300 साल से बनते आ रहे तिरुपति लड्डू, अब विवादों में घिरे..जानें कैसे और कितने बनाए जाते है..

300 साल से बनते आ रहे तिरुपति लड्डू, अब विवादों में घिरे..जानें कैसे और कितने बनाए जाते है..

आंध्र प्रदेश में स्थित विश्वप्रसिद्ध तिरुपति बालाजी श्रद्धालुओं के लिए धर्म का एक मुख्य बिंदु है। तिरुपति बालाजी मंदिर चित्तूर जिले के तिरुमला पर्वत पर स्थित है और भारत का मुख्य धार्मिक स्थलों में से एक है। तिरुपति बालाजी का वास्तविक नाम श्री वेंकटेश्वर स्वामी है जो स्वयं भगवान विष्णु हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्री वेंकटेश्वर अपनी पत्नी पद्मावती के साथ यहाँ निवास करते है। माना जाता है की जो भी भक्त सच्चे मन से भगवान वेंकटेश्वर के सामने प्रार्थना करता है उनकीआराधना करता है, उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। वही भक्त अपनी श्रद्धा के मुताबिक, मंदिर में अपने बाल दान करते है। लेकिन अब तिरुपति बालाजी का ये विश्वप्रसिद्ध मंदिर अपने प्रसाद को लेकर विवादों में घिरा हुआ है। मंदिर के प्रसाद को लेकर विवाद खड़ा हो गया है।

*300 साल से बनते आ रहे तिरुपति लड्डू
तिरुपति बालाजी मंदिर में महाप्रसाद के लड्डू बनाने की प्रक्रिया को ‘दित्ताम’ में नाम से जाना जाता है। आपको बता दे की लड्डू की रेसिपी 300 सालो के इतिहास में केवल छह बार बदली गई है। इन लड्डू को बनाने के लिए पहले बेसन से बूंदी तैयार की जाती है। इसके बाद इसमें गुड़ के सीरा का उपयोग लड्डू को ख़राब होने से बचने के लिए किया जाता है। इसके बाद आंवला, काजू और किशमिश लप मिलकर लड्डू बांधकर तैयार किये जाते है। लड्डू और लड्डू की बूंदी बनाने के लिए शुद्ध घी की इस्तेमाल किया जाता है। एक लड्डू का वजन करीब 175 ग्राम होता है।

*3 लाख लड्डू, 500 करोड़ रुपये की कमाई..
एक रिपोर्ट की माने तो तिरुमाला देवस्थानम (टीटीडी) हर रोज प्रसाद वितरण के लिए लगभग 3 लाख लड्डू बनवाता है। वही इन लड्डुओं से बोर्ड की तक़रीबन 500 करोड़ रुपये की कमाई होती है। पिछले 300 साल से प्रसाद के लिए लड्डू बनाये जा रहे है। वही 2014 में तिरुपति के लड्डू को जीआई टैग भी मिल गया। जीआई टैग मिलने के बाद अब इस नाम से अब कोई और लड्डू नहीं बेच सकता है।

*लड्डू पर बड़ा विवाद
तिरुपति के लड्डू पर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। दरसअल अआंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने एक लैब रिपोर्ट का हवाला देते हुए ये दवा किया की YSR पार्टी की सर्कार के दौरान खरीदे गए घी में मछली का तेल और गोमांस की चर्बी मिली हुई है। सरकार ने पिछले साल लड्डू बनाने में इस्तेमाल होने वाले नंदिनी घी की आपूर्ति पर रोक लगा दी थी। मंदिर प्रबंधन करने वाला तिरुमाला देवस्थानम (टीटीडी) बोर्ड हर छह महीने में घी की आपूर्ति के लिए टेंडर देता है और हर साल 5 लाख किलो घी खरीदता है। हर दिन तकरीबन 400-500 किलो घी का इस्तेमाल लड्डू बनाने में होता है।

*केएमएफ अध्यक्ष भीमा नाइक का दावा
केएमएफ के अध्यक्ष भीमा नाइक ने कहा था की भेदभाव की वजह से नंदिनी घी को प्रसिद्ध तिरुमला लड्डू में इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। नाइक ने दवा किया थी, ‘लड्डू अब पहले जैसे नहीं रहेंगे’। उन्होंने कहा की नंदिनी बाजार में सबसे अच्छा घी उपलब्ध करता है और सभी टेस्ट्स से होकर गुज़रता है। अगर कोई ब्रांड नंदिनी से कम कीमत पर घी की आपूर्ति कर रहा है तो मुझे लगता है की गुणवत्ता से समझौता किया जाएगा।

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