राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पहले सियासी दल एक.एक विधानसभा सीट को हर तरह से टटोलने में जुटे हैं। राजस्थान के मेवाड़ की बात करें तो मेवाड़ को जनजाति बहुल इलाका कहा जाता है। इसमें जनजाति बहुल खेरवाड़ा सीट सबसे शिक्षित सीट कही जाती है। उदयपुर जिले की खेरवाड़ा विधानसभा सीट पर कांग्रेस के डॉ.दयाराम परमार छह बार विधायक जीत चुके चुके हैं। इस सीट को लेकर यह भी कहा जाता है कि राजस्थान में हर बार सरकार बदलती है वैसे ही यहां की भी जनता पार्टी बदलती रहती है। कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस से विधायक चुक कर हैं। खेरवाड़ा कस्बा उदयपुर से करीब 82 किमी दूर गुजरात से लगा हुआ है। कुछ ही दूरी पर गुजरात की सीमा है। गुजरात में शराब तस्करी का यह भी मुख्य मार्ग है क्योंकि आए दिन यहां अवैध शराब तस्करी पर पुलिस कार्रवाई करती रहती है। खेरवाड़ा अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित विधानसभा सीट है। साल 2018 चुनाव में दयाराम परमार जीते थे। वहीं 2013 के चुनाव में नानालाल अहारी ने जीत दर्ज की। इससे पहले 2008 में कांग्रेस तो 2003 में बीजेपी के प्रत्याषी चुनाव जीते। यहां ऐसा ही चलता आ रहा है। इस विधानसभा सीट में कुल संख्या दो लाख 34 हजार 596 मतदाता है।
- खेरवाड़ा पर कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस का कब्जा
- अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है खेरवाड़ा
- दो लाख 34 हजार 596 मतदाता हैं यहां
- जिला बनाने की मांग, जल संकट का हो निदान
- अंतरकलह से जूझती कांग्रेस
- बीजेपी को दमदार चेहरे की तलाश
गहलोत ने नहीं किया जिला घोषित
स्थानीय लोग कांग्रेस की गहलोत सरकार से इसलिए खफा है क्योंकि इसे जिला नहीं बनाया गया। लोगों का कहना है खेरवाड़ा विधानसभा क्षेत्र की प्रमुख तीन मांग रही हैं। जिसमंे खेरवाड़ा को जिला घोषित करना सबसे प्रमुख है। इसके लिए कई बार आंदोलन किया लेकिन सीएम गहलोत के जिलों की घोषणाओं की सूची में खेरवाड़ा का नाम भी आ गया था। लेकिन सलूम्बर को नया जिला बना दिया। इसे लेकर कस्बे के लोग नाराज हैं। दूसरी बड़ी मांग जल संकट की है। पास ही में यहां गोदावरी बांध है। जिससे लोगों की प्यास बुझती है। लेकिन एक बार यह सूखा तो अकाल जैसे हालात हुए। मांग की जा रही है कि विधानसभा क्षेत्र का बड़ा कस्बा ऋषभदेव के पास स्थिति कागदर डेम से खेरवाड़ा पानी लाया जाए। तीसरी बड़ी मांग खेरवाड़ा कस्बे से गुजर रहे एनएच.8 पर एलिवेटेड रोड बनाया जाए। स्थानीय लोग नितिन गडकरी तक पहुंचे थे। बजट भी आया था लेकिन आगे कुछ नहीं हुआ।
कांग्रेस में आंतरिक कलह
दो साल पहले सीएम अशोक गहलोत ने मंत्रिमंडल के गठन के समय पूर्व मंत्री और खेरवाड़ा से कांग्रेस विधायक डॉ.दयाराम परमार की ओर से सीएम अशोक को पत्र लिखा गया था। सीएम से विधायक ने पूछा था मंत्री बनने के लिए क्या योग्यता होनी चाहिए।
मजबूत चेहरे की तलाश में बीजेपी
राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो उदयपुर संभाग की इस आदिवासी बहुल सीट पर इसका सकारात्मक पक्ष यह है कि यह प्रदेश की पहली शिक्षित जनजाति बहुल सीट के रुप में दर्ज है। यह एक तरह से कांग्रेस की परंपरागत सीट भी मानी जाती है। जिस पर दयाराम परमार लगातार जीतते रहे। वे मंत्री भी बनाए गए। पिछले विधानसभा चुनाव में बहुत अच्छी जीत के बावजूद उन को मंत्री पद नहीं दिया गया। इसकी नाराजगी दयाराम परमार स्वयं कई बार व्यक्त कर चुके हैं। परमार पीएचडी होल्डर हैं। वहीं बीजेपी के लिए यह सीट जीतना आसान नही। उसके पास फिलहाल कोई चेहरा मजबूत नहीं है। यही वजह है कि पिछली बार भी बीजेपी के दो दावेदारों के चलते उसके वोट प्रतिषत का गणित गड़बड़ा गया था। औरबीजेपी का एक नेता बागी निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरने से हार का सामना करना पड़ा था।