भारत की अर्थ्यवस्था कृषि प्रधान कही जाती है। समय के साथ ज्यादातर लोग शहरों में बस गए। पढ़ाई लिखाई बढने के बाद लोंगो ने कार्पोरेट की नौकरियों का रूख किया। कार्पोरेट में गांव औऱ खेत पहुंच पहले ही पीछे छूट गया। लेकिन कुछ ऐसे उदाहरण भी हैं देश के बड़े बड़े संस्थान के साथ काम करने के बाद भी घरों को मिस करके रहे। लाखों के पैकेज छोड़ वो वापस अपने गांव अपनी माटी की ओर लौट आए और आज करोड़ों में कमा रहे हैं. ऐसे ही एक नाम है सचिन काले का। आइए बतातें हैं कि आपको कि किस तरह से सचिन काले के संघर्ष की कहानी –
कभी करते थे इंजीनियरिंग
सचिन काले छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के मधेपुरा गांव के रहने वाले हैं। सचिन काले ने किसी सामान्य नौजवान की तरह नागपुर से केमकिल इंजीनिंयरिंग में बी टेक किया। सके बाद वो इंजीनीयर की नौकरी करने लगे। सचिन को सालान 24 लाख का पैकेज मिलता था। सचिन के पास इंजीनियिरं की ड्रिगी के साथ साथ कई और डिग्री हैं। सचिन ने फायनेंस में एम बी ए किया है, वो लॉ ग्रेजुएट भी हैं और उन्होंने इकोनामिक्स में पी एच डी भी कर रखी है। अब भला इतनी डिग्रियो के बाद कोई कैसे नौकरी करे बिना रहा सकता है। इतनी पढ़ाई और अच्छी नौकरी के बाद भी सजचिन का मन नहीं लग रहा था। आखिरकार उनको अपने दादा की बात याद आई कि इंसान खाने के बिना इस दुनिया में नहीं रह सकता। दादा की बात याद आते ही सचिन काले ने रूख किया गांव की ओर।
कांट्रेक्ट खेती से की शुरूआत
सचिन के पास खेती के लिए जमीन नहीं थी। सचिन के मुताबिक उनके दादा जी उनको खेती करने के जोखिम भी बताते रहते थे। जोखिम के बीच सचिन ने खेती करने का फैसला लिया। इसके लिए सबसे पहले किसान से जमीन किराए पर ली।
सचिन ने अपने सारी सेविंग खेती में लगा दी।
सचिन आज 200 एकड़ में करते हैं खेती
सचिन ने कांट्रेक्ट पर जमीन लेकर खेती शुरू की। धीरे धीरे फायदा होने लगा। सचिन के साथ किसान जुड़ते चले गए। सचिन ने 2014 में अपनी कंपनी शुरू कर ली। अब ,सचिन पूरे दो सौ एकड़ में खेती करते है। कंपनी का टर्न ओवर अब दो करोड़ है
सचिन की कपंनी का टर्न ओवर अब दो करोड़ है। कांट्रेक्ट किसानी मॉडल का देश में ये अपनी तरह का उदाहरण है। इससे कंपनी अच्छा खासा मुनाफा कमा रही है। इस मुनाफे से सचिन को तो फायदा हो ही रहा है उनके साथ साथ कई सारे किसानों को भी फायदा हो रहा है।