दिल्ली विधानसभा चुनाव: जानें दलित बस्तियों का किसे मिलेगा साथ इस बार …जिसके साथ दलित उसी की सरकार…दलित बस्तियों में बदहाली आप पर पड़ेगी भारी!

Who will win from Dalit parties this time in Delhi Assembly elections

दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए अब प्रचार थम चुका है। 5 फरवरी को मतदान होगा, तो 8 फरवरी को नतीजे आएंगे। 70 विधानसभा वाली दिल्ली में नई दिल्ली सीट पर अरविंद केजरीवाल चौथी बार चुनाव के मैदान में हैं, लेकिन इस बार वे कड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं। नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में वाल्मीकि मंदिर भी आता है। हर बार नामांकन से पहले अरविंद केजरीवाल इस मंदिर में माथा टेकने जरुर जाते हैं। इस बार भी गये थे।

मंदिर से कुछ ही दूर वाल्मीकि बस्ती भी है। जिसमें वाल्मीकि समाज के लोग रहते हैं। जब इन लोगों से चुनावी चर्चा की गई तो चर्चा के बीच एक युवक का कहना था कि अबकी बार वाल्मीकि वोट कटेगा। कांग्रेस के खाते में भी वाल्मीकि वोट जाएगा तो बीजेपी में भी जाएगा और वहीं आम आदमी में भी जाएगा। एक बुज़ुर्ग ने कहा कि यहां बच्चों के पास रोजगार न होना सबसे बड़ी समस्या है।
बता दें यह वहीं वाल्मीकि बस्ती है, जहां अरविंद केजरीवाल ने पार्टी के दूसरे नेताओं के साथ 2013 में झाड़ू लगाकर अपने चुनाव चिह्न को लॉन्च यहां पर किया था। चुनाव चिन्ह् की राजनीति में केजरीवाल के इस चुनाव चिह्न झाडू को बीते दो चुनाव में दलित मतदाताओं का साथ मिला। जिसमें वो तबका भी शामिल है, जो दिल्ली की साफ़-सफ़ाई के काम से जुड़ा है। इस वर्ग के लिए झाड़ू की अपनी अलग ही अहमियत होती है।

साल 2013 में हुए चुनाव में दलित मतदाताओं ने तब नई नई बनी आम आदमी पार्टी का भरपूर साथ दिया था। 2013 के चुनाव में 12 आरक्षित सीटों में से नौ सीट पर आप ने जीत दर्ज की थी। पिछले दो चुनावों में तो आम आदमी पार्टी ने सभी बारह सीटों पर क्लीन स्वीप किया था।

जिसके दलित..उसकी सरकार

बता दें 1993 से लेकर 2020 तक हुए सात विधानसभा चुनाव में दलित वर्ग के लिए आरक्षित विधानसभा सीटों पर जिस पार्टी ने बढ़त हासिल की, उसी ने दिल्ली में सरकार बनाई। वाल्मीकि मंदिर से क़रीब 10 किमी दूर स्थित करोल बाग विधानसभा क्षेत्र में अंबेडकर बस्ती है। बता दें करोल बाग विधानसभा सीट भी आरक्षित सीट है। यहां बस्ती में बाहर की ओर तो साफ़-सफ़ाई नज़र आती है लेकिन गलियों के अंदर जाने पर गंदगी का अंबार नजर आने लगता है। बस्ती के लोगों के बीच बिजली, पानी और जल निकासी मूल मुद्दे हैं लेकिन यहां लोग अपनी झुग्गी को लेकर भी खासे चिंतित दिखाई पड़ते हैं।

दिल्ली की झुग्गी बस्तियों में मूलभूत सुविधाओं की दरकार

राजधानी दिल्ली में कीहब 600 से अधिक झुग्गी-झोपड़ी कॉलोनी और 1700 से अधिक कच्ची कॉलोनियां हैं। इनमें दलित वर्ग की एक बड़ी आबादी निवास करती है। दलित वर्ग की इन झुग्गियों को लेकर अक्सर ही बीजेपी और आम आदमी पार्टी के नेता आमने-सामने आ जाते हैं। आम आदमी पार्टी बीजेपी पर झुग्गी-बस्ती को तोड़ने का आरोप लगाती है तो बीजेपी ‘जहां पर झुग्गी वहीं पर मकान के नारे को बुलंद कर आप के इस आरोप का काउंटर करती है। अंबेडकर बस्ती से कुछ दूर सदर बाज़ार विधानसभा क्षेत्र लगता है। जिसमें आने वाली दया बस्ती है। दयाबस्ती में दाख़िल होते ही बाबा साहेब अंबेडकर की प्रतिमा लगी है। सड़कों और गलियों में गंदगी और घरों पर बसपा के झंडे टंगे दिखाई देते हैं। यहां बस्ती में जाटव समाज के मतदाताओं की संख्या अधिक है।

आरक्षित विधानसभा सीटों का सियासी गणित

1993 के चुनाव में विधानसभा की 70 में से 13 सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित की गईं थीं। भाजपा ने इन 13 सीट में से आठ सीट पर जीत दर्ज की और सरकार बनाई।
1998 के चुनाव में इन सीटों पर कांग्रेस ने बढ़त हासिल की। कांग्रेस ने 13 में से 12 आरक्षित सीटों पर जीत दर्ज कर दिल्ली में सरकार बनाई। इसके बाद 15 साल दिल्ली में शीला दीक्षित के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार रही। 15 साल बाद यह क्रम टूट गया। कांग्रेस ने 2003 में 10 और 2008 में नौ आरक्षित सीट पर जीत दर्ज की। हालांकि 2008 में हुए विधानसभा के परिसीमन के बाद आरक्षित सीटों की संख्या घटकर 12 हो गई थी।
साल 2013 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 12 में से नौ आरक्षित सीट जीतकर कांग्रेस के साथ मिलीजुली सरकार बनाई। इसके बाद 2015 और 2020 में आम आदमी पार्टी ने सभी बारह आरक्षित सीटों पर जीत दर्ज की और दोनों बार सरकार बनाई।

दिल्ली की ये 12 सीटें हैं आरक्षित

बवाना, करोल बाग, सुल्तानपुर माजरा, मंगोलपुरी, पटेल नगर, मादीपुर, अंबेडकर नगर, त्रिलोकपुरी, देवली, सीमापुरी, गोकलपुर और कोंडली।

(प्रकाश कुमार पांडेय)

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