उत्तर प्रदेश में हुए नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा ने विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया है। जहां देखें वहीं कमल ही खिला है। भाजपा के लिए इससे बड़ी खुशी की बात क्या होगी कि पूरे के पूरे 17 मेयर भाजपा के बने हैं। पार्टी के लिए ये तात्कालिक जीत हो सकती है लेकिन आने वाले चुनाव के लिए खतरे की घंटी भी सुनाई दे रही है। वजह ये है कि भाजपा के कई सांसदों के क्षेत्र में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है।
जब रूलिंग पार्टी के सांसदों के क्षेत्र में भाजपा के उम्मीदवार हार जाएं तो आने वाले चुनाव के आकलन भी होने लगता है। जानकारों का मानना है कि भले ही ये स्थानीय स्तर के चुनाव थे। और ये ही सच है कि लोग स्थानीय मुद्दे सड़क बिजली,पानी,नाली जैसी बुनियादी जरूरत के आधार पर चुनाव लड़ते हैं और उसी के आधार पर वोट मिलते हैं। बावजूद इसके स्थानीयता के आधार पर ही विधानसभा और विधानसभा के आधार पर लोकसभा का स्ट्रक्चर तैयार होता है। इसलिए इन चुनावों के महत्व को कम नहीं किया जा सकता है।
भाजपा के लिए लोकसभा चुनाव
सभी को पता है कि भारतीय जनता पार्टी ने अगले साल होने जा रहे लाकसभा चुनाव के लिए 80 सीटों का लक्ष्य रखा है। निकाय चुनाव के मदृेनजर आकलन करें तो भाजपा का बहुत ज्यादा खुद होने की जरूरत नहीं हैं। उप्र यूपी में भाजपा ने 17 मेयर, 91 नगर पालिका और 191 नगर पंचायतों पर कब्जा जमाया है, लेकिन 108 नगर पालिका और 353 नगर पंचायतों में उसे हार का सामना भी करना पड़ा है। राज्य में दो दर्जन से अधिक भाजपा सांसदों के क्षेत्र में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है। अगर वोटिंग पैटर्न ऐसा ही रहा तो आने वाले चुनाव में भाजपा का क्लीन स्वीप का लक्ष्य मुश्किल लग रहा है।
दो दर्जन सांसदों के गढ़ में नहीं जीत पाई भाजपा
केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी के संसदीय क्षेत्र से महराजगंज की आठ में तीन नगर पंचायतें भाजपा ने जीती हैं जबकि दोनों नगर पालिका परिषद में पार्टी हार गई। इस तरह केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान के मुजफ्फरनगर जिले की आठ नगर पंचायतों में से भाजपा एक भी नहीं जीत सकी। दो नगर पालिका में से केवल एक मुजफ्फरनगर नगर पालिका जीती है। स्मृति ईरानी के अमेठी में भाजपा जायस नगर पालिका और नसीराबाद, सलोन नगर पंचायत हार गई है। गौरीगंज नगर पालिका और अमेठी, मुसाफिरखाना, परसदेपुर नगर पंचायत ही जीत सकी है। दिनेश लाल निरहुआ के आजमगढ़ जिले की सभी तीनों नगर पालिका सीट पर भाजपा चुनाव हार गई। पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बेटे राजबीर सिंह के संसदीय क्षेत्र एटा जिले की छह में से मात्र एक अवागढ़ नगर पंचायत भाजपा जीत सकी। चार नगर पालिका में से सिर्फ दो जीती है। सत्यपाल सिंह के बागपत क्षेत्र की सभी छह नगर पंचायत सीट भाजपा चुनाव हारी है। साक्षी महाराज के उन्नाव की 16 में से 3 नगर पंचायत, 3 पालिका में से एक सीट ही भाजपा को मिली है। रामशंकर कठेरिया के इटावा में भाजपा का खाता नहीं खुल सका। मुकेश राजपूत के क्षेत्र फर्रुखाबाद की 7 नगर पंचायत और दो नगर पालिका सीट में से सिर्फ दो नगर पंचायत सीटें ही भाजपा जीती हैं। इस तरह दो दर्जन भाजपा सांसदों के गढ़ में भाजपा चुनाव जीतने में कामयाब नहीं हो सकी है।
सपा के वोट बैंक में लगी सेंध
समाजवादी पार्टी का बड़ा वोट बैंक मुस्लिमों का माना जाता है। इस बार हुए इस चुनाव में मुस्लिमों ने सपा के पक्ष में एकतरफा वोटिंग नहीं की है। शायद यही कारण है कि सपा को नगर निकाय में करारी हार का सामना करना पड़ा है। एक भी मेयर सपा का नहीं जीत पाया है। सपा की नगर पंचायत व पालिका सीटें भी पहले से कम हो गई हैं। मुस्लिम मतदाताओं ने भाजपा के खिलाफ एक पार्टी के पीछे एकजुट होने के पिछले रुझानों से हटकर निकाय चुनाव में अपनी पसंद के उम्मीदवारों के लिए वोट डाले हैं। मुसलमानों ने बसपा-सपा से अपने समुदाय के प्रत्याशी को नजरअंदाज कर अन्य दलों को को महत्व दिया है।
बसपा का सियासी आधार हो रहा कमजोर
उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी का जमीन आधार लगातार सरकता जा रहा है। जो परंपरागत वोट बैंक हैं उसमें भी सेंध लगने लगी है। निकाय चुनाव में मायावती ने दलित-मुस्लिम का प्रयोग किया था। मेयर की 17 में से 11 सीट पर बसपा का मुस्लिम उम्मीदवार उतारने का दांव पूरी तरह फेल हो गया। बीते चुनावों में दो सीटों पर बसपा के मेयर थे। इस बार वे भी उनके हाथों से निकल गए। मायावती को दलित-मुस्लिम समीकरण से ज्यादा उम्मीदें थीं, लेकिन परिणामों में तब्दील नहीं हो पाई। मतलब साफ है कि पार्टी का जनाधार कमजोर होने लगा है।यही हालात रहे तो आने वाले चुनाव में बसपा के लिए बहुत ज्यादा चुनौतियां खड़ी हो जाएंगी।