गुजरात और हिमाचल के विधानसभा चुनाव नतीजों के साथ ही यूपी की तीन और बिहार की कुढ़नी सीट पर हुए उपचुनाव के नतीजे भी 8 दिसंबर को आए थे। कुढ़नी में आश्चर्यजनक तौर से पांच दलों के महागठबंधन के खिलाफ भी भाजपा के केदार प्रसाद गुप्ता जीत गए।
कुढ़नी के परिणाम के मायने
कुढ़नी विधानसभा चुनाव इसलिए भी दिलचस्प हुआ क्योंकि बीजेपी 30 साल बाद अपने दम पर चुनावी मैदान में थी। इससे पहले इस सीट पर जेडीयू उम्मीदवार ही अपनी किस्मत आजमाते थे। कुढ़नी की सीट पर अघोषित तौर पर जेडीयू उम्मीदवार को पांच दलों का समर्थन हासिल था, लेकिन हार का मुंह देखना पड़ा।
कुढ़नी नहीं है किसी की पारंपरिक सीट
कुढ़नी विधानसभा सीट पर महागठबंधन की हार को तेजस्वी और नीतीश के मिलने के खिलाफ जनादेश बताना जल्दबाजी होगी। यहां इसलिए उपचुनाव कराने पड़े क्योंकि सिटिंग विधायक अनिल सहनी को फर्जी यात्रा भत्ते मामले में अयोग्य करार दे दिया गया था। जनता ने यहां कभी एक दल पर भरोसा नहीं किया।
2020 में अनिल सहनी ने इस बार जीतने वाले केदार प्रसाद गुप्ता को महज 712 मतों से हराया था। उससे पहले 2015 में केदार ने मनोज कुशवाहा को 11 हजार मतों से हराया था.
शराबबंदी भी था मुद्दा
इस सीट पर दलित वोटों की खासी तादाद है। यहां शराबबंदी बड़ा मुद्दा थी। पुरुष वोटर इसलिए नाराज थे कि उन्हें शराब से जुड़े केस झेलने पड़ रहे हैं और उधर महिलाओं की शिकायत है कि भले ही शराब पर आधिकारिक रूप से रोक है लेकिन अवैध शराब की दिक्कत बनी हुई है। महिलाओं ने तो यहां नीतीश की सभा में भी विरोध जताया था।
इस जीत से बीजेपी की बांछें खिली हुई हैं। वहीं नीतीश की पेशानी पर बल। हालांकि, नीतीश को जाननेवाले कहते हैं कि वह खुर्राट हैं, जितना ऊपर हैं, उतने ही नीचे भी। अभी उनके हाथ के पत्ते खत्म नहीं हुए हैं।