हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में यूपी की सियासत में प्रभावी कई राजनीतिक दल भी अपनी किस्मत आजमाने के लिए उतरे हैं। चाहे वो बहुजन समाज पार्टी हो या आजाद समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल तक सभी पूरे दमखम के साथ जाट लैंड में विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए हुंकार भरते नजर आ रहे हैं। वहीं सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने हरियाणा के चुनाव में उतरने के फैसले को टाल दिया है। अब वे हरियाणा में कांग्रेस का प्रचार करते नजर आएंगे।
हरियाणा चुनाव को लेकर सियासी दांव-पेच शुरु
- मायावती की अगुवाई वाली पार्टी बसपा ने संभाला मोर्चा
- आईएनएलडी के साथ किया मायावती ने गठबंधन
- जाट-दलित समीकरण को साधने में जुटी बसपा और आईएनएलडी
- चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी ने मिलाया जेजेपी से हाथ
- यूपी के दल हरियाणा में सक्रिय,ठोक रहे चुनावी ताल
- कद बढ़ाने की चाहत में न बन जाएं वोट कटवा
- जाट लैंड में हुंकार भर रहे यूपी के नेता
- अखिलेश की सपा ने पीछे खिंचे कदम
क्या कांग्रेस यूपी में देगी 2027 में समाजवादी पार्टी को सीट?
समाजवादी पार्टी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से 37 सीट जीती थी, सपा यूपी में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। ऐसे में सपा प्रमुख अखिलेश यादव पार्टी को राष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए ही शायद हरियाणा विधानसभा चुनाव में किस्मत को आजमाना चाहते थे। सपा का प्रयास था कि इंडिया गठबंधन में शामिल होकर चुनाव लड़ें। इस तरह समाजवादी पार्टी हरियाणा में कांग्रेस के सहारे ही जाट लैंड में अपनी जमीन तलाशना चाहती थी। हालांकि अब तक दोनों दलों के बीच सहमति नहीं बनी और सपा ने कदम पीछे खींच लिये। दरअसल हरियाणा में कांग्रेस के स्थानीय नेता इस विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करना चाहते थे।
हालांकि पहले समाजवादी पार्टी ने यह भी तय कर रखा था कि कांग्रेस अगर उसे सीट नहीं देती है तो वह हरियाणा में अकेले अपनी चुनावी किस्मत आजमाएगी, लेकिन उसने बड़ा दिल दिखाया और कदम पीछे खिंच लिये। बता दें 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाई थी। वह चार सीटों पर लड़ी लेकिन सभी में चारों सीट पर उसकी जमानत जब्त हो गई थी। इसके बाद भी समाजवादी पार्टी ने हरियाणा के 2024 के विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए अपनी तैयारी शुरू कर दी थी। जिसके लिए यादव और मुस्लिम प्रभाव वाली सीटों पर चुनाव लड़ने की रणनीति तेयार की गई थी। सपा के रणनीति यह मान कर चल रहे थे कि भले ही हरियाणा में उसे कोई सीट मिले या न मिले, लेकिन पार्टी को इस राज्य में अपनी सियासी जगह बनाने में मदद मिलेगी।
मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही होगा
वैसे तो हरियाणा की राजनीति में भाजपा और कांग्रेस के बीच ही सीधा मुकाबला माना जा रहा है। लोकसभा चुनाव 2024 में भी यही पैटर्न दिखा था। कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला होने की वजह से हरियाणा में क्षेत्रीय दल तक किनारे लग गए हैं। यहां इस समय इनेलो से लेकर जेजेपी जैसे दल तक सियासी हाशिए पर नजा आ रहे हैं। यही वजह सै कि दोनों ही दलों ने दलित आधार वाले सियासी दलों के साथ मिलकर गठबंधन कर रखा है। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि बीजेपी वर्सेस कांग्रेस की लड़ाई में उत्तरप्रदेश के सियासी आधार वाली पार्टियां क्या करिश्मा दिखा पाएंगी।
यूपी में चार बार सत्ता में रही बसपा
उत्तरप्रदेश में बहुजन समाज पार्टी करीब चार बार सत्ता में रही, लेकिन जाट बहुल हरियाणा की सियासत में बसपा कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ सकी है। बसपा प्रमुख मायावती ने हरियाणा में इस बार इनेलो INLD के साथ चुनावी गठबंधन किया है। इसी तरह आजाद समाज पार्टी प्रमुख और नगीना लोकसभा सीट से सांसद चंद्रशेखर आजाद भी दुष्यंत चौटाला की पार्टी जेजेपी के साथ खड़े है। दोनों दल मिलकर हरियाणा चुनाव के मैदान में उतरे हैं। उधर अखिलेश की पार्टी सपा की का प्रयास है कि कांग्रेस के साथ मिलकर गठबंधन किया जाए और चुनाव लड़ा जाए। वहीं आरएलडी इस बार बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की सियासी मंशा पाले हुए है।
क्या बसपा खोल पाएगी खाता ?
