आखिर कौन समझेगा किसानों का दर्द

आखिर कौन समझेगा किसानों का दर्द

अन्नदाता, अन्नदाता का ओहदा आज भी हिंदुधर्म में सबसे बड़ा माना जाता है. शास्त्रों में भी लिखा है कि अनाज पैदा करने वाला किसान सबसे बड़ा अन्नदाता होता है. क्यों वही एक है जो गर्मी, ठंड़ या बारिश हो लेकिन किसान अपना कर्तव्य करना नहीं भूलता. कहा जाता है कि आज से कई वर्षो पहले किसानों को देश का सम्मानीय और सर्वोच्य नागरिक माना जाता था, खेती पकने के बाद पहला दाना किसान को ही अर्पण किया जाता था. लेकिन देश का दुर्भाग्य है की आज वही अन्नदाता अपने हक के लिए सड़कों पर सोने को मजबूर है. अपनी मांग के लिए किसान बीते कई महीनों से सरकार के खिलाफ खिलाफ आंदोलन कर रहा है.

यह वही किसान है जब चुनाव आते है तो, राजनैतिक दल किसानों को उनका हितैषी बताते है. वही किसान यह सोचकर उसे वोट दे देता है कि ये कुछ करेगा. लेकिन जैसे ही चुनाव में जीत मिलती है तो किसानों को पैरे तले कुचल दिया जाता है. आज भी यही हालात है. जब देश में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सरकार बनाने जा रही थी, उस दौरान बीजेपी ने एक नारा दिया था. सबका साथ सबका विकास जिसमें देश का किसान भी शामिल था. पर आज किसान का विकास तो नहीं हुआ, लेकिन हां किसान अपने हक के लिए सड़कों पर आने को मजबूर हो गया.

देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर बीते करीब 8 महीनों से किसान अपनी मांगों को लेकर डेरा डाले हुए है. किसान लगातार शांतिपूर्ण ढंग से सरकार के सामने अपनी बात रख रहे है, लेकिन सरकार की कान में बीते 8 महीनों से जूं तक नही रैंगी. दुख की बात तो यह है कि किसानों को सरकार से अपनी मांगों के लिए ऐसे लड़ना पड़ रहा है जैसे सीमा पर जवान लड़ता है. क्योंकि किसान आंदोलन के दौरान कई दर्जनों किसान शहीद हो चुके है. विगत कई दिनो से हज़ारो की संख्या में देश की रीढ की हड्डी किसान अपनी मांगों के लिए सरकार की यातनाएं झेल रहे हैं. साल भर आने को है लेकिन सरकार कोई ठोस निर्णय नहीं निकाल पाई.

किसानों के आंदोलन को कई लोग राजनीतिक रुप से देख रहे हैं, लेकिन मेरी नजर में यह आंदोलन देश का सबसे बड़ा दूसरा आंदोलन है. पहला आंदोलन देश को अंग्रेजों से आजाद कराने के लिए गांधी जी ने चलाया था तो आज के राकैश टिकैत जैसे गांधीवादी सरकार की हिटलरशाही से बचानें के लिए किसानों के पक्ष में आंदोलन चला रहे है. किसानों की मांग भी क्या है, किसानों की सबसे बड़ी मांग है केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन किसान बिलों को वापस करे. लेकिन देश की सरकार के दिमाग में क्या चल रहा है, सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या हज़ारों किसान बेवकूफ हैं. जो गर्मी, सर्दी और बरसात में खुद को प्रताड़ित कर रहे हैं.

अरे किसानों के दर्द को समझिए, किसान देश की एक बड़ी अर्थव्यवस्था है. जिसपर सरकार की नजर है. सरकार चाहती है कि इसका भी निजीकरण कर दिया जाए. किसानों के खिलाफ सरकार की यह बड़ी साजिश नजर आती है. सरकार का कहना है कि तीन कृषि कानूना से किसानों में मजबूती मिलेगी. लेकिन हमे समझ में नही आता कि जब सरकार यह कार्य खुद नही कर पा रही फिर किसी निजीकरण के हाथो में सौप कर क्या किसानों की समस्याएं सुलझ जाएंगी.

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