बिहार के बाहुबली नेता और पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह की सहरसा जेल से रिहाई हो गई है। उनके स्वागत सत्कार के लिए जगह जगह होर्डिंग्स और पोस्टर लगाए गए हैं। जिसमें आनंद मोहन को’शेर ए बिहार’बताया गया है। बिहार का यह शेर कब तक बाहर रहेगा,इस पर संशय है। वजह ये है कि तमाम राजनैतिक दलों सहित ब्यूरोक्रेटस ने उनकी घेराबंदी शुरु कर दी है। जिसके चलते पटना हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर जेल के नियमों के बदलाव को चुनौती दी गई है।
. आनंद मोहन की रिहाई का हो रहा विरोध
. बिहार सरकार के लिए मुसीबत बन सकती है रिहाई
. हाईकोर्ट में सरकारी निर्णय को दी गई चुनौती
. बाहुबली नेता की हो रही चौतरफा घेराबंदी
. भाजपा ने बताया जंगलराज की वापसी
निर्णय को रद्द करने हाईकोर्ट में लगाई याचिका
पटना उच्च न्यायालय में याचिका लगाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अमर ज्योति हैं। उन्होंने अपनी याचिका में कहा है कि जिस तरह से बिहार सरकार ने जेल के नियमों में बदलाव किया वो तमाम ब्यूरोक्रेटस के मनोबल को तोड़ेगा। ईमानदारी से काम करने वाले अफसरों का मनोबल गिरेगा और बाहुबलियों को ताकत बढ़ेगी। इसलिए राज्य सरकार के इस निर्णय को तत्काल रद्द किया जाना चाहिए। मामले की गंभीरता को देखते हुए हाईकोर्ट इस याचिका पर जल्द सुनावाई कर सकता है। बता दें कि बिहार सरकार द्वारा जेल नियमावली 2012 में संशोधन किया गया है। जिसमें प्रावधान था कि किसी सरकारी अफसर की डियूटी के दौरान हत्या होती है तो दोषी को जिंदगीभर जेल में रहना पड़ेगा। अब नियमों को बदल कर सामान्य हत्या की तरह कर दिया गया है। मतलब दोषी को उम्रकैद होने पर 14 साल बाद जेल से रिहा किया जा सकता है।
भाजपा ने बताया बलि का बकरा
बाहुबली नेता आनंद मोहन की रिहाई पर भाजपा ने भी सवाल खड़े किए है। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा ने कहा है कि आनंद मोहन सिंह को बलि का बकरा बनाया गया है। उनके बहाने 27 लोगों को जेल से छोड़ना सरकार का मुख्य मकसद था। सिन्हा ने कहा कि बिहार में एक बार फिर जंगलराज की वापसी हो रही है। इसी की तैयारी के चलते जंगलराज के पुराधाओं को बाहर निकाला जा रहा है।
आइएएस एसोसिएशन भी बढ़ा सकता है मुश्किलें
बिहार के गोपालगंज में तत्कालीन डीएम जी.कृष्णैया की हत्या के दोषी आनंद मोहन सिंह की रिहाई पर आइएएस एसोसिएशन ने भी आपत्ति उठाई है। एसोसिएशन ने कहा है कि बिहार सरकार का यह फैसला अफसरों का मनोबल तोड़ने वाला है। जानकारों का कहना है कि ऐसोसिएशन की बात नहीं माने जाने पर उसके पास दो महत्वपूर्ण विकल्प हैं। एक तो सीधे केंद्र सरकार को मामले से अवगत कराए और उचित कार्रवाई का आग्रह करे। दूसरा सीधे हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जाकर फैंसले को रदद कराने की अपील करे। यदि इसमें से कोई भी एक विकल्प एसोसिएशन चुनता है तो बाहुबली पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। यहां तक की उन्हे वापस जेल भी जाना पड़ सकता है।
पहले फांसी फिर उम्रकैद और बाद में हुई रिहाई
बाहुबली नेता और शिवहर से पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह को 1994 में गोपालगंज के तत्कालीन डीएम और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के मामले में गिरफतार किया गया था। 2007 में उन्हे बिहार हाईकोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी। इसके ठीक एक साल बाद फांसी की सजा को बदलकर उम्रकैद में कर दिया गया था। इसके बाद हाल ही में नीतीश सरकार ने जेल के नियमों में बदलाव कर उन्हे 16 साल बाद जेल से रिहा करवा दिया।