क्या एकनाथ की तर्ज पर अजित पवार में संभावनाएं खोज रही है भाजपा

भाजपा नेताओं से संपर्क

सुप्रिया और प्रफुल्ल पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष बनाये जाने के बाद अजित छोड़ सकते हैं एनसीपी
अजित पवार क्या आने वाले समय में भाजपा से दोस्ती करेंगे? यह सवाल दिल्ली के राजनैतिक गलियारों में तैरता रहा। भाजपा भी महाराष्ट्र में अपने गठबंधन में ऐसे नेताओं के स्वागत की इच्छुक है जो एनसीपी, कांग्रेस और उद्वव ठाकरे का साथ छोड़ कर उसके पाले में आ सकते हैं। एनसीपी के कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल की नियुक्ति से अजीत पवार बहुत नाराज बताये जा रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि भाजपा में इस पूरे घटनाक्रम पर पैनी निगाह बनाये हुए है। कोशिश है कि अजित पवार अपने चाचा शरद पवार का साथ छोड़कर महा विकास अघाड़ी से बाहर आ जायें।

भाजपा नेताओं से संपर्क

भाजपा अजित पवार में वहीं संभावना देख रही है जैसी उसने शिवसेना के मामले में एकनाथ शिंदे में नजर आयी थी। ठाकरे परिवार से शिवसेना एक ही झटके में छीनकर कर भाजपा ने महाराष्ट्र की सियासत में भूचाल ला दिया था। क्या अजित पवार एनसीपी के भीतर ऐसा ही दांव चल पायेंगे जो एकनाथ शिंदे ने शिवसेना में खेला था, यह एक बड़ा सवाल है। भाजपा के भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि पार्टी के कुछ बड़े नेता लगातार अजित पवार के संपर्क में हैं। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस के अजित के साथ अच्छे संबंध हैं। गौरतलब है कि शरद पवार ने अजित को एनसीपी का कार्यकारी अध्यक्ष न बनाकर साफ संदेश दे दिया है कि उनका इरादा अपने भतीजे के बगावती तौर तरीकों पर लगाम कसने का है।

इस्तीफे का दांव खेला

पिछले दिनों जब शरद पवार ने अचानक एनसीपी सुप्रीमो के पद से इस्तीफे की घोषणा की थी तब अजीत पवार खुद को पार्टी का अगला मुखिया मानने लगे थे। उन्होंने सार्वजिनक रूप से भी यह जताया था कि शरद पवार ने इस्तीफा दे दिया है और अब पार्टी नये नेतृत्व के साथ आगे का रास्ता तय करेगी। मराठा क्षत्रप पवार ने अपने भतीजे को पार्टी में अलग थलग करने की रणनीति के तहत ही इस्तीफे के दांव खेला था और जब पार्टी पूरी तरह से उनके पीछे लामबंद हुई तो शरद पवार ने अपना इस्तीफा वापस ले लिया था। उसी दिन से अजीत पवार को किनारे लगाने के कयास लगने शुरू हो गये थे। दरअसल घटनाक्रम इतनी तेजी से घूमा कि अजीत एनसीपी के जिन विधायकों को अपना मान रहे थे वे भी शरद पवार से इस्तीफा वापस लेने का आग्रह करते हुए दिखे थे। अजीत के लिए वो एक बड़ा झटका था।

एनसीपी विधायकों पर वैसी पकड़ नहीं

एनसीपी के जानकारों का कहना है कि शरद पवार का अजित से भरोसा तभी उठ गया था जब उन्होंने 23 नवंबर 2019 को भाजपा से हाथ मिलाकर राजभवन में उपमुख्यमंत्री की शपथ ले ली थी। शरद पवार मानते हैं कि अजित पवार लगातार मौके की तलाश में रहते हैं और जब भी उन्हें भाजपा के साथ जाने में फायदा नजर आयेगा वह चले जायेंगे।जानकारों का मानना है कि अजित पवार की फिलहाल एनसीपी विधायकों पर वैसी पकड़ नहीं है जो कुछ समय पहले तक थी। शरद पवार और सुप्रिया सुले ने अपने विधायकों के साथ मेलजोल लगातार बढ़ाया है। एक बड़ा कारण कर्नाटक चुनाव में भाजपा को कांग्रेस के हाथों मिली हार भी है। एनसीपी के ज्यादातर विधायकों को लगता है कि फिलहाल महा विकास अघाड़ी के गठबंधन में रहकर ही चुनाव लड़ने में फायदा है। महाराष्ट्र में अगले साल विधानसभा चुनाव होना है।

पहले से ही बड़ी ज़िम्मेदारी

अजित पवार इस बात से ज्यादा नाराज हैं कि उनके चाचा ने प्रफुल्ल पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया। अगर पवार सिर्फ अपनी बेटी सुप्रिया को ही अकेले कार्यकारी अध्यक्ष बनाते तो एकबार अजित इस फैसले का हजम कर जाते लेकिन पटेल को आगे बढ़ाकर शरद पवार ने एनसीपी कार्यकर्ताओं और संगठन को साफ संदेश दिया है कि अब अजित पवार किनारे कर दिये गये हैं। हालांकि शरद पवार ने इन खबरों को सही नहीं बताया है जिनमें कहा जा रहा है कि अजित नाराज हैं। उन्होंने कहा है कि अजित के पास पहले से ही महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता की पहले से ही बड़ी ज़िम्मेदारी है। पर राजनीति के पारखी जानते हैं कि अजित पवार पिछले तीन चार सालों से पार्टी में अपने चाचा की कुर्सी लेना चाहते हैं। अगले साल लोकसभा और महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव हैं और फिलहाल भाजपा इस मौके को एनसीपी में सेंध लगाने के बड़े अवसर के रूप में देख रही है।

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