मप्र में कब मिलेंगे भाजपा को जिलाध्यक्ष, जानें जिला अध्यक्षों की नियुक्त करने में क्यों छूट रहा पसीना!
मध्य प्रदेश के अधिकांश हिस्से में इन दिनों शीत लहर का प्रकोप देखा जा रहा है। प्रदेश भर में कड़ाके की ठंड से लोग परेशान हैं लेकिन प्रदेश का सियासी तापमान बढ़ता जा रहा है। दरअसल सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी को अपनी पार्टी के जिला अध्यक्षों की नियुक्ति करने में पिछले कई दिनों से पसीने छूट रहा है। चर्चा है दिल्ली से अब नियुक्ति होने वाली है लेकिन दिल्ली में तो और कडाके की ठंड पड़ रही है। ऐसे में लगता है इस बार दिल्ली वालों के भी एमपी बीजेपी के जिला अध्यक्ष नियुक्त करने में पसीने छूट रहे हैं।
- मध्यप्रदेश में बढ़ता सियासी तापमान
- भाजपा जिलाध्यक्षों की नियुक्ति की सरगर्मी
- दिल्ली से होगी अब जिला अध्यक्षों की नियुक्ति
- एमपी बीजेपी जिलाध्यक्षों की नियुक्त में क्यों छूट रहे पसीने
- 15 साल पहले तक बीजेपी में जिलाध्यक्ष का चुनाव होता था
- निर्वाचन के लिए फार्म भरे जाते था
- दूसरे चुनावों की तरह नाम वापिसी की भी तारीख होती थी
- मतपत्रों के साथ जो निर्धारित सदस्य होते थे
- सदस्य ही करते थे जिला अध्यक्षों का चुनाव
- बदली हुई पद्धति में चुनाव की जगह रायशुमारी ने ली
- रायशुमारी में चुनाव पदाधिकारी करता है जिले में जाकर रायशुमारी
- अधिकांश मतदाता होते हैं सदस्य
- सदस्य किसी एक के नाम पर जताते हैं सहमति
- योग्यता और समर्थन के आधार पर तय होता है पैनल
- पर्यवेक्षक पहले, दूसरे और तीसरे नाम का बनाते हैं पैनल
- जिसके नाम पर जिले में सर्वाधिक राय हो, वो पहले नंबर पर होता है
- फिर दूसरा और तीसरे नंबर पर होता है
- सबसे अंत में की जाती है जिला अध्यक्षों की घोषणा
पिछले 5 जनवरी के बाद से कहा जाता रहा है कि मध्य प्रदेश बीजेपी जिला अध्यक्षों की सूची कभी भी जारी हो सकती है। केंद्रीय नेतृत्व ने मध्य प्रदेश की ओर से भेजे गए पैनल में से नामों को फाइनल करते हुए अपनी मुहर लगा दी है। बस जिला अध्यक्षों के नाम की घोषणा होना बाकी है। पार्टी सूत्र बताते हैं कि जिला अध्यक्षों की सूची कभी भी जारी हो सकती है। इसके बाद बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होगी। दरअसल सियासी गरमाहट के बीच पिछले कई दिनों से प्रदेश में भाजपा जिलाध्यक्षों की सूची कभी भी जारी होने की आहट तो है लेकिन सूची अब तक जारी नहीं हो सकी।
मालवा से बुंदेलखंड अंचल तक घमासान
बता दें मध्य प्रदेश में बीजेपी के संगठनात्मक जिलों की संख्या 60 से अधिक है। इनमें सबसे अधिक जिले ग्वालियर चंबल में आते हैं। जिनमें ग्वालियर शहर, ग्वालियर ग्रामीण के अतिरिक्त शिवपुरी, भिंड, अशोकनगर में सबसे अधिक घमासान मचा है। राजधानी भोपाल भी ऐसे जिलों में शामिल है जहां बीजेपी अध्यक्ष के पद को लेकर घमासान मचा है। यहां बड़े नेताओं का दबाव नजर आ रहा है। पार्टी जिला अध्यक्ष को लेकर ग्वालियर ग्रामीण में भी खासी खींचतान मची है। उधर सागर और टीकमगढ़, छिंदवाड़ा, जबलपुर और भोपाल शहरी ग्रामीण के साथ ही नर्मदापुरम और सीहोर में भी बीजेपी जिला अध्यक्ष के नाम को लेकर आम राय बनती नजर नहीं आ रही है।
ग्वालियर चंबल में सिंधिया इफेक्ट?
बीजेपी जिला अध्यक्षों की नियुक्त से जुड़े विवादों की बात की जाए तो ग्वालियर चंबल के इलाके में सबसे ज्यादा घमासान मचा है। इसके बाद बुंदेलखंड में होने वाले सियासी घमासान की बारी आती है। दरअसल ग्वालियर चंबल इलाके में ग्वालियर ग्रामीण के साथ अशोकनगर, शिवपुरी और भिंड जिलों के नाम को लेकर एक राय नहीं बनती नजर आ रही है। इन जिलों में तोमर के साथ सिंधिया खेमा तो सक्रिय है ही, इसके अतिरिक्त विवेक शेजवलकर के भी समर्थक हैं। इसी तरह से बुंदेलखंड अंचल में कैबिनेट मंत्री गोविंद सिंह राजपूत और पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव से लेकर पूर्व मंत्री भूपेन्द्र सिंह जैसे दिग्गजों में अपने अपने समर्थकों को पार्टी जिला अध्यक्ष के पद पर बैठाने के लिए घमासान मचा हुआ है।
वहीं भाजपा जिला अध्यक्षों के प्रमुख दावेदार सूची ना आने से काफी निराश वा घबराए हुए देखे जा हैं! आखिर सूची क्यों अटकी हुई है!जब इसकी पड़ताल की गई तो पता चला कि बड़े-बड़े कद्दावर नेता अपने हिसाब से अध्यक्षों की नियुक्ति कराने में लगे हुए हैं यही मामला फंसा हुआ है। एमपी के कई जिलों में कई कद्दावर नेता हैं जो अपने-अपने चहेते समर्थक को पार्टी जिला अध्यक्ष बनाने में जुटे हुए हैं।
सुबह शाम बदल रहे अध्यक्ष के नाम!
वहीं एक दिलचस्प घटना यह भी घटित हो रहा है कि सुबह अध्यक्ष पद में किसी का नाम आगे बताया जाता है। शाम होते-होते किसी दूसरे व्यक्ति का नाम गुजनें लगता है। फिर अगले दिन किसी तीसरे व्यक्ति का नाम सुनाई पड़ता है। वहीं पिछले दिनों पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान को भी मध्य प्रदेश की राजनीति में काफी सक्रिय देखा गया है। वैसे ही शिवराज का मन आत्मा मस्तिष्क आज भी मध्य प्रदेश में ही बसता है। फिलहाल एमपी बीजेपी में अंदर खाने काफी अंतर्द्वंद पसरा हुआ देखा जा रहा है। पिछले कई साल से बीजेपी प्रदेश में सत्ता में है। जिसके चलते यहां अब एमपी में पार्टी कई खेमों और गुटों में बंट चुकी है। हर कोई अपने-अपने हिसाब से सत्ता और संगठन को चलाने की मंशा जाहिर कर रहा है।