कर्नाटक में सीएम कौन होगा? इसलिए उलझा है मामला

डीके और सिध्दारमैया में से कोई एक चुनना हो रहा कठिन

कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद को लेकर डीके शिवकुमार और सिध्दारमैया में तनातनी चल रही है। विवाद इतना ज्यादा बढ़ गया है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भी सुलझा नहीं पा रहे हैं। विधानसभा चुनाव के परिणाम आए हुए तीन दिन हो गए है लेकिन सीएम पद पर फैसला नहीं हो पा रहा है। कर्नाटक से लेकर दिल्ली तक हलचल मची हुई है डीके शिवकुमार को कमान सौंपें या सिध्दारमैया को। कोई कुछ नहीं समझ पा रहा है। इस विवाद के कई कारण है। जिसकी वजह से मामला अटका हुआ है।

    कांग्रेस की महत्वपूर्ण कड़ी हैं दोनों नेता
    तीन दिन के बाद भी नहीं सुलझा सीएम का मसला
.      बैठक पर बैठक हो रही, फिर भी समाधान नहीं
    दोनों नेताओं के समर्थक कर रहे हैं नारेबाजी
    सहमति बनाने के हो रहे प्रयास

​कर्नाटक में दोनों नेता कांग्रेस के अपने प्रिय हैं। डीके शिवकुमार और सिध्दारमैया की अपनी लोकप्रियता है और जमीनी पकड़ भी रखते हैं। किसी एक को सीएम बनाना और दूसरे को न बनाना कांग्रेस के लिए दिक्कत वाला काम है। ऐसे में पार्टी चाहती है कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।

डीके शिवकुमार पर इसलिए फंस रहा पेंच

ये बात सच है कि कर्नाटक में डीके शिवकुमार का अपना क्रेज है। लोग उन्हे चाहते हैं और वे एक काबिल नेता भी है। उन्होंने कांग्रेस पार्टी के लिए जितना योगदान दिया है वो शायद ही कर्नाटक कांग्रेस में किसी नेता ने दिया हो। तमाम राजनैतिक दवाब और धमकियों के बाद भी उन्होंने कांग्रेस का दामन नहीं छोड़ा। कुछ विवादों में उलझे और जेल भी गए। इसके बाद भी उनके मन में सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस ही रही। कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में बंपर जीत के पीछे भी शिवकुमार की कड़ी मेहनत और त्याग को माना जा रहा है। उनके अपने कांग्रेस के प्रति योगदान के कारण ही उन्हे पार्टी का संकट मोचन भी कहा जाता है।

इसलिए संशय में हैं कांग्रेस हाईकमान

डीके शिवकुमार के नाम पर कांग्रेस हाई कमान संशय में हैं। वजह ये है कि कांग्रेस को लगता है कि यदि डीके को मुख्यमंत्री बनाते हैं तो उनके खिलाफ चल रहे प्रकरण कहीं मुसीवत खड़ी न कर दें। भाजपा पर अब तक जिस तरह से सरकारें तोड़ने फोड़ने के आरोप लगे हैं उसको लेकर कांग्रेस दुविधा है। डर है कि कहीं डीके को सीएम बनाने पर कहीं कोई कानूनी पचड़े में फंस गए तो कांग्रेस के लिए नई मुसीबत खड़ी हो जाएगी। यही कारण है कि कांग्रेस डीके के नाम पर खुलकर समर्थन नहीं कर रही है। फिर एक सवाल और है कि डीके के पास विधायकों का बंपर समर्थन है। कहीं नाराज हो गए तो भी दिक्कतें बढ़ सकती हैं।

सिद्धारमैया पर कहां आ रही दिक्कत

राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया कई दशकों से कर्नाटक की जनता के बीच काम कर रहे हैं। उनकी अपनी प्रतिष्ठा है जिसे कांग्रेस हाई कमान नकारने में संकोच कर रहा है। 2013 से 2018 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे सिध्दारमैया की कई योजनाओं ने उन्हे खूब लोकप्रियता दिलाई। जिसमें सात किलो चावल देने वाली वालाअन्न भाग्य योजना, स्कूल जाने वाले छात्रों को 150 ग्राम दूध और इंदिरा कैंटीन शामिल थीं। गरीबों के लिए चलाई गई इन योजनाओं के कारण उन्हे गरीबों का मसीहा भी कहा जाने लगा था। इसलिए उनकी अपनी लोकप्रियता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। 1983 में पहली बार विधायक बने सिध्दारमैया 1994 में जनता दल सरकार में रहते हुए कर्नाटक के उप-मुख्यमंत्री बने। फिर एचडी देवगौड़ा के साथ विवाद होने के बाद जनता दल सेक्युलर का साथ छोड़ा और 2008 में कांग्रेस के साथ हो गए। वे 2013 से 2018 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे चुके हैं। उन्होंने अब तक 12 चुनाव लड़े हैं जिसमें से नौ में जीत दर्ज की है।

इसलिए सीएम के नाम पर संशय

सिद्धारमैया कांग्रेस के वफादार सिपाही रहे है,इसमें कोई शक नहीं है। लेकिन उन्हे मुख्यमंत्री बनने का मौका कांग्रेस दे चुकी है। ऐसे में किसी नए व्यक्ति को अवसर मिलना चाहिए। शायद इसी सोच के साथ कांग्रेस सिद्धारमैया के नाम पर समर्थन करने से कतरा रही है। जहां तक डीके शिवकुमार का सवाल है तो उन्होंने इस चुनाव में कड़ी मेहनत करके कांग्रेस को स्थापित करने में बड़ी भूमिका निभाई है।

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