराती थी उसे गिरा दिया गया। इसके बाद उसे दिल्ली से उसकी गिरफ्तार हुई।

10 ने वापस लिया सुनवाई से नाम, 11वें जज ने दी जमानत

साल गुजरते गये …अगला विधानसभा चुनाव का वक्त आ गया। तो साल 2012 में विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए उसने अपना दल से पर्चा भरा। इलाहाबाद हाईकोर्ट में बेल की अर्जी दी। अब तक अतीक के आतंक का आलम ये था कि हाईकोर्ट के 10 जजों ने एक एक करके केस की सुनवाई से ही खुद को अलग कर लिया था जब 11वें जज ने सुनवाई की तो अतीक को बेल दे दी।

अखिलेश नहीं चाहते थे अतीक को टिकट मिले

अखिलेश यादव जब सपा अध्यक्ष बन तो उसके लिए थोड़ी परेशानी हुई। इस बीच मुलायम सिंह परिवर में आपसी खींचतान शुरू हो चुकी थी। ऐसे में 2016 में सपा के उम्मीदवारों की जो लिस्ट निकली उसमें अतीक का नाम कानपुर कैंट से उम्मीदवार के रूप में था। 22 दिसंबर को अतीक 500 गाड़ियों के काफिले के साथ कानपुर पहुंचा। आलम ये था कि जिधर से काफिला गुजरता जाम लग जाता था। तब तक अखिलेश यादव सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन चुके थे और उन्होंने साफ कर दिया कि उनकी पार्टी में अतीक के लिए कोई जगह नहीं। अतीक पार्टी से बाहर कर दिए गए। कॉलेज में तोड़फोड़ करने और अधिकारियों को धमकाने के मामले में हाई कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए पुलिस को फटकार लगाई और अतीक को गिरफ्तार करने का आदेश दिया।

2017 के चुनाव से पहले ही डाल दिया था जेल में

चुनाव से एक महीने पहले फरवरी 2017 में अतीक को गिरफ्तार किया गया। सारे मामलों में उसकी जमानत रद्द हो गई और तब से अतीक जेल में ही है। कानून के साथ आंख मिचौली का खेल खेल रहे अतीक के ताबूत में आखिरी कील योगी सरकार के रूप में आई। योगी के सीएम बनते ही अतीक के खिलाफ कई मामलों की जांच शुरू हो गई। इसके बाद से लेकर अब तक अतीक की सैकड़ों करोड़ रुपए से ज्यादा की गैर कानूनी संपत्तियों पर बुलडोजर चल चुका है। अतीक का भाई अशरफ भी मरियाडीह डबल मर्डर मामले में जेल में बंद है। इस बीच एक सप्ताह पहले राजू पाल हत्याकांड के गवाह उमेश पाल की इलाहाबाद में हत्या हो गई। साथ में उसके दो सुरक्षाकर्मी भी मारे गए। आरोप फिर एक बार अतीक और उसके लगों पर है। इसके बाद सूबे के मुख्यमंत्री योगी हुंकार भर रहे हैं कि माफिया को मिट्टी में मिला देंगे।

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