साय को भूपेश सरकार ने क्यों दिया कैबिनेट मंत्री का दर्जा?, इस वर्ग को साधना चाहते हैं सीएम भूपेश

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छत्तीसगढ़ में कांग्रेस चुनाव से पहले लगातार बड़े फैसले ले रही है। बुधवार को जहां टीएस सिंहदेव को राज्य का डिप्टी सीएम बनाया गया। वहीं दूसरे दिन गुरुवार को कांग्रेस की भूपेश सरकार ने नंद कुमार साय को नई जिम्मेदारी दी है। साय को छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक विकास निगम का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया है। इतना ही नहीं इस पद के साथ ही सरकार ने साय को कैबिनेट मंत्री का भी दर्जा दिया है। नई जिम्मेदारी दिए जाने के बाद सीएम भूपेश बघेल ने साय को बधाई और शुभकामनाएं दी हैं।

साय के जरिए आदिवासियों को साधने की कवायद

बता दें नंद कुमार साय कूुछ दिन पहले ही बीजपी छोड़़कर काग्रेस में शाामिल हुए हैं। साय कभी बीजेपी का प्रमुख आदिवासी चेहरा हुआ करते थे। नंद कुमार साय पहली बार साल 1977 में अविभाजीत मध्य प्रदेश में तपकरा सीट जो अब जशपुर जिले में से जनता पार्टी के विधायक चुने गए थे। वह 1980 में बीजेपी की रायगढ़ जिला इकाई के प्रमुख चुने गए थे। सल 1985 में वे तपकरा से बीजेपी विधायक चुने गए थे। वे 1989, 1996 और 2004 में रायगढ़ से लोकसभा सदस्य और 2009 और 2010 में राज्यसभा सदस्य बनाए गए। साय साल 2003 से 2005 तक छत्तीसगढ़ बीजेपी अध्यक्ष भी रहे। इससे पहले 1997 से 2000 तक वे मध्य प्रदेश बीजेपी प्रमुख भी रहे। नवंबर 2000 में जब छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश से अलग होकर नया राज्य बना तो वे छत्तीसगढ़ विधानसभा में विपक्ष के पहले नेता बने थे। साय को 2017 में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग एनसीएसटी का अध्यक्ष बनाया गया था। हालांकि भाजपा की नीतियों और उपेक्षा से से निराश होकर नंद कुमार साय ने कांग्रेस का दामन थाम लिया।

सीएम ने दी साय को बधाई

बीजेपी का दामन छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए नंद कुमार साय को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिये जाने के बाद सीएम भूपेश बघेल ने उन्हें नए दायित्व के लिए बधाई और शुभकामनाएं दी। सीएम ने टृवीट करते हुए कहा छत्तीसगढ़ सरकार ने नंद कुमार साय को छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक विकास निगम का अध्यक्ष नियुक्त किया है। राज्य सरकार की ओर से साय को कैबिनेट मंत्री का भी दर्जा दिया गया है।

कांग्रेस के लिए तुरुप का इक्का हैं नंद कुमार साय

छत्तीसगढ़ में 32 फीसदी आबादी आदिवासी वर्ग की है। विधानसभा की 90 में से 29 सीट ऐसी हैं जो आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। ऐसे में नंद कुमार साय के जरिए कांग्रेस इस 32 फसदी आबादी को अपने पक्षे में वोट में बदलना चाहती है। हालांकि पांच बार के सांसद और एक आयोग के अध्यक्ष के तौर पर केंद्र में सक्रिय होने के नंद कुमार साय कांग्रेस के लिहाज से अहम साबित हो सकते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में राज्य की 90 में 14 सीट बीजेपी को मिली थी। ऐसे में अब भी भाजपा के सामने कई दूसरी कई चुनौतियां हैं। आरएसएस में सक्रिय रह चुके नंद कुमार साय देश के उन थोड़े से आदिवासी नेताओं में हैं जो संस्कृत भाषा के प्रेमी और विद्धान के तौर पर जाने जाते हैं। साल 2020 तक भारत में अनुसूचित जनजाति आयोग का अध्यक्ष भी रहे। इस पद पर रहते हुए साय ने संस्कृत को भारत की आधिकारिक भाषा बनाने को लेकर बहस छेड़ी थी। रामचरितमानस जैसे कई धार्मिक ग्रंथों की एक एक पंक्ति नंद कुमार साय को रट चुकी हैं। वे उत्तरी छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के बीच एक जाना.पहचाना चेहरा हैं। ऐसे में कांग्रेस पार्टी को लाभ मिल सकता है।

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