भारत में रेल हादसों के वैसे तो कई कारण होते हैं लेकिन प्रमुख कारण एक ही, बार बार सामने आता है,वो है ‘लापरवाही’। रेल सुरक्षा को लेकर जिस तरह से व्यवस्थाएं की कई हैं उन पर प्रोपर अमल होने में की जाने वाली लापरवाही अधिकांशत: रेल दुर्घटनाओं का कारण बन जाती है। आइए जानते हैं बार बार रेल हादसे होने की वजह।
रेल ट्रेक की नियमित जांच
रेलवे ने कई स्तर पर नियमित जांच की व्यवस्था कर रखी है। इसके लिए पूरा नेटवर्क काम करता है। जिसमें ट्रैक फ्रेक्चर का पता लगाना भी होता है। इसके लिए नियमित जांच होती है। प्रत्येक मेन लाइन जो ट्रंक रूट पर है,इन पर अल्ट्रासोनिक वॉल डिटेक्शन होता है। जिस पर तमाम रेल गाड़ियां चलतीं हैं और छोटे मोटे क्रैक आ जाते हैं। जिसकी जांच के लिए पूरी टीम काम करती है और माइक्रो लेवल पर खामियों को ढूंढा जाता है। दूसरे रूटस पर यह जांच प्रत्येक डेढ या दो महिनेे के बाद होती है। यदि इस ट्रेक की जांच में कोई लापरवाही हुई तो रेल हादसे होते हैं और कई लोगों की जान चली जाती है।
रेलवे ट्रेक पर बढ़ता लोड और गति
रेल हादसों के तामम कारणों के अलावा ट्रेक पर बढ़ता लोड और ट्रेन की बढ़ती गति को भी माना जाता है। आपको बता दें कि पिछले कुछ समय से रेलवे ट्रेक पर लोड निरंतर बढ़ता जा रहा है। ट्रेफिक के अलावा ज्यादा माल ढुलाई भी एक कारण है। देश में हर रोज सवा करोड़ से ज्यादा यात्री रेल में सफर करते हैं और 80 लाख टन से ज्यादा सामान ट्रेन से ढोया जाता है।देश में कई रेलवे ट्रेक ऐसे हैं जिन पर लकड़ी के पुराने स्लिपर डाले गए है। ऐसे में हमेशा हादसे होने का डर बना रहता है। इसके अलावा ट्रेन की तेज गति कई बार हादसों का कारण बन जाती है और रेलवे के कुछ लोगों की लापरवाही का खामियाजा यात्रियों को अपनी जान गंवाकर भुगतना पड़ता है।
एक कारण ये भी है
भारत में एशिया का सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क है। एक मात्र रेलवे ही है जो देश के प्रत्येक क्षेत्र को एक दूसरे से जोड़कर रखता है। लेकिन सुरक्षा को लेकर रेलवे में अपेक्षानुसार निवेश नहीं हो पाता है। शायद यही वजह है कि आज भी भारत में दस हजार से से ज्यादा मानवरहित क्रासिंग और ट्रैक की सुरक्षा के लिए गश्त के कोई पुख्ता प्रबंध नहीं हैं।