पूर्व मंत्री उमंग सिंघार ने क्यों उठाई मध्यप्रदेश में आदिवासी सीएम की मांग?,इससे बीजेपी को कितना लाभ?

Tribal CM MP Assembly Election

मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के लिए कमलनाथ को उम्मीदवार घोषित कर दिया है। पार्टी के सभी बड़े नेता कमलनाथ को ही चेहरा मान रहे हैं। ग्वालियर में पिछली बार चुनावी रैली के दौरान प्रियंका गांधी भी इशारों-इशारों में ये संकेत देकर गईं थीं कमलनाथ चेहरा होंगे लेकिन कमलनाथ की राह में पूर्व मंत्री और आदिवसी वर्ग के नेता उमंग सिंघार ने अड़ंगा लगा दिया है। सिंघार ने मध्यप्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग की कर सियासी हलचल मचा दी है। इसके बाद कांग्रेस खेमे में भी खलबली मची हुई है।

सुना आपने। मध्यप्रदेश में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। इससे पहले कांग्रेस विधायक उमंग सिंघार ने कहा है कि राज्य में आदिवासी वर्ग से मुख्यमंत्री बनना चाहिए। उन्होंने आदिवासियों से कहा कि जब तक प्रदेश का मुख्यमंत्री आदिवासी नहीं बनेगा, तब तक घर नहीं बैठना। बता दें सिंघार को हाल में गठित कांग्रेस की चुनावी समितियों से दूर रखा गया है। उमंग सिंघार पिछली सरकार के दौरान भी दिग्विजय सिंह के साथ विवादों के चलते चर्चा में रहे थे। कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे उमंग सिंघार के आदिवासी चेहरे को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बयान पर नया सियासी बवाल खड़ा कर दिया। अब कांग्रेस के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। आदिवासी चेहरे के बयान पर सियासत भी तेज हो गई है। हालांकि कांग्रेस ने उनके बयान पर चुप्पी साध ली है।चूंकि आदिवासियों से जुड़ा मामला है और संवेदनशील भी है। लिहाजा कांग्रेस इस मामले पर बोलने से बच रही है। डैमेज कन्ट्रोल के लिए बीजेपी को निशाने पर लिया है। पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने बीजेपी को लेकर कहा कि 18 साल से बीजेपी सरकार में है। बीजेपी आदिवासियों को सिर्फ वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करती आई है। बीजेपी को आदिवासी चेहरे को मुख्यमंत्री बनाना चाहिए था।

बीजेपी ने किया पलटवार

कांग्रेस के आरोप पर गृह मंत्री डॉ.नरोत्तम मिश्रा ने पलटवार करते हुए कहा कांग्रेस जनजाति समाज की विरोधी है। यह जगजाहिर है, उमंग सिंगार भी इसके उदाहरण है जो दिग्विजय सिंह के सताए हुए हैं। उमंग सिंगार ने दिग्विजय को सबसे बड़ा माफिया बताया था और आज तक उमंग सिंगार के आरोपों का खंडन नहीं किया गया है।

जिसे मिला आदिवासी का साथ, उसे मिली सत्ता

दरअसल मध्यप्रदेश में 22 फीसदी आबादी आदिवासी वर्ग की है। जिस पार्टी की तरफ ये वोट बैंक चला गया समझ लो उसकी सरकार बना तय है। पिछले 2018 के चुनाव को छोड़ दें, तो 2003 से लेकर 2013 के विधानसभा चुनावों में आदिवासी वर्ग के मतदाताओं ने बीजेपी का साथ दिया था। बीजेपी को इसने पसंद किया था। हालांकि 2018 चुनाव में आदिवासी वोर्टस फिर कांग्रेस के करीब आया। कमलनाथ छिंदवाड़ा से आते हैं। उनका क्षेत्र भी आदिवासी बाहुल्य है। वहीं इस बार आदिवासियों को रिझाने के लिए पीएम मोदी ने आदिवासी गौरव दिवस के दिन अवकाश का ऐलान किया और आदिवासियों के लिए कई और नई योजनाएं लॉन्च कर दीं। अब देखने वाली बात है यह आदिवासी वाली राजनीति मध्य प्रदेश की राजनीति में क्या गुल खिलाती है।

कौन हैं उमंग सिंघार

पूर्व मंत्री उमंग सिंघार पूर्व उप मुख्यमंत्री स्वर्गीय जमुना देवी के भतीजे हैं। उन्हें राजनीति विरासत में मिली है। पूर्व उप मुख्यमंत्री स्वर्गीय जमुना देवी का राजनीतिक करियर जब ऊंचाई पर था इस दौरान उमंग ही बुआ जी के नाम से फेमस जमुना देवी का पूरा काम देखते थे। जमुना देवी ने ही उन्हें राजनीति की एक एक सीढ़ी चढ़ाई। बता दें जमुना देवी को आदिवासी अंचल की कद्दावर नेता के रुप में जाना जाता था। इसके चलते उमंग सिंघार की भी आदिवासियों के बीच पकड़ मजबूत हो गई और धीरे धीरे जमुना देवी का स्वास्थ्य गिरता गया, सिंघार का सियासी कद बढ़ता गया। बस तभी से ही उमंग के राजनीति में आने के चर्चे शुरू हो गए थे। साल 2008 के चुनाव में उन्हें मौका मिला जिसे उन्होंने भुनाय भी लिया। 2008 में कांग्रेस के टिकट पर पहली बार विधायक चुने गए। साल 2010 में जमुना देवी का निधन हुआ इससे पहले उमंग सिंघार राजनीति की पिच पर पूरी तरह पैर जमा चुके थे। यानी आदिवासियों के बीच लोकप्रिय हो गए थे, यही वजह है कि अब वे प्रदेश में आदिवासी वर्ग से सीएम बनाने की मांग कांग्रेस में उठा रहे हैं।

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