इन दिनों देश की राजनीति में बीजेपी सांसद मेनका गांधी और वरूण गांधी के राजनीति भविष्य को लेकर चर्चा जोरो पर है. राजनीति गलियारों में यह चर्चा आम हो गई है कि मेनका गांधी और वरूण गांधी बागी हो सकते हैं. बीजेपी में भी मां- बेटे का राजनीति अस्तित्व खतरे में है. ऐसा इसलिए माना जा रहा है कि क्योंकि उत्तर प्रदेश के चुनाव अतिम चरण में हैं. पांच चरणों के लिए 292 सीटों पर वोटिंग हो चुकी है. बस अगले दो चरणों की 111 सीटों के लिए 3 और 7 मार्च को मतदान होगा. लेकिन मेनका गांधी और वरूण गांधी को पार्टी ने स्टार प्रचार नहीं बनाया. बात सिर्फ स्टार प्रचार सूची में नाम होने की नहीं है बल्कि कई मौके पर बीजेपी ने दोनों से किनारा किया.
नई कार्यकारिणी में नहीं दी तज्जवों
बीजेपी ने सात अक्टूबर को नई कार्यकारिणी की घोषणा की. लेकिन इनमें पार्टी ने कई दिग्गजों को जगह नही दी. मेनका गांधी, वरूण गांधी, सुब्रमण्यम स्वामी, वसुंधरा राजे, विजय गोयल और विनय कटियार जैसे नेता पार्टी की नेशनल इग्जेक्युटिव काउंसिल से बाहर कर दिए गए. लेकिन वरुण गांधी और मेनका गांधी पर सभी की नजर टिक गई है. इस घोषणा के बाद सुब्रमण्यम स्वामी ने तो अपने ट्विटर-बायो से पार्टी का नाम भी हटा दिया है. यह भी माना जा रहा है कि पार्टी में वरुण गांधी और मेनका गांधी का कद लगातार कम किया जा रहा है. जबकि कांग्रेस से आए ज्योतिरादित्य सिंधिया और युवा नेता अनुराग ठाकुर को बीजेपी प्रमोट कर रही है. मेनका गांधी, वरुण गांधी और सुब्रमण्यम स्वामी तीनों ही
फायर ब्रांड नेता माने जाते रहे हैं
मेनका गांधी और वरूण गांधी उत्तर प्रदेश चुनाव से दूर हैं. वरूण गांधी जिस तरह से लगातार मोदी सरकार और योगी सरकार के खिलाफ मुखर हो रहे हैं. उससे मेनका के सियासी भविष्य पर भी एक तरह से ग्रहण लग गया है.बीजेपी सांसद ने पहले किसान आंदोलन को लेकर पार्टी को नसीहत दी, फिर लखीमपुर खीरी हिंसा पर कड़ा रुख अपना लिया. इतना ही नहीं उन्होंने किसानों के मुद्दों और बकाया भुगतान को लेकर कई बार सरकार को चिट्ठी लिख डाली.
मेनका ने अमेठी से लड़ा था चुनाव
अमेठी मेनका गांधी के पति संजय गांधी की सीट थी. लेकिन मेनका के अमेठी से चुनाव हारने के बाद वह अमेठी की दावेदारी से दूर हो गईं. बाद में उन्होंने सिक्ख बाहुल्य पीलीभीत को अपना क्षेत्र बनाया. मेनका गांधी 1998 में बीजेपी में शामिल हुईं थीं. मेनका गांधी को अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में राज्यमंत्री बनाई गईं. इसके बाद मेनका गांधी ने सुल्लतानपुर को चुना और वे वहां से चुनाव जीतने लगीं. इसके बाद 2014 में मोदी सरकार में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया. लेकिन मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में मेनका गांधी को जगह नहीं मिली.
वरुण ने 2004 में उठाया था बीजेपा का झंडा
वरुण गांधी साल 2004 में बीजेपी में शामिल हुए थे. बीजेपी को उम्मीद थी कि गांधी परिवार का मुकाबला गांधी परिवार ही कर सकता है. इसके लिए बीजेपी ने वरूण गांधी को चुना था. 2009 में पीलीभीत से जीतकर पहली बार वरूण गांधी संसद पहुंचे थे.
बीजेपी में शामिल होने के बाद मेनका और वरुण गांधी ने पार्टी को कभी हार का सामना नहीं कराया. मेनका 2004 से लगातार चार बार चुनाव जीत चुकी हैं. और वरुण 2009 से लगातार तीन बार बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं. बीजेपी ने वरुण गांधी पार्टी के सबसे कम उम्र के राष्ट्रीय महासचिव बना दिया. लेकिन पिछले ढाई- तीन सालों में उनके रिश्ते में खटास आ गई है.
राजनाथ सिंह की ओर झुकाव पड़ा भारी
साल 2014 में बीजेपी में जब प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार पर चर्चा चल रही थी. उस वक्त वरुण गांधी ने राजनाथ सिंह का नाम खुले तौर पर लिया था. उन्होंने एक सभा में राजनाथ सिंह को बीजेपी का दूसरा अटल बिहारी बता दिया था. वरुण गांधी का यह बयान उन पर भारी पड़ गया. 2014 के बाद जब मोदी और शाह का युग आया तो उन्हें राजनाथ सिंह के समर्थक नेताओं का पार्टी में कद छोटा कर दिया.
ऐसे में अंदाजा लगाया जा रहा है कि वरुण गांधी कांग्रेस पार्टी में शामिल हो सकते हैं. और उनका वहां बहुत जोश और सम्मान के साथ स्वागत किया जाएगा. ऐसा इसलिए भी माना जा रहा है कि वरुण गांधी को अपनी बहन प्रियंका गांधी से बहुत लगाव है. हालांकि मेनका गांधी की कांग्रेस पार्टी से हमेशा दूरियां रहीं है. उन्होंने काफी समय से अपनी भाभी सोनिया गांधी से बात करना भी बंद कर दिया है. ऐसे में वरूण की तो कांग्रेस में एंट्री हो जाएगी लेकिन तब मेनका के राजनीतिक भविष्य हशिये पर है.