बात 43 साल पुरानी है। उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में ईद की नमाज के बाद सांप्रदायिक दंगे हुए थे। जिसमें 83 लोगों की जाने चली गई थीं। मामले का सच जानने के लिए एक सदस्यीय आयोग का गठन भी किया गया था। जांच पूरी हुई और हकीकत भी रिपोर्ट में बया कर दी गई। इसके बाद 43 साल बीत गए और इस दौरान 15 मुख्यमंत्री आए और चले गए लेकिन किसी ने इस रिपोर्ट को कैबिनेट या पटल पर रखना तो दूर इसकी तरफ देखने तक की जहमत नहीं उठाई।
. रिपोर्ट में छुपा है दंगों का काला सच
. पटल पर रखने की योगी सरकार ने दी मंजूरी
. कोई मुख्यमंत्री ने रिपोर्ट देखने की भी हिम्मत नहीं जुटाई
. योगी सरकार करेगी पूरे सच का खुलासा
. मुस्लिम लीग पर है दंगों के आरोप
आखिर इस रिपोर्ट में ऐसा क्या है कि कई राज्य में कई सरकारें आईं और चली गईं।लेकिन किसी इस रिपोर्ट पर नजर तक नहीं डाली। अब यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार है। जिसने इस रिपोर्ट पर आगामी कार्रवाई की हिम्मत जुटाई है। इस रिपोर्ट को यूपी की कैबिनेट में रख दिया गया है, और आने वाले दिनों में इसे यूपी विधानसभा की पटल पर भी रखा जाएगा। इसके बाद उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले समय में इस रिपोर्ट का सच सबके सामने आ जाएगा।
किसने और क्यों कराए थे दंगे
यह सोलह आने सच है कि दंगे आम गरीब आदमी न करता है और न कराता है। ये काम उन लोगों का होता है जिन्हे अपने राजनैतिक स्वार्थ दिखाई देते हैं। सत्ता में बैठे लोगों का संरक्षण होता है और निर्दोष लोगों की जाने चली जाती हैं। कुछ इसी तरह का मामला 13 अगस्त 1980 को हुआ था। मुरादाबाद में ईद की नमाज के बाद पथराव हुआ और देखते ही देखते सांप्रदायिक दंगा भड़क उठा जिसमें करीब 83 लोगों की जाने चली गई। इसके पीछे जिसका नाम बताया जा रहा है वो है मुरादाबाद का डॉ. शमीम अहमद खान। जिसने अपने राजनैतिक लाभ के लिए लोगों उकसाया और पथराव जैसी घटना का सूत्रधार बन बैठा।
हिन्दू संगठनों की दंगों में कोई भूमिका नहीं थी
मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक पूरे दंगे के पीछे आयोग ने मुस्लिम लीग के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष डॉ शमीम अहमद खान को सूत्रधार बताया था। इसके पीछे शमीम के तमाम समर्थक घटना को अंजाम दे रहे थे। आयोग ने शमीम सहित उनके कुछ समर्थक और दो अन्य मुस्लिम नेताओं को घटना का दोषी माना था। उन्होंने अपनी जांच रिपोर्ट में भाजपा या आरएसएस जैसे हिंदू संगठनों की हिंसा भड़काने में कोई भूमिका नहीं थी और न ही इस तरह के कोई प्रमाण मिले हैं। इसके अलावा पुलिस,पीएसी और प्रशासन पर भी इस तरह के कोई आरोप नहीं थे।यहां तक की जो मौतें हुई थी उसमें ज्यादातर भीड़ में मची भगदड़ के कारण हुई थी न की पुलिस फायरिंग से। यहां तक रिपोर्ट में ये भी बताया जा रहा है कि राजनैतिक दल वोट बैंक पर नजर न रखें। जो दोषी हैं उन पर तत्काल प्रभाव से कार्रवाई करें।
किसने किया था आयोग का गठन
दंगों के बाद राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एमपी सक्सेना की अध्यक्षता में दंगे की जांच के लिए न्यायिक आयोग का गठन किया था। इसके बाद आयोग ने पूरी गंभीरता से इस मामले जांच की। कई लोगों से पूछतांछ कर साक्ष्य जुटाए और अपनी रिपोर्ट तैयार की। लेकिन बीते 43 साल से रिपोर्ट धूल फांक रही थी,किसी ने इस रिपोर्ट पर आगे की कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटाई। जबकि इस अवधि राज्य में 15 मुख्यमंत्री आए और चले गए।
योगी ने दिखाई दम,पटल पर रखी जाएगी रिपोर्ट
राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने राज्य में ऐसे कई काम किए है जो वर्षो से कोई मुख्यमंत्री नहीं कर पाया है। वोट बैंक की चिंता और निजी स्वार्थो के चलते माफियाओं के हौंसले बढ़े और आम जनता पर अत्याचार होते रहे। लेकिन योगी सरकार ने माफियाओं को मिटटी में मिलाने का काम किया और आज राज्य में गुंडागर्दी चला चली की बेला में पहुंच गई है। योगी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में मुरादाबाद दंगे की रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखने के प्रस्ताव को मंजूरी दी।