अंतिम चरण में ऑपरेशन टनल: फंसे मजदूर को पाइप से भेजा मटर पनीर और मक्खन के साथ चपाती

Uttarkashi Operation Tunnel Trapped Laborers

देवभूमि उत्तराखंड के उत्तरकाशी में हुए टनल हादसे को 11 दिन बीत जाने के बाद भी टनल में फंसे 41 श्रमिकों को बाहर नहीं निकाला जा सका है। सिलक्यारा गांव की इस सुरंग से श्रमिकों को निकालने के लिए युद्धस्तर पर रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ उन्हें खाने-पीने के लिए बेहतर से बहतर चीजें भेजने की कोशिशें की जा रही हैं। इस इंतजाम को पुख्ता करने के लिए ही 2 दिन पहले प्रशासन ने 6 इंच का पाइप मलबे के दूसरी ओर सफलतापूर्वक पहुंचाया था। जिसके जरिए मजदूरों को खाने-पीने की सभी चीजें भेजी जा रही हैं। बीती रात को मजदूरों को खाने का सामान पाइप के जरिए पहुंचाया। जिसमें शाकाहारी पुलाव, मटर-पनीर और मक्खन के साथ चपाती भेजी गईं थीं। यानी अब ये पाइप ही इन मजबूर मजदूरों की उम्मीद का आखरी उम्मीद की तरह दिखाई दे रहा है।

पाइप के सहारे पुलाव से लेकर रोटी और सब्जी ही नहीं फल फ्रूट और पानी के साथ वॉकी-टॉकी और ऑक्सीजन तक अंदर पहुंचाई गई। इस छह इंच के पाइप ने मजदूरों तक जरुरी चीजें पहुंचाने का रास्ता आसान बना दिया है। छोटी सी इस कामयाबी का यह सकारात्म असर हुआ है कि मजदूरों के परिवारों की अब उम्मीद बढ़ गईं हैं। उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही उनके अपनों को इस सुरंग से बाहर निकाल लिया जाएगा। हालांकि उत्तरकाशी की सुरंग में फंसी ये 41 जिंदगियों के लिए बेचैनी बढ़ती जा रही है। जा स्वाभाविक भी है। पिछले 11 दिनों से ये मजदूर इस सुरंग में फंसे हैं। इन्हें सुरक्षित बाहर निकालने के लिए किए जा रहे युद्ध-स्तरीय प्रयासों का अब तक कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पाया है। इससे भी हालात की गंभीरता साफ नजर आ जाती है।

सुरंग में फंसे मजदूरों से हो रहा लगातार संवाद

हालांकि अच्छी बात यह है कि इन मजदूरों से संवाद हो पा रहा है। उन तक तक ऑक्सीजन के साथ दवार्द और खाने की सामग्री पहुंचाई जा रही हैं। लेकिन इस समय सबसे अधिक जरूरत उनके मनोबल को ऊंचा बनाए रखने की है। और यह काम वहां पहुंचे उनके परिजन ज्यादा बेहतर कर सकते हैं। निस्संदेह, वे लोग भी कम अधीर नहीं हो रहे होंगे, लेकिन शासन-प्रशासन को उन्हें भरोसे में लेकर यह काम करना होगा। इन परिजनों को मौके पर सभी सुविधाएं मुहैया कराने के साथ-साथ मनोचिकित्सकों की सहायता भी उपलब्ध कराई जानी चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से राज्य के सीएम पुष्कर सिंह धामी से इस संदर्भ में जानकारी लेने से यकीनन परिजनों को संबल मिला होगा कि सरकार अपने तरीके से पूरी कोशिश कर रही है। यह हादसा कुछ सवाल भी खड़े करता है। इस तरह की सुरंगों की खुदाई में क्या ऐसी स्थिति को कल्पना नहीं की जाती ? अगर होती है, तो इसमें बचाव के विकल्प भी सोचे हो गए होंगे ? उत्तरकाशी की इस सुरंग योजना में क्या वे एहतियाती कदम उठाए गए थे? खासकर तब। जब पहले से तमाम पर्यावरणविद् व स्थानीय बुद्धिजीवी पहाड़ी इलाकों की कतिपय परियोजनाओं को लेकर आगाह करते रहे हैं। इस घटना से केंद्र और राज्य सरकारों को गंभीर सबक लेने की जरूरत है, क्योंकि किसी भी अनहोनी का अन्य परियोजनाओं में कार्यरत मजदूरों के मनोबल पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। इसमें कोई दोराय नहीं कि पहाड़ों को भी विकास चाहिए। न सिर्फ वहां से हो रहे लगातार पलायन को रोकने के लिहाज से, बल्कि सुरक्षा की दृष्टि से उत्तरकाशी की घटना से सबक लेने की जरूरत है, क्योंकि किसी भी अनहोनी का अन्य परियोजनाओं में कार्यरत मजदूरों के मनोबल पर प्रतिकूल असर पड़ता है। यह खासा जरूरी है। मगर इसकी रूपरेखा उसके भूगोल के मिजाज के अनुरूप ही खींची जानी चाहिए। इसलिए उत्तरकाशी के इलाके में बढ़ती कुदरती आपदाओं का गहन अध्ययन बहुत आवश्यक है।

सुरंग और रास्ता बनाना हमेशा से रहा चुनौती पूर्ण

अमूमन सुरंग और उसके जरिए रास्ता बनाना हमेशा से ही चुनौतीपूर्ण रहा है। लेकिन आधुनिक युग ने दुनिया भर की सरकारों और नीति-निर्माताओं को इसके लिए प्रेरित किया है। अब तो काफी लंबे-लंबे ऐसे रास्ते आसानी से बनाए जाने लगे हैं। जाहिर सी बात है इससे न सिर्फ यातायात सुगम हुआ है, बल्कि सुदूर इलाकों तक विकास की किरण पहुंचाने में भी सहायता मिली है। महानगरों की बात करें तो भूमिगत ट्रेन हजारों यात्रियों के दैनिक जीवन को सुविधा संपन्न बना रही हैं। बल्कि पिछले कुछ साल में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश में छोटे-बड़े कई सुरंगी राह का उ‌द्घाटन हुआ है। इससे वहां के लोगों के जीवन में काफी सुविधाएं भी मिली हैं। ऐसे में तमाम विकास परियोजनाओं को उत्तरकाशी जैसी घटना से निरापद बनाने की जरुरत है। यह घटना एक नागरिक, और एक मनुष्य के तौर पर भी हमसे संवेदनशील बनने की मांग करती है। हम सबको सुविधाएं तो चाहिए, मगर वे किस कीमत पर मिली हैं या मिलेंगी, इसके प्रति हम प्रायः उदासीन रहते हैं। तो अब जब भी किसी मुश्किल सुरंग या दुर्गम पहाड़ी राहों से गुजरें, अपनी कृतज्ञता उन मजदूरों और इंजीनियरों के प्रति जाहिर अवश्य करें। इन मजदूरों और इं​जीनियरों ने अपनी जान जोखिम में डालकर इन कामों को मुमकिन बनाया है।

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