बिहार में जातिगत जनगणना के मुद्दे पर नीतीश सरकार को बड़ा झटका लगा है। पटना हाईकोर्ट ने जातिगत जनगणना पर रोक लगा दी है। पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस वी चन्द्रन की बेंच ने ये फैसला सुनाते हुए अब तक का डाटा सुरक्षित रखने के भी आदेश दिए है। इस मामले की अगली सुनवाई अब 3 जुलाई को होगी। दरअसल केंद्र सरकार जातीय गत जनगणना के पक्ष में नहीं है। आखिर ऐसा क्यों? क्या ये मुद्दा ही 2024 में हार-जीत तय करेगा? जातीय जनगणना होती कैसे है? क्या आरक्षण में इसके बाद बदलाव होगा?।
- पटना हाईकोर्ट ने लगाई जातिगत गणना पर रोक
- केन्द्र सरकार कर रही जातिगत गणना का विरोध
- इसका सबसे अधिक लाभ नीतिश और तेजस्वी को
- दोनों के लिए आसान होगा 2024 की राह
माना जा रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले जातिगत जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक हो जाते हैं तो बिहार के सीएम नीतीश कुमार और उनके डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव को सबसे बड़ा फायदा हो सकता है। क्योंकि दोनों ही नेताओं की पार्टियां बिहार में जाति की राजनीति करने के लिए ही पहचानी जाती हैं। इसके विपरीत संवेदनशील जातिगत जनगणना के आंकड़े मंडल और कमंडल की राजनीति के एक नए दौर को भी हवा दे सकते हैं। वहीं बिहार सरकार की ओर से ये भी कहा गया है कि गैर-एससी और गैर-एसटी से जुड़े आंकड़ों के ना होने से ओबीसी की जनसंख्या का सही अनुमान लगाना मुश्किल है। साल 1931 में हुई जनगणना के मुताबिक ओबीसी की आबादी 52 फीसदी आंकी गई थी। वहीं, जातिगत जनगणना की मांग करने वाले ये भी तर्क दे रहे हैं कि एससी और एसटी को उनकी आबादी के आधार पर आरक्षण दिया गया था। वहीं, ओबीसी की सही संख्या पता नहीं होने के कारण उन्हें फायदा नहीं मिल पाया। लिहाजा, कोटा को संशोधित करने के लिए जाति आधारित जनगणना जरूरी है।
सियासी दल कर हैं बिहार में जातिगण गणना की मांग
बता दें बिहार में ज्यादातर राजनीतिक दल जातीय जनगणना की लंबे समय से मांग कर रहे थे। उनका कहना है कि जातीय जनगणना होने से राज्य में रहने वाले दलित और पिछड़ा वर्ग के लोगों की सही संख्या पता चल जाएगी। ऐसे में बिहार विधानसभा और विधान परिषद में 18 फरवरी 2019 के बाद 27 फरवरी 2020 को जातीय जनगणना कराने से जुड़ा प्रस्ताव पेश किया गया। इस प्रस्ताव को राजद, जदयू समेत सभी दलों ने समर्थन दे दिया था। हास्यास्पद बाद ये है कि उस समय बीजेपी ने भी बिहार सरकार के इस फैसले का समर्थन किया था, जबकि अब केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार बिहारी बाबू के फैसले का विरोध कर रही है।
किस तरह के पूछे थे सवाल
बिहार में जातिगत जनगणना के पहले चरण में सर्वे किया गया। आंकड़े जुटाए गए। राज्य में घरों की गिनती शुरू की गई। शुरुआत पटना के वीआईपी इलाकों से हुई थी। पहले चरण में सभी मकानों को स्थायी नंबर दिया गया था। जबकि दूसरे दूसरे चरण में जाति और आर्थिक जनगणना पर काम किया जा रहा है। जिसमें संबंधित लोगों से उनकी शिक्षा, आय के साधन, परिवार में कमाऊ सदस्यों की संख्या, किस काम में दक्षता, नौकरी, आश्रितों की संख्या, गाड़ी, मोबाइल, मूल जाति, उपजाति, उप की उपजाति, गांव में जातियों की संख्या अरैी जाति प्रमाणपत्र से संबंधित सवाल पूछे हैं। बिहार के सामान्य प्रशासन विभाग को जातीय और आर्थिक जनगणना कराने की जिम्मेदारी दी गई। इसके लिए जिला स्तर पर कलेक्टर को नोडल पदाधिकारी नियुक्त किया गया।
नागरिकों की निजता का उल्लंघन
जातिगत जनगणना के खिलाफ कोर्ट गए याचिकाकर्ता का तर्क है कि सरकार को जातिगत जनगणना कराने का कोई अधिकार नहीं। याचिकाकर्ता ने कहा कि उचित कानूनी आधार के बिना लोगों को अपनी जाति प्रकट करने के लिए मजबूर करना सही नहीं है। यह नागरिकों की निजता का भी उल्लंघन है। वहीं सरकार ने जातिगत जनगणना के पक्ष में कहा है कि किस जाति की जनसंख्या कितनी है और उनकी आर्थिक स्थिति क्या है। पता लगाने के लिए जाति गणना कराई जा रही है। एक जाति जनगणना आपत्तियों के प्रावधान की सुविधा प्रदान करेगी।
बांग्लादेशी-रोहिंग्या पर बीजेपी का सवाल
वहीं बिहार में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव जाति गणना के नाम पर मिले। इससे पहले तेजस्वी यादव ने बिहार में जाति गणना नहीं होने पर पैदल मार्च करने की बात कही थी। नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने निजी तौर पर मुलाकात की। कहा जाता है कि जातीय जनगणना के बहाने राजद और जदयू साथ आ गए। केंद्र ने बिहार में जातिगत जनगणना कराने से इनकार कर दिया है। जबकि बीजेपी बिहार में जाति का समर्थन कर रही है। हालाँकि उनके पास बांग्लादेशी और रोहिंग्या के संबंध में कुछ प्रश्न हैं। जिनका सरकार ने संतोषजनक उत्तर नहीं दिया है।