घोसी उपचुनाव: पूर्वांचल में किसका बजेगा डंका,एनडीए और इंडिया के बीच पहली जंग

Uttar Pradesh Ghosi By-Election

उत्तरप्रदेश के पूर्वी क्षेत्र मऊ जिले में सियासी सरगर्मी तेज हो गई है। वैसे तो मौसम बारिश का है, लेकिन यहां घोसी विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव ने माहौल गरमा दिया है। उपचुनाव में जहां बीजेपी की ओर से दारा सिंह चौहान उम्मीदवार के रुप में मैदान में हैं तो विपक्षी समाजवादी पार्टी ने पुराने समाजवादी सुधाकर सिंह प्रत्याशी बनाया है। यहां बसपा कांग्रेस मैदान से बाहर हैं। लिहाजा बीजेपी और सपा के बीच ही ये सीधी लड़ाई अब एनडीए और विपक्षी गठबंधन इंडिया यानी इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस की पहली परीक्षा के तौर पर भी देखी जा रही है। बीजेपी के साथ सपा के लिए भी घोसी उपचुनाव कैसे अग्निपरीक्षा बन गया है? आइए जानते है।

घोसी विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव बीजेपी के नेतृत्व वाले केन्द्र में सत्ताधारी गठबंधन एनडीए और विपक्षी समाजवादी पार्टी के लिए अग्निपरीक्षा बन गया है। वैसे बसपा के मैदान से बाहर होने पर ये लड़ाई सीीधे तौर पर एनडी और इंडिया के बीच मानी जा रही है। 2022 में हुए विधानसभा चुनाव के समय घोसी सीट से सपा प्रत्याशी के तौर पर दारा सिंह चौहान ही विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए थे लेकिन दारा ने हाल ही में विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के साथ ही बीजेपी में शामिल हो गए थे। ऐसे में रिक्त हुई सीट पर फिर उपचुनाव में दारा सिंह मैदान में हैं। बीजेपी ने दारा पर ही दांव लगा दिया है। यहां बीजेपी एक बड़ी जीत की कोशिश में है। जिससे लोकसभा चुनाव के ठीक पहले वह पूर्वांचल में अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत कर सके। इधर सपा भी इस कोशिश में हैं इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा जाए।

स्थानीय विधायक की मांग

मऊ में घोसी विधानसभा क्षेत्र पर हो रहे उपचुनाव के लिए 5 सितंबर को मतदान होना तो वहीं 8 सितंबर को मतगणना होगी। क्षेत्र के नदवा सराय में उपचुनाव को लेकर मतदताओं में उत्साह है। भाजपा और सपा में ही घमासान हो रहा है। स्थानीय लोगों की माने तो क्षेत्रीय उम्मीदवार को विधायक बनना चाहिए। बाहरी विधायक होने से यहां क्षेत्रीय जनता को कोई लाभ नहीं मिलेगा। लिहाजा वे अपने स्थानीय उम्मीदवार को ही विधायक बनना चाहेंगे।

भाजपा ने खेला दारा सिंह पर दांव

घोसी विधानसभा उपचुनाव के लिए प्रत्याशियों की बात करें तो भाजपा की ओर से दारा सिंह चौहान तो वहीं समाजवादी पार्टी की ओर से सुधाकर सिंह मैदान में है। दारा सिंह चौहान वैसे तो मूल रूप से आजमगढ़ जिले के निवासी हैं और सुधाकर सिंह मऊ के घोसी नगर के ही रहने वाले हैं। ऐसे में लोग जब स्थानीय नेता की बात करते हैं, तो इशारा सुधाकर सिंह की ओर होता है। हालांकि दारा सिंह चौहान भी भाजपा के कद्दावर नेताओं में शुमार माने जाते हैं। लेकिन दल बदल कर घर वापसी के बाद दारासिंह चौहान से लोग काफी नाराज हैं। घोसी उपचुनाव विपक्ष के नए नवेले गठबंधन इंडिया की अग्निपरीक्षा भी माना जा रहा है। बसपा ने उपचुनाव में उम्मीदवार नहीं उतारा। मायावती के नेतृत्व वाली पार्टी के इस फैसले ने साफ कर दिया कि घोसी की लड़ाई बीजेपी बनाम सपा यानी दारा सिंह चौहान बनाम सुधाकर सिंह होगी। मायावती अपने इस फैसले के जरिए दरअसल नए नवेले गठबंधन इंडिया की ताकत का आकलन करने की रणनीति बना रही हैं। पिछले दिनों मायावती ने पटना में विपक्ष की बैठक के पहले ही साफ कहा था कि उनकी इस पर पैनी नजर है। दरअसल आजमगढ़ लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में बसपा के उम्मीदवार ने सपा का खेल बिगाड़ दिया था। तब बीजेपी को जीत मिली थी। ऐसे में अब बसपा के उम्मीदवार नहीं उतारने के फैसले के पीछे कहा जा रहा है कि बयपा सुप्रीमो मायावती ये देखना चाहती हैं कि यूपी में ये गठबंधन क्या एनडीए को हराने की ताकत रखता है।

प्रभावित होगा अखिलेश-राजभर का कद

दारा सिह बनाम सुधाकर के बीच की ये चुनावी जंग सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव और सुसप्रभा के ओमप्रकाश राजभर के लिए भी परीक्षा से कम नहीं है। अगर दारासिंह जीतने में सफल रहे तो जीत के अंतर पर ओमप्रकाश राजभर का एनडीए में, योगी कैबिनेट में वजन निर्भर करेगा। वहीं सुधाकर सिंह अगर घोसी सीट फिर से सपा की झोली में डाल देते हैं तो विपक्षी गठबंधन इंडिया में अखिलेश यादव की तवज्जो बढ़ जाएगी उनका कद बढ़ जाएगा। इतना ही नहीं घोसी उपचुनाव में जीत से सपा के समर्थन में देशभर में बड़ा संदेश जाएगा। माना जाएगा बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन एनडीए में ओमप्रकाश राजभर जैसे नेताओं का प्रवेश छोटी-छोटी पार्टियों के आने के बाद भी अखिलेश यादव के नेतृत्व वाला गठबंधन इंडिया भारी है। इससे संदेश ये जाएगा कि बीजेपी को हराया जा सकता है। साथ ही ये भी संदेश जाएगा कि यूपी में गठबंधन इंडिया की अगुवाई अखिलेश यादव ही करें।

बीजेपी जीती तो बढ़ेगी ‘माया’ की अहमियत

घोसी विधानसभा सीट पर उपचुनाव में बीजेपी की जीत होती है तो विपक्षी गठबंधन इंडिया पर भी सवाल उठने लगेंगे। वहीं सत्ताधारी गठबंधन एनडीए भी इस जीत के साथ फ्रंटफुट पर आकर खेलता नजर आएगा। जाएगा। ये विमर्श भी शुरू हो जाएगा। क्या यूपी में सपा-कांग्रेस और आरएलडी की तिकड़ी बीजेपी को टक्कर दे पाएगी। नई पार्टियों को भी साथ लाया जाए। ऐसे में बसपा की पूछ और मायावती की अहमियत, दोनों ही बढ़ जाएंगी।

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