पिछले साल महाराष्ट्र में हुए सियासी घमासान पर सुप्रीम कोर्ट ने एकनाथ शिंदे गुट को बड़ी राहत दी है। कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने कहा कि यदि उद्धव ठाकरे अपने पद इस्तीफा नहीं देते और फ्लोर टेस्ट का सामना करते तो शायद मुख्यमंत्री बने रहते। पूरे मामले पर कोर्ट ने राज्य के तत्कालीन राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठाते हुए यहां तक कह दिया कि किसी भी पार्टी के विवाद को सुलझाने का माध्यम फ्लोर टेस्ट नहीं हो सकता है।
. कोर्ट राज्यपाल की भूमिका पर उठाए सवाल
. राजनैतिक विवाद सुलझाने का जरिया नहीं फ्लोर टेस्ट
. स्पीकर के निर्णयों पर कोर्ट ने की टिप्पणी
. पिछले साल महाराष्ट्र में मचा था घमासान
. कोर्ट की टिप्पणी से ठाकरे को मलाल
कोर्ट की टिप्पणी के बाद साफ है कि उद्धव ठाकरे अगर इस्तीफा देने की जल्दबाजी नहीं करते तो शायद दूसरी बार मुख्यमंत्री बन सकते थे।शीर्षस्थ न्यायालय ने कहा कि व्हिप का फैसला पार्टी को ही करना चाहिए। इसके लिए विधायकों की संख्या काफी नहीं है। सिर्फ विधायक तय नहीं कर सकते कि व्हिप कौन होगा। व्हिप को पार्टी से अलग करना ठीक नहीं होगा।
तत्कालीन राज्यपाल की भूमिका पर सवाल
मामले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा है कि बगैर पुख्ता कारण के फ्लोर टेस्ट नहीं कराना चाहिए। क्योंकि किसी भी राजनैतिक दल के विवाद को सुलझाने का जरिया फ्लोर टेस्ट नहीं हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल के पास ऐसा कोई प्रमाण नहीं था कि नाराज विधायक समर्थन वापस ले रहे हैं। तत्कालीन राज्यपाल ने शिवसेना के विधायकों के एक गुट के प्रस्ताव पर भरोसा करके यह निष्कर्ष निकाला कि उद्धव ठाकरे अधिकांश विधायकों का समर्थन खो चुके है।
स्पीकर की भूमिका पर कोर्ट की टिप्पणी
महाराष्ट्र के मामले में एससी ने व्हिप को लेकर भी सवाल उठाए और कहा कि शिंद गुट के गोगावाले को शिवसेना पार्टी के मुख्य सचेतक के रूप में नियुक्त करने का स्पीकर का फैसला गैर कानूनी था। व्हिप को पार्टी से अलग करना ठीक नहीं है। सिर्फ विधायक तय नहीं कर सकते कि पार्टी का मुख्य सचेतक कौन होगा। पार्टी में असंतोष के आधार पर फ्लोर टेस्ट नहीं होना चाहिए। विधायकों की असुरक्षा के आधार पर फ्लोर टेस्ट नहीं हो सकता।
क्या था विवाद
बीते साल जून माह में एकनाथ शिंदे ने शिवसेना के 15 एमएलए के साथ उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत की थी। शिंदे सहित शिवसेना के 16 एमएलए पहले सूरत फिर गुवाहाटी में जाकर रुके थे। उस समय उद्धव ने शिंदे को वापस आने और बैठकर बातचीत के लिए कहा था। लेकिन शिंदे ने स्वीकार नहीं किया और भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली थी। राज्यपाल ने शिंदे-भाजपा गठबंधन सरकार को मान्यता देकर शपथ दिला दी थी।