2024 में लोकसभा के चुनाव होना हैं और कांग्रेस अपनी शक्तियों को जुटाने की कोशिश में जुटी है। किस तरह मौजूदा दौर में बीजेपी के बढ़ते कद और मद को चूर किया जा सके,लेकिन उसकी इस कवायद में पार्टी के नेताओं की महत्वकांक्षा आडे आने लगी है। महाराष्ट्र और गोवा के बाद भी कांग्रेस का संकट खत्म नहीं होते दिखाई दे रहा है। नया बखेड़ा छत्तीसगढ़ में सामने रहा है। जहां सीएम भूपेश बघेल और उनके मंत्री टीएस सिंहदेव के बीच छत्तीस का आंकड़ा अब सियासी गलियारों से बाहर आ गया है। भूपेश बघेल को जब सीएम की कुर्सी पर बैठे ढाई साल पूरे हुए तो मंत्री टीएस सिंहदेव के मन में भी सीएम की कुर्सी के प्रति लगाव बढ़ने लगा और वे दिल्ली दौड़ पड़े। तब उन्होंने राहुल गांधी से भी भेंट की थी। विवाद बढ़ा तो राहुल गांधी ने सीएम भूपेश बघेल को भी दिल्ली तलब कर लिया। सुलह समझौते के साथ तब मामला ठंडा हो गया था। लेकिन अब एक बार फिर सिंहदेव की नाराजगी सामने आई है। इस बार वे केन्द्र सरकार से जुड़ी योजनाओं को लेकर नाराज हैं। उन्होंने पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग से इस्तीफा दे दिया। कैबिनेट मंत्री सिंहदेव का यह कदम राज्य में ढाई-ढाई साल सीएम का फॉर्मूला लागू नहीं होने से जोड़ा जा रहा है। सिंहदेव के पास अब स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, चिकित्सा शिक्षा के साथ जीएसटी विभाग हैं।
छग में भाजपा का आपरेशन लोटस !
बता दें 2018 में 15 साल के वनवास के बार कांग्रेस छत्तीसगढ़ की सत्ता में लौटी थी। अब 2023 में फिर कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में बीजेपी का सामना करना होगा, लेकिन इससे पहले भूपेश बघेल और सिंहदेव की अदावत ने सियासी सरगर्मी अभी से तेज कर दी है। माना जा रहा है कि बीजेपी इस राज्य में भी आपरेशन लोटस पर काम कर सकती है। हालांकि सिंहदेव , शिंदे या सिंधिया की राह पर चलेंगे यह फिलहाल कहना मुश्किल है,लेकिन इतना जरुर तय है कि बघेल और सिंहदेव के बीच बढ़ती तल्खी कांग्रेस के मिशन 2023 को जरुर खटाई में डाल सकती है।
हाशिए पर जाते सिंहदेव
छत्तीसगढ़ में 2018 में कांग्रेस की सरकार जब अस्तित्व में आई थी तब टीएस सिंहदेव और भूपेश बघेल में से किसी एक को सीएम की कुर्सी पर बैठाने की पर पार्टी नेताओं और विधायकों में सहमति बनती दिखाई दी थी। ऐसे में ढाई ढाई साल के सीएम का फार्मला तैयार किया गया। पहले ढाई साल के लिए भूपेश बघेल सीएम की कुर्सी पर बैठे। जब ढाई साल पूरे होते होते मंत्री टीएस सिंहदेव मुख्यमंत्री की कुर्सी को बढ़ी हसरत की निगाह से देखने लगे। बात देखने दिखाने तब सीमित नहीं रही। सिंहदेव ने दिल्ली दौड़ लगा दी। दिल्ली और रायपुर एक करने के बाद भी ढाई-ढाई साल मुख्यमंत्री पद का फॉर्मूला लागू नहीं हुआ। बल्कि सिंहदेव को सत्ता और संगठन में हाशिए पर डाला जाने लगा। इतना ही नहीं बघेल समर्थक विधायकों ने तो मोर्चा ही खोल दिया।ऐसे में दुखी और नाराजगी का भाव मन में लिए सिंहदेव ने अपने पास रहे पंचायत और ग्रामीण विभाग से इस्तीफा दे दिया। हालांकि अब भी वे कई महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री हैं। वहीं चर्चा यह भी है कि सीएम भूपेश बघेल का कहना है कि उन्हें अब तक इस्तीफा नहीं मिला।
सरकार पर भाजपा का हमला
इधर भाजपा को जैसे मौका मिल गया। टीएस सिंहदेव ने एक विभाग का काम क्या छोड़ा विपक्षी भाजपा को बैठे-बिठाए मुद्दा मिल गया। पूर्व सीएम रमन सिंह का कहना है कि छत्तीसगढ़ में सभी मंत्रियों की हालत एक जैसी है। मंत्री खुलकर काम नहीं कर पा रहे हैं। टीएस सिंहदेव ने इस्तीफा देकर अपपी नाराजगी जताई है, दूसरे मंत्रियों में भी नाराजगी है लेकिन वे चुप हैं। सिंहदेव का कदम महाराष्ट्र के विस्फोट की तरह है।
भूपेश के पास बहुमत से कई अधिक विधायक
छत्तीसगढ़ विधानसभा में 90 सदस्य हैं। जिनमें कांग्रेस के पास 71 विधायक है और सरकार बनाने या बहुमत साबित करने के लिए 46 विधायकों की जरुरत होती है। ऐसे में भूपेश के पास बहुमत से अधिक विधायक हैं। बीजेपी के 14, जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जे के तीन और बसपा के दो विधायक भी चुनकर आए हैं। कांग्रेस की भूपेश सरकार को दो तिहाई बहुमत के लिए जरूरी आंकड़ा है। सिंहदेव बगावत करते हैं तो उन्हें बड़ी संख्या में कांग्रेस विधायकों को भी बगावत के लिए उकसाना पड़ेगा।