हरियाणा चुनाव में बसपा ने इनेलो के साथ मिलकर जाट-दलित समीकरण बनाने की कोशिश की। इसके लिए विधानसभा सीट शेयरिंग का फॉर्मूला भी बना लिया है। जिसमें बसपा 34 सीट पर अपने प्रत्याशी उतर रही है जबकि शेष विधानसभा सीट पर इनेलो अपने उम्मीदवार उतारेगी। बसपा ने 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में भी प्रत्याशी उतारे थे, हालांकि खाता नहीं खोल पाई, लेकिन बसपा को करीब 4.21 फीसदी वोट मिले थे। बसपा का राज्य में करीब साढ़े चार से पांच प्रतिशत के आसपास वोट शेयर 1989 से है। जबकि इनेलो को पिछली बार के चुनाव में 2.44 प्रतिशत वोट मिले थे। इससे पहले उसने 24 फीसदी वोट हासिल किये थे। इनेलो ने लोकसभा चुनाव 2024 में 1.74 तो बसपा ने 1.28 फीसदी वोट हासिल किये थे।
अब 21 प्रतिशत अनुसूचित जाति वर्ग के मतदाताओं के सहारे बसपा एक बार फिर हरियाणा में पैर जमाना चाह रही है। बसपा ने 34 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी उतरे है। जिसमें से खाता खोलने की बड़ी चुनौती उसके सामने है। वहीं आकाश आनंद की साख भी यहां दांव पर लगी है। बता दें 2024 लोकसभा चुनाव में जिस तरह जाट और दलित वोट का झुकाव कांग्रेस की ओर रहा था उसके चलते अब यहां बसपा के लिए हरियाणा में जगह बनाना सहज नहीं दिख रहा है।
क्या हरियाणा में पैर जमा पाएंगे चंद्रशेखर?
यूपी की नगीना लोकसभा सीट से सांसद चुने गसे दलित नेता चंद्रशेखर आजाद अपनी आजाद समाज पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार देने की कोशिश में जुटे है। इसके लिए हरियाणा में जेजेपी के साथ उन्होंने गठबंधन किया है। जेजेपी इनेलो से टूटकर बनी थी, जो 2019 के चुनाव में हरियाणा की सियासत में किंगमेकर बनकर उभरी। लेकिन पिछले पांच साल से जेजेपी को अपना सियासी वजूद को बचाए रखने के लिए चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। हरियाणा में जेजेपी 70 और आजाद समाज पार्टी 20 सीट पर प्रत्याशी उतारेगी।
क्या जयंती चौधरी की RLD का खाता खुलेगा खाता?
केन्द्रीय मंत्री जयंत चौधरी की पार्टी आरएलडी इन दिनों केंद्र की एनडीए गठबंधन का हिस्सा है। आरएलडी के मुखिया जयंत चौधरी ने जाट बहुल हरियाणा में इस वर्ग के वोट की ताकत को देखते हुए इस बार यहां विधानसभा चुनाव के मैदान में उतरने का प्लान बनाया है। बता दें जयंत चौधरी के दादा चौधरी चरण सिंह की ससुराल यहां हरियाणा के सोनीपत स्थित गांव गढ़ी कुंडल में है। जयंत चौधरी स्वयं भी जाट समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। राज्य में करीब 28 प्रतिशत जाट मतदाता हैं। आरएलडी की बीजेपी के साथ मिलकर हरियाणा विधानसभा का चुनाव लड़ने तैयारी में है। ऐसे में आरएलडी की ओर से हरियाणा की जाट बहुल पांच सीटों पर चुनाव लड़ने का प्लान बनाया है। हालांकि बीजेपी जाट वोटों को अपने साथ जोड़ने के लिए जयंत चौरी की पार्टी को दो से तीन सीट दे सकती है।
कभी हरियाणा में कांग्रेस का विकल्प मानी जाती थी INLD
कभी हरियाणा की राजनीति में लोकदल को कांग्रेस के विकल्प के रूप माना जाता था। लेकिन समय बदला और अब बीजेपी ने लोकदल की जगह पर कब्जा कर लिया है। जबकि कांग्रेस आज भी अपनी ही जगह बनी हुई है। ऐसे में यूपी की राजनीति में सक्रिय क्षेत्रीय दल यहां राज्य के जिन सामाजिक, जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों को नजर में रखते हुए हरियाणा की चुनावी राजनीति में उतरना चाह रहे हैं। उसमें उनकी राह इतनी आसान नहीं है। यह जरूर कहा जा सकता है कि अगर इन दलों के उतरने से चुनाव में इनका खेल और प्रदर्शन भले ही बेहतर न हो सके, लेकिन यह दूसरे दलों का खेल बिगाड़ सकते हैं।
बसपा और आसपा जहां दलित वोटों का बिखराव करेंगी तो आरएलडी के मैदान में उतरने से जाट वोट भी बंट सकते हैं। लेकिन कहा जा रहा है कि यूपी के यह दल अपना सियासी कद बढ़ाने के फिराक में कहीं महज वोट कटवा दल साबित न हो जाएं? वहीं सपा के मैदान आने से यादव वोट के बंटने संभावना थी, लेकिन अखिलेश ने बड़ा दिल दिखाया और कांग्रेस के लिए जाट लैंड में जमीन छोड़ दी।