नई दिल्ली। केंद्र सरकार अभी समान नागरिक संहिता को लेकर जल्दी में नहीं है। गवर्नमेंट ने फिलहाल समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) लागू करने को लेकर कोई फैसला नहीं लिया है। कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा में इसकी जानकारी दी है। राज्यसभा में उनसे यह सवाल पूछा गया था कि क्या सरकार की UCC बिल पास करने की कोई योजना है?
- रिजिजू ने कहा कि सरकार ने 21वें लॉ कमीशन को समान नागरिक संहिता को लेकर उठे सवालों की जांच का जिम्मा सौंपा था
- 21वें कमीशन का कार्यकाल 2018 में खत्म हो गया था
- सरकार ने 21वें लॉ कमीशन से UCC से जुड़े अलग-अलग मुद्दों की जांच करने और उस पर सिफारिशें करने की अपील की थी
- अब 22वें लॉ कमीशन की जांच के बाद ही कोई फैसला होगा यानी फिलहाल मामला ठंडे बस्ते में है
क्यों है समान नागरिक संहिता जरूरी?
- विभिन्न धर्मों के विभिन्न कानून से न्यायपालिका पर बोझ पड़ता है और कॉमन सिविल कोड आ जाने से इस मुश्किल से निजात मिलेगी, न्यायालयों में तेज रफ्तार से काम होगा।
- सभी के लिए कानून में समानता होने से एकता को बढ़ावा मिलेगा और इस बात में कोई दो राय नहीं है कि जहां हर नागरिक समान हो, एक ही सीढ़ी पर हो, उस देश का विकास तेजी से होता है।
- भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, संविधान में इसका उल्लेख है तो ऐसे में कानून और धर्म का एक-दूसरे से कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए। सभी लोगों के साथ धर्म से परे जाकर समान व्यवहार होना चाहिए।
- मुस्लिम महिलाओं की स्थिति बेहतर होगी, जो अभी दोयम दरजे की है।
- इससे तुष्टीकरण की राजनीति पर लगाम लगेगी, सभी नागरिकों पर एक समान कानून लागू होगा।
रिजिजू ने लिखित जवाब दिया
रिजिजू ने कहा ‘फिलहाल’ देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड के लागू करने पर कोई फैसला नहीं किया गया है। एक लिखित जवाब में कानून मंत्री ने कहा कि लॉ कमीशन से प्राप्त जानकारी के अनुसार, यूनिफॉर्म सिविल कोड से संबंधित मामला 22वें लॉ कमीशन द्वारा विचार के लिए उठाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान लॉ पैनल का गठन 21 फरवरी, 2020 को किया गया था, लेकिन इसके अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति पैनल के कार्यकाल की समाप्ति से महीनों पहले पिछले साल नवंबर में की गई थी, इसलिए अब नया लॉ पैनल ही इस बारे में कोई फैसला करेगा।
क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड?
यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब है देश में हर नागरिक के लिए एक समान कानून का होना. फिर भले ही वो किसी भी धर्म या जाति से ताल्लुक क्यों न रखता हो. फिलहाल देश में अलग-अलग मजहबों के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ हैं. यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने से हर मजहब के लिए एक जैसा कानून आ जाएगा. यानी मुस्लमानों को भी तीन बार तलाक कहकर तलाक देने का अधिकार नहीं होगा (वैसे, तीन तलाक से संबंधित एक कानून अलग से आ चुका है) या वे भी चार शादियां नहीं कर सकेंगे।
समान नागरिक संहिता का अर्थ है देश के सभी नागरिकों के लिए एक जैसे नियम व अधिकार, यानी कि शादी, बच्चा गोद लेना, तलाक और संपत्ति के बंटवारे जैसे अन्य कई विषयों में सभी समुदाय के नागरिकों के लिए एक जैसे नियम लागू हो जाएंगे। कुल मिलाकर कहें तो अधिकारों को लेकर समानता आ जाएगी। इस समय हमारे भारत देश में धर्म और परंपरा के नाम पर अलग- अलग धर्म के लोगों को अलग- अलग नियमों को मानने की छूट दी गई है जैसे किसी धर्म में बच्चा अडॉप्ट करने पर रोक है, किसी धर्म में आदमियों को कई शादियां करने की छूट है।
समान नागरिक संहिता लागू होने पर सभी समुदाय के लोगों पर एक जैसे नियम लागू होंगे। इससे भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होगा। संविधान में समान नागरिक संहिता को लागू करना अनुच्छेद 44 के तहत राज्य की ज़िम्मेदारी बताया गया है, लेकिन अभी तक इसे देश में लागू नहीं किया गया है, इसे लेकर देश में एक बड़ी बहस चल रही है।
सरकार के मन में क्या है?
यूनिफॉर्म सिविल कोड के विरोधी हमेशा से कहते आए हैं कि यह सभी धर्मों पर हिंदू कानून को थोपने के जैसा है। हालांकि, हिंदू रीति-रिवाजों को लेकर 1951 में ही संसद ने हिंदू लॉ कोड अलग कर दिया था। इसमें शादी, पैतृक अधिकार इत्यादि से संबंधित सभी कानून बिल्कुल साफ कर दिए गए थे। अभी के मुताबिक मुस्लिमों और ईसाइयों का अलग पर्सनल लॉ है, जिसमें महिलाओं की हालत बदतर है। इसलिए, अधिकांश बार मुसलमान और ईसाई महिलाएं ही यूनिफॉर्म सिविल कोड के पक्ष में उठ खड़ी होती हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सरकार उस समय यह कानून तब लाएगी, जब लोकसभा चुनाव में कम समय होगा ताकि इसकी छाप लंबे समय तक बनी रहे। आखिर, भाजपा ने 2014 और 2019 के चुनाव में तो इसको अपना मुद्दा भी बनाया ही था।
कई देशों में लागू है यूनिफॉर्म सिविल कोड
एक तरफ जहां भारत में समान नागरिक संहिता को लेकर हमेशा ही बहस चलती रहती है, वहीं पाकिस्तान में इसे लागू भी किया गया है और इसपर अमल भी किया जाता है। बांग्लादेश, तुर्की, मलेशिया, सूडान, इंडोनेशिया और इजिप्ट जैसे कई देश समान नागरिक संहिता कानून को अपने यहां लागू कर चुके हैं।