महाकुंभ में जब भेदभाव नहीं बाकी समय क्यों…महाकुंभ का यह पर्व भारतीय एकता का सबसे बड़ा संदेश

This festival of Mahakumbh is the biggest message of Indian unity

उत्तर प्रदेश सरकार दावा कर रही है कि महाकुंभ में 66 करोड़ श्रद्धालुओं ने संगम में स्नान किया है। आस्था के इस महापर्व कुंभ में श्रद्धालुओं और भक्तों के बीच में किसी किरम का कोई भेदभाव नहीं था। सभी एक ही घाट पर जाकर नहा रहे थे। कोई किसी की जात-पात नहीं पूछ रहा था। यहां कोई गरीब और अमीर भी नहीं था।

आस्था के इस महापर्व में जब कोई भेदभाव नहीं था तो बाकी के समय भारत में जाति, धर्म, गरीब-अमीर का भेदभाव क्यों होता है। क्या यह हमारा दोहरा आचरण नहीं है। कहा जाता है कि धर्म आचरण में धारण करना होता है। नारे लगाने से अथवा धार्मिक पुस्तकों को पढ़ने से धर्म नहीं आता है। धर्म आस्था से आता है, आस्था आचरण में होनी चाहिए। महाकुंभ के इस महापर्व में प्रयागराज के त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाकर सही रास्ते पर चलने का भक्त संकल्प लेते हैं।

भारत ने देश एवं दुनिया के देशों को महाकुंभ के इस आयोजन से यही संदेश दिया है। मानव समाज के बीच कोई भेदभाव नहीं हो सकता है। यदि हम इस बात को समझा जाए और अपनी-अपनी परंपराओं के अनुसार धार्मिक आस्था को आचरण में लेकर आए, तभी मानव संस्कृति और मानव समाज का विकास संभव हो सकता है। जनकरी और फरवरी माह में प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन हुआ। देश और विदेश से करोडों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचे। संगम तट पर सभी ने आस्था की डुबकी लगाई। गंगा और संगम में डुबकी लगाने से पाप धुलेंगे, यह संभव नहीं है। जो भी श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगाने के लिए गए थे, उनके मन में आस्था का विश्वास था। गंगा में डुबकी लगाने के बाद उनके मन का मैल साफ होगा। उनके पाप कटेंगे, उनकी आत्मा और आचरण में शुद्धी आएगी। जिसके कारण वह परमात्मा की निकटता प्राप्त करेंगे।
आस्था के कारण करोड़ों की संख्या में जो श्रद्धालु महाकुभ पहुंचे हैं। उन्होंने तरह-तरहह की तकलीफ और कष्ट झेले। कष्ट ने उन्हें प्रभावित नहीं किया। उनकी आस्था गंगा मैया में डुबकी लगने की थी। उन्होंने डुबकी लगाकर यह सिद्ध कर दिया है। आस्था से वह जो पाना चाहते हैं, वह पाने में सफल होते हैं। कुंभ के आयोजन का इससे बड़ा अन्य कोई उदाहरण हो नहीं सकता है। महाकुंभ का यह पर्व भारतीय एकता का सबसे बड़ा संदेश है।….प्रकाश कुमार पांडेय

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