नए संसद भवन का उद्घाटन कौन करे कौन नहीं करे,इसको लेकर सियासी घमासान मचा हुई है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी कह रहे है कि प्रधानमंत्री की जगह राष्ट्रपति से नए संसद भवन को शुभारंभ होना चाहिए। राहुल के सुर में सुर अन्य दलों ने भी मिलाना शुरु कर दिया है। इसका मतलब है कि भाजपा विरोधी दलों का संसद भवन का उद्घाटन तो एक बहाना है। सही मायने में देखा जाए तो ये कुछ और ही सियासी खेल चल रहा है। आइए इस मामले को समझने की कोशिश करते हैं।
कर्नाटक की जीत से बढ़ा उत्साह
हाल ही में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बंपर जीत मिली है। इससे जहां कांग्रेस गदगद है वहीं दूसरे भाजपा विरोधी दलों को लगने लगा है कि भाजपा को मात देना कोई कठिन काम नहीं है। इसलिए जेडीयू,आरजेडी और टीएमसी जैसे कई दलों ने अपनी अपनी रणनीति को मजबूत करना शुरु कर दिया है। शायद यही कारण है कि कई राजनैतिक दलों ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी का साथ देना शुरु कर दिया है। मात्र संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति करें,इसको लेकर कई दलों ने समर्थन कर दिया है। जबकि ये मुद्दा जनता का नहीं है,बल्कि शुरध्द रूप से राजनीति है। फिर इन दलों का एक साथ आने का मतलब ही है कि विपक्ष अपनी एकजुटता को दिखाने की कोशिश कर रहा है।
समारोह का बहिष्कार करने का ऐलान
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री की जगह राष्ट्रपति से नए संसद भवन का उद्घाटन करने की मांग रखी ही थी कि करीब आधा दर्जन दलों ने बिना किसी बिलंब के तत्काल समारोह का बहिष्कार करने का ऐलान कर दिया। राजद,एनसीपी,डीएमके,टीएमसी और आम आदमी पार्टी ने राहुल के सुर में सुर मिलाते हुए कार्यक्रम से दूरी बनाने की घोषणा कर दी है। सूत्रों के मुताबिक, समान विचारधारा वाले विपक्षी दलों के नेताओं ने संसद भवन के उद्घाटन समारोह के बहिष्कार को लेकर विचार-विमर्श किया है। कहा जा रहा है कि जल्द ही सदन के सभी नेता एक संयुक्त बयान जारी कर सकते हैं। इसमें कार्यक्रम के संयुक्त बहिष्कार की घोषणा की जाएगी। हालांकि, कई पार्टियां पहले ही कार्यक्रम में शामिल नहीं होने की बात कह चुकी हैं।
नीतीश की एकजुटता वाले प्रयासों को लगेंगे पंख?
राजनैतिक दलों की उपरोक्त घोषणा से माना जाने लगा है कि इससे बिहार के सीएम नीतीश कुमार के एकजुटता वाले प्रयासों को नए पंख लगेंगे। जानकारों का मानना है कि तमाम विपक्षी दल 28 मई को आयोजित उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करके विपक्ष एकजुटता को आंकने की कोशिश भी कर रहा है। इससे एक अंदाजा लगाया जा सकता है कि विपक्षी की एकजुटता में कितना दम है। इधर नीतीश कुमार विभिन्न दलों के नेताओं से मिलकर उन्हे एकसाथ खड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं।