भारतीय जनता पार्टी जानती है कि उत्तर प्रदेश में अच्छी पैठ बन गई तो मानकर चलिए कि दिल्ली दूर नहीं है। इसी सोच के साथ भाजपा उत्तरप्रदेश में अपनी गहरी पैठ बना रही है। हालांकि ये भी सही है कि राज्य में सीएम योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा की सरकार चल रही है। सीएम योगी की अपनी छवि है,उन्हे चाहने की वालों की संख्या कम नहीं हुई है,और तो और यहां एंटीइन्कंबेंसी का असर भी दिखाई नहीं दे रहा है। इसके बाद भी भाजपा राज्य में कोई जोखिम लेना नहीं चाहती है।
यूपी में सभी सीटें जीतना चाहती है भाजपा
भारतीय जनता पार्टी अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में यूपी की सभी सीट जीतना चाहती है। उसे लगता है यहां समाजवादी पार्टी से उसे चुनौती मिल सकती है। लेकिन समाजवादी पार्टी की कमजोरी ये है कि यहां कई नेता असंतुष्ट हैं और वे दूसरे दलों में अपनी जगह खोज रहे हैं। भाजपा इसी बात का फायदा उठाने की कोशिश करती दिख रही है। यही वजह है कि उत्तर प्रदेश में कद्दावर नेता दारा सिंह को सपा से वापस भाजपा में प्रवेश मिल गया है। ये सपा के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। बताया जा रहा है कि और भी कई नेता सपा से भाजपा में जाने के लिए लालयित हैं और भी सपा प्रमुख अखिलेश यादव को झटका दे सकते हैं। यदि ऐसा ही चलता रहा है तो सपा के लिए ढेरों चुनौतियां खड़ी हो जाएंगी।
पूर्वांचल ने भाजपा को दिया था झटका
बीते 2014 में भाजपा ने लगभग पूरे उत्तर प्रदेश पर अपना परचम लहराया था। 2019 में भी लगभग यही नतीजे रहे थे। हालांकि 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा और सुभासपा गठबंधन ने पूर्वांचल की कई सीटों पर भाजपा को झटका दिया था। अब आने वाले चुनाव में कुछ इस तरह की स्थिति न बने का इसका भाजपा पूरा ख्याल रख रही है। यही कारण है कि एक बार फिर सुभासपा को एनडीए में शामिल कर भाजपा ने बड़ा दांव चल दिया है।
पश्चिमी यूपी में कुछ इस तरह बन रहे समीकरण
उत्तर प्रदेश के पश्चिम इलाके में एसपी आरएलडी गठबंधन ने 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान जाट वोटों को विभाजित करने में कुछ हक तक कामयाबी हासिल की थी। इसी के मद्देनजर मीडिया रिपोर्ट में आ रही खबरों के मुताबिक भाजपा आरएलडी को अपने पाले में लाने की कोशिश कर सकती है। इसी तरह बिहार में भी भाजपा दलित और पिछड़ों से जुड़ अलग अलग जातियों की पार्टियां को साथ लाकर नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के गठबंधन में सेंध लगाने की कोशिश करती बताई जा रही है।