नीतीश के एकजुटता वाले प्रयासों में लग रहे अड़ंगे !

नीतीश के नाम पर सहमति में शंका

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्षी एकता के लिए ऐड़ी चोरी का जोर लगा रहे है। कई नेताओं से मुलाकात के बाद कोई सार्थक ​परिणाम नहीं निकल रहे हैं। कभी कोई कांग्रेस के साथ जाने को तैयार नहीं होता तो कभी एकजुट विपक्ष का नेता कौन होगा? ऐसे सवालों में सारे प्रयास थमते नजर आते हैं। बंगाल से लेकर उत्तरप्रदेश और दिल्ली तक की दौड़ में नीतीश को अब तक क्या मिला यह सवाल अनुत्तरित ही है।

सर्वाधिक चिंता नीतीश को है

अगले साल होने जा रहे लोकसभा के चुनाव को लेकर भाजपा विरोधी दल काफी चिंतित हैै। उनका मानना है कि यदि भाजपा की आंधी नहीं रोकी गई तो विपक्ष के असित्तव का संकट खड़ा हो जाएगा। सर्वाधिक चिंता खुद नीतीश कुमार को है। शायद इसी वजह से उन्होंने एकजुटता का संकल्प लिया है। उनकी चिंता का बड़ा कारण यही है कि कभी लालू के साथ कभी भाजपा के साथ रहकर उन्होंने मुख्यमंत्री बनना पसंद किया है। मतलब वो नेतृत्व किसी को कैसे दे सकते हैं यह सवाल भी राजनीति के गलियारों में सुनाई देता है। दूसरों दलों के नेता नीतीश को कमान देने से पहले खुद के नेता पर भरोसा करना ज्यादा बेहतर समझ रहे है।

नीतीश के नाम पर सहमति में शंका

नीतीश को थोड़ी सी राहत उस समय मिली जब अखिलेश यादव और ममता बनर्जी जैसे नेताओं ने कांग्रेस के साथ आने से मना कर दिया था लेकिन अब कहा जा रहा है कि दोनों ने कह दिया है कि हम साथ साथ हैं। इससे नीतीश कुमार को मामूली राहत तो मिली है लेकिन नीतीश के नाम ये राजनीति दिग्गज सहमत होंगे इसकी उम्मीद कम ही दिखाई देती है। सोमवार को जब नीतीश कुमार ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात की तो उन्होंने कह दिया कि हमें साथ आने में कोई दिक्कत नहीं है। भाजपा को हीरो से जीरो बनाना है जो हम पूरा साथ देंगे। साथ ही उन्होंने यह सुझाव भी दे दिया कि जिस तरह से जेपी आंदोलन की शुरुआत बिहार से हुई थी। ठीक उसी तरह से यदि बिहार से एकजुटता की शुरुआत होती है तो ज्यादा बेहतर होगा। उनका कहना था कि इससे भाजपा के खिलाफ चलाए जा रहे मूवमेंट को ताकत मिलेगी और जन सहयोग बटोरना भी आसान हो जाएगा। ममता के इस बयान से जानकार यही मान रहे है कि नीतीश का नेतृत्व ममता ने स्वीकार कर लिया है।

कौन स्वीकारेगा नेतृत्व

अब बात आती है सपा के मुखिया अखिलेश यादव की। जिन्होंने साथ आने का वादा तो कर दिया लेकिन क्या वे नीतीश का नेतृत्व स्वीकार करेंगे। यह सवाल बहुत कठिन है जिसे हल करना शायद नीतीश कुमार के बस में भी नहीं है। आपको बता दें कि इससे पहले 2014 में भी नीतीश कुमार ने एकजुटता के प्रयास किए थे,लेकिन विपक्ष को एकजुट करने में असफल रहे थे। ऐसे में भाजपा कह रही है कि इस बार नीतीश कुमार सिर्फ बिचौलिऐ की भूमिका में हैं। उनके तमाम प्रयासों से कोई बड़ा समाधान निकलने वाला नहीं हैं।

जीरो पर आउट होंगे नीतीश

विपक्षी एकजुटता के नीतीश के प्रयासों पर भारतीय जनता पार्टी लगातार तंज कस रही है। बिहार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने उन्हे बिचौलिया की संज्ञा दी है। उनका कहना है कि विपक्ष से पीएम कौन होगा इसका जवाब किसी के पास नहीं हैं। उन्होंने दावा करते हुए कहा कि 2024 के चुनाव मे देखिएगा नीतीश जीरो पर आउट होंगे। वजह ये है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार जिस तरह से देशहित और जनहित में काम कर रही है उसे जनता देख रही है। जहां जहां भाजपा की सरकारें वहां खुशहाली है और लोगों में मन से माफियाओं की दहशत निकल रही है। राज्यों शांति है और कहीं कोई दंगो की खबरें नहीं आ रहीं हैं।

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