सबको पता है कि राजनीति की दृष्टि से उत्तर प्रदेश सबसे महत्वपूर्ण है। दिल्ली की सत्ता, बगैर उत्तर प्रदेश के संभव नहीं है। या यूॅं कहें कि दिल्ली की गद्दी तक पहुंचना है तो यूपी से ही गुजरना होगा। इसका कोई शॉर्टकट नहीं है। ये बात भाजपा अच्छी तरह से समझ गई है। इसलिए 2019 में हुए लोकसभा चुनाव से ही भाजपा ने इस बड़े राज्य पर अपना दबदबा कायम रखा हुआ है। भाजपा के पक्ष में हालात कुछ इस तरह के हैं कि अच्छे अच्छे विरोधी राजनैतिक दल यहां घुटने टेकने को मजबूर हो रहे हैं।
. जनता ने सभी भाजपा के मेयर पर किया भरोसा
. अपराधियों के सफाऐ से बढ़ा योगी पर भरोसा
. चुनाव में टक्कर नहीं दे पा रहे विरोधी दल
. कई दिग्गजों के अभेद किले भी ढह गए
. सपा,बसपा और कांग्रेस नहीं हो पा रहे सफल
जबसे राज्य में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कमान संभाली है तब से लेकर आज तक उत्तर प्रदेश में केवल भाजपा का ही गुणगान हो रहा है। आखिर ऐसी कौन सी नब्ज भाजपा ने पकड़ी है,जिसके कारण राज्य भगवामय हो रहा है। यहां कभी माफियाओं का दबदबा था और गुंडागर्दी ऐसी कि दूसरे राज्य के लोग यहां कोई व्यावसाय तो दूर की बात घर और जमीन तक खरीदना पसंद नहीं करते थे। उनके मन में डर होता था कि कहीं उनकी संपत्ति पर कोई कब्जा न कर ले।
यूपी का सबसे बड़ा मुद्दा अपराध
एक समय था जब उत्तर प्रदेश में बढ़ती गुंडागर्दी और माफियागीरी से लोग परेशान थे। मकान और जमीनों पर कब्जों की खबरें सुर्खियां बनती थीं। इसी बीच भाजपा की सरकार आ गई और गुंडे माफियाओं पर शिकंजा कसना शुरु कर दिया। कई लोगों को राहत मिली और जनता का सरकार के प्रति भरोसा बढ़ गया। बता दें कि यूपी पुलिस के मुताबिक पिछले छह सालों में राज्य में पुलिस और अपराधियों के बीच 9,434 से ज्यादा मुठभेड़ें हुई हैं, जिसमें 183 अपराधी जान से मारे गए हैं। 5,046 अपराधियों को गिरफ्तार किया गया है। आधिकारिक आंकड़ों में यह भी कहा गया है कि पिछले छह सालों में इस तरह के अभियानों के दौरान 13 पुलिसकर्मी शहीद और 1,443 घायल हुए।
आजमगढ़ और रामपुर को भेदने में कामयाबी
भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता में आने के बाद उन क्षेत्रों में सेंध लगाना शुरु दिया जहां कभी सपा और बसपा के अभेद किले हुआ करते थे। आजमगढ़ और रामपुर समाजवादी पार्टी के मजबूत गढ़ थे। सपा के प्रमुख अखिलेश यादव और उनके पिता के बेहद करीबी रहे आजम खान इस क्षेत्र के अकेले सियासतदार थे। उनको दूर दूर तक कहीं कोई टक्कर देने वाला नहीं था। आजम खान ने जो तय कर दिया वहीं अंतिम निर्णय होता था। लेकिन जब यहां उपचुनाव हुए तो दोनो ही लोकसभा सीटे भाजपा के खाते में आ गईं।
फिलहाल भाजपा को टक्कर देने वाला कोई नहीं है
हाल ही में राज्य की दो विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भी भाजपा ने सावित कर दिया कि उसे टक्कर देने वाला फिलहाल कोई नहीं है। स्थिति ऐसी है कि महानगरों में यदि पूरा विपक्ष एक साथ मिलकर भाजपा के साथ खड़ा हो जाए तो भी मुकाबला करना आसान नहीं होगा। इसकी बानगी निकाय चुनाव में देखने को मिली है। जहां राज्य के पूरे 17 नगर निगमों में भाजपा के उम्मीदवारों ने भारी मतों से जीत हासिल की है। गाजियाबाद की महापौर प्रत्याशी सुनीता दयाल तो पौने तीन लाख से ज्यादा वोटों से चुनाव जीतीं। जबकि वाराणसी, लखनऊ और आगरा के भाजपा के महापौर प्रत्याशी भी बड़े अंतर से चुनाव जीतने में कामयाब रहे हैं। एक समय था जब सपा, बसपा और कांग्रेस की यूपी में तूती बोलती थी। अब इन तीनों दलों को एक एक सीट के लाले पड़े हुए हैं।
पहले महानगरों को किया मजबूत
कहते है कि भाजपा बहुत दूर की सोचती है। ये आज से नहीं बल्कि जनसंघ के जमाने से है। जनसंघ के समय में भाजपा ने उप्र के महानगरों पर नजर रखी। उस समय ज्यादातर बनियों ने पार्टी पर भरोसा किया था जिसके कारण लोग भाजपा को बनियों की पार्टी कहने लगे थे। इसके बाद भाजपा ने वक्त की नजाकत को भांपा और अपने वोट बैंक का दायरा बढ़ाना शुरु कर दिया। जिसके कारण तमाम सवर्ण जातियां भाजपा के साथ हो गईं। इसके बाद पिछड़ों को बड़े पैमाने पर भाजपा से जोड़ा गया। जिसके परिणाम स्वरूप राज्य में भाजपा अजेय की स्थिति में पहुंच गई।
जगह जगह दिखी भाजपा की लहर
राज्य में 199 नगर पालिकाएं और 544 नगर पंचायतों के लिए दो चरणों में चुनाव हुए। जिसमें भाजपा के 813 सपा के 191 और बसपा के 85 पार्षद चुनाव जीते हैं। मतलब दूसरे नंबर पर सपा और तीसरे नंबर पर बसपा का प्रदर्शन रहा है। नगर पालिका सदस्य भी भाजपा के 1360 जीते और सपा को मात्र 424 पर ही संतोष करना पड़ा। जहां तक नगर पंचायत अध्यक्षों का सवाल है भाजपा के 190,सपा के 78 और बसपा के 37 उम्मीदवार ही चुनाव जीते है। इसी तरह नगर पंचायत सदस्यों में भाजपा के 1403,सपा के 485 तथा बसपा के 215 प्रत्याशी चुनाव जीते हैं।